दरभंगा(ब्यूरो)- बिहार बोर्ड देश का इकलौता बोर्ड है
जिससे उत्तीर्ण हुए छात्रों की योग्यता मीडिया तय करती है। आप चाहे बोर्ड
से टॉपर होने का प्रमाणपत्र हासिल कर लें, लेकिन आपकी योग्यता तभी प्रमाणित
होगी जब आप मीडिया के साक्षात्कार में पास होंगे।
भारत में किसी और बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों पर यह अघोषित कानून लागू नहीं होता है। सीबीएससी में आप 99 फीसदी अंक ले आये, आइसीएसई में आप 99.99 अंक ले आये, मीडिया आपको बधाई देती नजर आयेगी,लेकिन अगर आप बिहार बोर्ड से 81 प्रतिशत अंक भी पाये हैं तो आपको मीडिया के सवालों का जबाव देना होगा, उनके सवाल का अगर आप तत्काल जबाव नहीं देते तो आपका प्रमाणपत्र झूठा है।
बिहार बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों में मीडिया को लेकर दहशत है, मीडिया जिस प्रकार उन्हें ट्रोल कर रही है वो एक मानसिक प्रताडना से कम नहीं कहा जा सकता है। छात्र का काम परीक्षा देना है। परिणाम शिक्षकों के हाथ होता है। बोर्ड का काम परीक्षा लेना होता है,पढाने का काम स्कूलों का होता है। ये सारी बातें बिहार की मीडिया में बेमानी हो चुकी हैं।
मीडिया सीबीएसई के परिणाम के बाद किसी टॉपर से यह पूछने नहीं जाती है कि आपका विषय क्या था, लेकिन बिहार टॉपर से सवालों की पूरी सूची लेकर बात करने पहुंचती है। गणित की छोडिए आज सीबीएसई में साहित्य विषय में भी 95 फीसदी से अधिक नंबर आ रहे हैं, मीडिया कभी उन उत्तीर्ण छात्रों से यह नहीं पूछती कि प्रेमचंद और रेणू को आप जानते है कि नहीं, लेकिन बिहार बोर्ड के उत्तीर्ण छात्र से आप गणित के सूत्र और संगीत के सुर जांचने पहुंच जाते हैं।
बिहार बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों से सवाल करना गलत नहीं है, लेकिन केवल बिहार बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों से ऐसे सवाल करना गलत ही नहीं मीडिया के दुराग्रह को दिखाता है। सीबीएसई के 99 फीसदी अंक लानेवाले किसी छात्र का मीडिया परीक्षा क्यों नहीं होता है।18 का पहाडा बोल कर दिखा दे कोई सीबीएसई का छात्र जिसे गणित में पूरे के पूरे अंक मिलते हैं।
सीबीएसई में 99 फीसदी अंक लानेवाले छात्र की योग्यता मीडिया क्यों नहीं जांचती है। उन्हें यहां तक पता नहीं होता कि 1 के आगे और पीछे 0 लिखने पर उसका मूल्य 10 गुना कैसे बढ जाता है और गणित में 100 फीसदी नंबर पाते हैं…पिछले साल ही पटना के डीएवी का मामला सामने आया था। सीबीएसई की धांधली उजागरहुई थी। टीएवी के बच्चे का मीडिया परीक्षा क्यों नहीं हुआ।
सीबीएससी लंगर में रोटी की तरह परीक्षा में नंबर बांट रही है, लेकिन इसकी जांच कोई मीडिया नहीं करता। जिन स्कूलों में 90 फीसदी अंक विज्ञान के प्रायोगिकपरीक्षा में छात्र पा रहे हैं वहां जाकर कोई नहीं देखता कि कैसी प्रयोगशाला है।
मीडिया सवाल उठाते उठाते पार्टी बन रही है। सीबीएससी स्कूलों को मान्यता किस आधार पर देती है, इसकी जांच मीडिया नहीं करती। क्या सीबीएसई के सभी स्कूलों में मानक प्रयोगशाला है, फिर छात्र कैसे ला रहे हैं 90 फीसदी अंक। इसपर मीडिया चुप है।
