आयोग के गठन के बाद नियुक्त होंगे 6500 असिस्टेंट प्रोफेसर

पटना. बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग के गठन के साथ ही राज्य के विश्वविद्यालयों में खाली करीब 6500 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। आयोग के गठन की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जाना शुरू कर दिया गया है।
राज्य सरकार की अनुमति के बाद शिक्षा विभाग ने आयोग का प्रारूप लगभग तय कर लिया है। इस संबंध में अब अंतिम रूप से तैयार प्रारूप को शिक्षा मंत्री व मुख्यमंत्री के स्तर पर प्रस्तुत करने की तैयारी की जा रही है। अनुमति मिलते ही आयोग मूर्त रूप ले लेगा।
आयोग में होंगे सात सदस्य
आयोग में एक अध्यक्ष व छह सदस्य होंगे। सभी पदाधिकारियों की योग्यता का निर्धारण भी कर लिया गया है। आयोग के अध्यक्ष पद पर मुख्य सचिव स्तर तक के पदाधिकारी की नियुक्ति होगी। वहीं, आयोग के छह सदस्यों में तीन पर वरिष्ठ शिक्षाविद व तीन पर वरीय प्रशासनिक पदाधिकारी बहाल होंगे। आयोग विश्वविद्यालय व कॉलेजों में शिक्षकों के रिक्त पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया को शीघ्र पूरा कराने का प्रयास करेगी। इसके अलावा विश्वविद्यालय व कॉलेजों में नियुक्त शिक्षकों की प्रोन्नति के मामलों को भी देखेगी।
ऐसे होंगे आयोग के अध्यक्ष
सरकार के प्रस्ताव के तहत विश्वविद्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष के पद पर नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति राज्य सरकार में मुख्य सचिव या केंद्र सरकार में सचिव पद पर कार्यरत या सेवानिवृत्त होंगे। किसी भी विश्वविद्यालय में तीन वर्ष तक कुलपति के रूप में कार्य कर चुके शिक्षक भी इस पद के लिए योग्य होंगे।
ऐसे होंगे आयोग के सदस्य
विश्वविद्यालय सेवा आयोग में छह सदस्य होंगे। इसमें से तीन सदस्य शिक्षा के क्षेत्र से व तीन प्रशासनिक अनुभव के आधार पर चुने जाएंगे। इसमें 15 वर्षों तक प्रोफेसर (विश्वविद्यालय प्राचार्य) के रूप में कार्य कर चुके या कुलपति पद पर कार्य कर चुके वरीय प्रोफेसर को शैक्षणिक आधार वाले सदस्यों के रूप में नियुक्त किया जाएगा। बचे तीन पद पर सरकार या राजकीय संस्थान, पर्षद, निगम में प्रधान सचिव स्तर के रूप में कार्य करने का अनुभव रखने वाले अथवा केंद्र सरकार या उसके अधीन नियंत्रित व संचालित संस्थाओं में कम से कम अपर सचिव स्तर के पदाधिकारियों का चयन किया जाएगा।
राजधानी में होगा कार्यालय, विश्वविद्यालय भेज सकेंगे अनुशंसा
आयोग का मुख्यालय पटना में होगा। इसके लिए सरकार जल्द ही स्थान निर्धारित कर लेगी। आयोग को निगमित निकाय का दर्जा प्रदान किया जाएगा। आयोग विश्वविद्यालय व कॉलेजों में पदाधिकारी व शिक्षकों की नियुक्ति की कार्रवाई करेगा। इसके लिए विश्वविद्यालय से अनुशंसा आयोग को भेजी जाएगी। विश्वविद्यालय नियुक्ति या प्रोन्नति से संबंधित अनुशंसा भेजेंगे, जिसे आयोग के स्तर पर पूरा किया जाएगा।
असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति पटना विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 (बिहार अधिनियम 24, 1976) और बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 (बिहार अधिनियम 23, 1976) के तहत किया जाएगा। हालांकि, आयोग को विश्वविद्यालय में कुलपति, प्रति कुलपति, डीन व कुलसचिव पद पर नियुक्ति का अधिकार नहीं मिलेगा। कुलपति, प्रति कुलपति व कुलसचिव की नियुक्ति राजभवन के स्तर पर होती है, जबकि डीन पद पर कुलपति वरीय प्रोफेसर की नियुक्ति करते हैं।
तीन वर्ष में बदल जाएंगे अध्यक्ष व सदस्य
आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति पूर्णकालिक होगी। सरकार द्वारा इन पदों पर नियुक्ति अधिसूचना की तिथि से तीन वर्षों के लिए की जाएगी। हालांकि, सरकार ने अध्यक्ष व सदस्यों के लिए अधिकतम उम्र सीमा का निर्धारण कर दिया है। अध्यक्ष पद पर बने रहने की अधिकतम उम्र सीमा 75 वर्ष होगी। मतलब, अगर अध्यक्ष पद नियुक्त व्यक्ति 75 वर्ष की आयु पूरी कर ले और उनके कार्यकाल का तीन वर्ष समाप्त न हुआ हो, तो भी रिटायर कर जाएंगे। सदस्यों के लिए पद पर बने रहने की अधिकतम उम्र सीमा 70 वर्ष निर्धारित की गई है। अध्यक्ष व सदस्यों की उम्र सीमा पूरी न होने व कार्यकाल समाप्त होने के बाद दोबारा पद पर नियुक्ति सरकार कर सकती है।
नीतीश के विरोध के बाद भंग हुआ था पूर्व आयोग
बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग वर्ष 1982 से वर्ष 2007 तक प्रभावी रहा। पहले इसमें एक अध्यक्ष व पांच सदस्यों का पद होता था। छह साल के लिए उनकी नियुक्ति होती थी। अध्यक्ष पद पर प्रोफेसर रैंक के व्यक्ति की नियुक्ति होती थी। पांच सदस्यों में दो प्रोफेसर, दो बिहार प्रशासनिक सेवा और एक तकनीकी शिक्षा से जुड़े व्यक्ति होते थे।
आयोग के वर्ष 1996 व वर्ष 2007 में हुई नियुक्तियों पर सवाल उठे। वर्ष 1996 में 1365 लेक्चरर
की नियुक्ति हुई थी। गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट तक गए। हालांकि, कोर्ट ने नियुक्ति को वैध ठहराया। वर्ष 2003 में 1050 लेक्चरर की नियुक्ति हुई। इसको लेकर भी खूब हंगामा मचा। तब बिहार में राबड़ी देवी की सरकार थी और नीतीश कुमार विपक्ष के नेता थे। नीतीश ने नियुक्ति में धांधली के मामले को जोरदार तरीके से उठाया था। इसके बाद तत्कालीन राज्यपाल रमा जोइस ने लेक्चरर नियुक्ति की निगरानी जांच के आदेश दिए। अभी भी नियुक्ति की जांच चल रही है और नियुक्त शिक्षक विश्वविद्यालय-कॉलेजों में पढ़ा भी रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के आरोपों को देखते हुए 10 मार्च 2007 को विश्वविद्यालय सेवा आयोग भंग कर दिया। अब एक बार फिर आयोग को नए सिरे से खड़ा करने की तैयारी चल रही है।
यूपी की तर्ज पर आयोग
बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग को उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। यूपी के आयोग में भी एक अध्यक्ष व छह सदस्यों की टीम है। अध्यक्ष भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरीय पदाधिकारी होते हैं। हालांकि, वहां पर आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष निर्धारित किया गया है।

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