अभी कुछ दिन पहले महाराष्ट्र विश्वविद्यालय के स्नातक प्रथम खंड का रिजल्ट आया। 85 फीसदी छात्र -छात्राएं फेल हो गये। मीडिया वहां फेल छात्रों के साथ छाती पीटती नजर आयी। क्या वहां मीडिया परिणाम पर सवालउठाये, शिक्षकों को अयोग्य बताया।
उस परीक्षा के टॉपरों का आन कैमरा परीक्षा लिया। इसी साल हरियाणा के एक स्कूल में 10 वीं के सारे बच्चे फेल हो गये। मीडिया ने शिक्षा की बदहाली पर वहां क्या किया। एक ही स्कूल केसारे बच्चे फेल कैसे हो गये। वहां के शिक्षकों की योग्यता पर मीडिया ने क्या सवाल उठाये।
ऐसा नहीं है कि बिहार में शिक्षा की स्थिति आदर्श है और मीडिया के पास सवाल उठाने को कुछ है नहीं इसलिए टॉपरों को ट्रोल किया जा रहा है। देखा जाये तो बिहार की शिक्षा नीति पूरी तरह ध्वस्त है। शिक्षा पर सबसे अधिक बजट होने के बावजूद यह विभाग सबसे अराजक है। न कोई नजरिया है और न कोई सक्रियता। लुंज-पुंज व्यवस्था का दूसरा नाम कहें तो बिहार का शिक्षा विभाग है।
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर सब्जी के टमाटर हैं, उनपर इतनी जिम्मेदारी है कि वो कहां कब काम करे, पता ही नहीं चलता है। उनकी ऊर्जा का ठीक से सरकार उपयोग नहीं कर पा रही है। बिहार की माध्यमिक शिक्षा का हाल बेदहाल है।
बिहार के कक्षा 8 तक के कुल 70681 में से 48207 विद्यालय ऐसे है जहां खेल का मैदान नहीं है, 5638 में पीने का पानी नहीं है। लगभग 50 प्रतिशत विद्यालय ऐसे है जहां बाउंड्री नहीं है। केवल 15765 विद्यालय ऐसे है जहां हर शिक्षक के लिए एक कक्षा है। ऐसे में आप पढाई की क्या उम्मीद करेंगे। इस हालात में जो परिणाम आ रहे हैं वो चौकानेवाले होंगे ही।
भारत में किसी और बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों पर यह अघोषित कानून लागू नहीं होता है। सीबीएससी में आप 99 फीसदी अंक ले आये, आइसीएसई में आप 99.99 अंक ले आये, मीडिया आपको बधाई देती नजर आयेगी,लेकिन अगर आप बिहार बोर्ड से 81 प्रतिशत अंक भी पाये हैं तो आपको मीडिया के सवालों का जबाव देना होगा, उनके सवाल का अगर आप तत्काल जबाव नहीं देते तो आपका प्रमाणपत्र झूठा है।
बिहार बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों में मीडिया को लेकर दहशत है, मीडिया जिस प्रकार उन्हें ट्रोल कर रही है वो एक मानसिक प्रताडना से कम नहीं कहा जा सकता है। छात्र का काम परीक्षा देना है। परिणाम शिक्षकों के हाथ होता है। बोर्ड का काम परीक्षा लेना होता है,पढाने का काम स्कूलों का होता है। ये सारी बातें बिहार की मीडिया में बेमानी हो चुकी हैं।
मीडिया सीबीएसई के परिणाम के बाद किसी टॉपर से यह पूछने नहीं जाती है कि आपका विषय क्या था, लेकिन बिहार टॉपर से सवालों की पूरी सूची लेकर बात करने पहुंचती है। गणित की छोडिए आज सीबीएसई में साहित्य विषय में भी 95 फीसदी से अधिक नंबर आ रहे हैं, मीडिया कभी उन उत्तीर्ण छात्रों से यह नहीं पूछती कि प्रेमचंद और रेणू को आप जानते है कि नहीं, लेकिन बिहार बोर्ड के उत्तीर्ण छात्र से आप गणित के सूत्र और संगीत के सुर जांचने पहुंच जाते हैं।
बिहार बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों से सवाल करना गलत नहीं है, लेकिन केवल बिहार बोर्ड से उत्तीर्ण छात्रों से ऐसे सवाल करना गलत ही नहीं मीडिया के दुराग्रह को दिखाता है। सीबीएसई के 99 फीसदी अंक लानेवाले किसी छात्र का मीडिया परीक्षा क्यों नहीं होता है।18 का पहाडा बोल कर दिखा दे कोई सीबीएसई का छात्र जिसे गणित में पूरे के पूरे अंक मिलते हैं।
सीबीएसई में 99 फीसदी अंक लानेवाले छात्र की योग्यता मीडिया क्यों नहीं जांचती है। उन्हें यहां तक पता नहीं होता कि 1 के आगे और पीछे 0 लिखने पर उसका मूल्य 10 गुना कैसे बढ जाता है और गणित में 100 फीसदी नंबर पाते हैं…पिछले साल ही पटना के डीएवी का मामला सामने आया था। सीबीएसई की धांधली उजागरहुई थी। टीएवी के बच्चे का मीडिया परीक्षा क्यों नहीं हुआ।
सीबीएससी लंगर में रोटी की तरह परीक्षा में नंबर बांट रही है, लेकिन इसकी जांच कोई मीडिया नहीं करता। जिन स्कूलों में 90 फीसदी अंक विज्ञान के प्रायोगिकपरीक्षा में छात्र पा रहे हैं वहां जाकर कोई नहीं देखता कि कैसी प्रयोगशाला है।
मीडिया सवाल उठाते उठाते पार्टी बन रही है। सीबीएससी स्कूलों को मान्यता किस आधार पर देती है, इसकी जांच मीडिया नहीं करती। क्या सीबीएसई के सभी स्कूलों में मानक प्रयोगशाला है, फिर छात्र कैसे ला रहे हैं 90 फीसदी अंक। इसपर मीडिया चुप है।
अभी कुछ दिन पहले महाराष्ट्र विश्वविद्यालय के स्नातक प्रथम खंड का रिजल्ट आया। 85 फीसदी छात्र -छात्राएं फेल हो गये। मीडिया वहां फेल छात्रों के साथ छाती पीटती नजर आयी। क्या वहां मीडिया परिणाम पर सवालउठाये, शिक्षकों को अयोग्य बताया।
उस परीक्षा के टॉपरों का आन कैमरा परीक्षा लिया। इसी साल हरियाणा के एक स्कूल में 10 वीं के सारे बच्चे फेल हो गये। मीडिया ने शिक्षा की बदहाली पर वहां क्या किया। एक ही स्कूल केसारे बच्चे फेल कैसे हो गये। वहां के शिक्षकों की योग्यता पर मीडिया ने क्या सवाल उठाये।
ऐसा नहीं है कि बिहार में शिक्षा की स्थिति आदर्श है और मीडिया के पास सवाल उठाने को कुछ है नहीं इसलिए टॉपरों को ट्रोल किया जा रहा है। देखा जाये तो बिहार की शिक्षा नीति पूरी तरह ध्वस्त है। शिक्षा पर सबसे अधिक बजट होने के बावजूद यह विभाग सबसे अराजक है। न कोई नजरिया है और न कोई सक्रियता। लुंज-पुंज व्यवस्था का दूसरा नाम कहें तो बिहार का शिक्षा विभाग है।
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर सब्जी के टमाटर हैं, उनपर इतनी जिम्मेदारी है कि वो कहां कब काम करे, पता ही नहीं चलता है। उनकी ऊर्जा का ठीक से सरकार उपयोग नहीं कर पा रही है। बिहार की माध्यमिक शिक्षा का हाल बेदहाल है।
बिहार के कक्षा 8 तक के कुल 70681 में से 48207 विद्यालय ऐसे है जहां खेल का मैदान नहीं है, 5638 में पीने का पानी नहीं है। लगभग 50 प्रतिशत विद्यालय ऐसे है जहां बाउंड्री नहीं है। केवल 15765 विद्यालय ऐसे है जहां हर शिक्षक के लिए एक कक्षा है। ऐसे में आप पढाई की क्या उम्मीद करेंगे। इस हालात में जो परिणाम आ रहे हैं वो चौकानेवाले होंगे ही।