पटनाविश्वविद्यालय में 124 शिक्षकों की प्रोन्नति का मामला एक बार फिर उठा
है। इसमें कोर्ट का निर्देश है कि इनकी प्रोन्नति रद्द की जाए। लेकिन विवि
प्रशासन ने इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। राजभवन की ओर से
पीयू प्रशासन से बार-बार पूछा जा रहा है कि अब तक इस मामले में कार्रवाई
क्यों नहीं की गई।
इसका जवाब नहीं देने पर राजभवन ने फिर से रिमाइंडर भेजा है। इन सभी शिक्षकों को दो अधिसूचनाओं के जरिए 29 जून 2005 को प्रोफेसर पद पर प्रमोशन दिया गया था। लेकिन अधिसूचना के तुरंत बाद से ही प्रोन्नति का पूरा मामला विवादों में घिर गया।
{ 29 जून2005 : पीयूप्रशासन ने 124 शिक्षकों को रीडर से प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति दी।
{ 9 अगस्त2006 : पटनाहाईकोर्ट ने प्रोन्नति की अधिसूचना रद्द करने का निर्देश दिया।
{ 22 अगस्त2006 : हाईकोर्टके निर्देशानुसार, पीयू प्रशासन ने प्रोन्नति की अधिसूचना को रद्द कर दिया।
{ 29 जून2010 : पीयूप्रशासन द्वारा अधिसूचना रद्द करने के खिलाफ जब शिक्षक कोर्ट गए तो अंतिम फैसले में हाईकोर्ट ने पहले हुए फैसले को ही सही माना।
{ 12 जनवरी2011 : पीयूप्रशासन ने हाईकोर्ट के नए आदेश के आधार पर 2005 में हुई प्रोन्नति की अधिसूचना दोबारा रद्द कर दी।
{ 05 मार्च2016 : पटनाविवि की सीनेट में अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष डॉ. शिवजतन ठाकुर ने मामले को उठाया और कुलपति से इस पर कार्रवाई की मांग की। साथ ही राजभवन और मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर बताया कि पीयू के 124 शिक्षकों को अवैध रूप से प्रोफेसर का वेतनमान दिया जा रहा है।
{ 22 जुलाई2016 : राज्यसरकार ने शिक्षा विभाग को मामले की जांच का निर्देश दिया।
{ 10 नवंबर2016 : राजभवनने पटना विवि के कुलसचिव को पत्र भेजकर शिक्षकों को हो रहे भुगतान के औचित्य पर सवाल उठाते हुए स्पष्टीकरण मांगा।
{ 27 अप्रैल2017 : नवंबरमें भेजे गए पत्र के बाद पीयू प्रशासन द्वारा स्पष्टीकरण नहीं देने पर दोबारा राजभवन ने रिमाइंडर भेजा है।
प्रोन्नति रद्द करने के बाद भी नहीं घटा वेतन
पटनाहाईकोर्ट में इस प्रोन्नति के खिलाफ अनियमितता की अपील हुई जिसमें कोर्ट ने अधिसूचना रद्द करने का निर्देश दिया। इसके बाद प्रोन्नति प्राप्त करने वाले शिक्षकों ने अपील की तो अंतिम निर्देश में कोर्ट ने पूर्व में हुए फैसले को ही सही बताया। इसके बाद पीयू प्रशासन ने अपने स्तर पर अधिसूचनाएं रद्द कीं। लेकिन पीयू प्रशासन ने शिक्षकों को पदावनत नहीं किया। सबको प्रोफेसर का वेतनमान मिलता रहा। राजभवन ने इसी मामले में पीयू प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है।
इसका जवाब नहीं देने पर राजभवन ने फिर से रिमाइंडर भेजा है। इन सभी शिक्षकों को दो अधिसूचनाओं के जरिए 29 जून 2005 को प्रोफेसर पद पर प्रमोशन दिया गया था। लेकिन अधिसूचना के तुरंत बाद से ही प्रोन्नति का पूरा मामला विवादों में घिर गया।
{ 29 जून2005 : पीयूप्रशासन ने 124 शिक्षकों को रीडर से प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति दी।
{ 9 अगस्त2006 : पटनाहाईकोर्ट ने प्रोन्नति की अधिसूचना रद्द करने का निर्देश दिया।
{ 22 अगस्त2006 : हाईकोर्टके निर्देशानुसार, पीयू प्रशासन ने प्रोन्नति की अधिसूचना को रद्द कर दिया।
{ 29 जून2010 : पीयूप्रशासन द्वारा अधिसूचना रद्द करने के खिलाफ जब शिक्षक कोर्ट गए तो अंतिम फैसले में हाईकोर्ट ने पहले हुए फैसले को ही सही माना।
{ 12 जनवरी2011 : पीयूप्रशासन ने हाईकोर्ट के नए आदेश के आधार पर 2005 में हुई प्रोन्नति की अधिसूचना दोबारा रद्द कर दी।
{ 05 मार्च2016 : पटनाविवि की सीनेट में अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष डॉ. शिवजतन ठाकुर ने मामले को उठाया और कुलपति से इस पर कार्रवाई की मांग की। साथ ही राजभवन और मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर बताया कि पीयू के 124 शिक्षकों को अवैध रूप से प्रोफेसर का वेतनमान दिया जा रहा है।
{ 22 जुलाई2016 : राज्यसरकार ने शिक्षा विभाग को मामले की जांच का निर्देश दिया।
{ 10 नवंबर2016 : राजभवनने पटना विवि के कुलसचिव को पत्र भेजकर शिक्षकों को हो रहे भुगतान के औचित्य पर सवाल उठाते हुए स्पष्टीकरण मांगा।
{ 27 अप्रैल2017 : नवंबरमें भेजे गए पत्र के बाद पीयू प्रशासन द्वारा स्पष्टीकरण नहीं देने पर दोबारा राजभवन ने रिमाइंडर भेजा है।
प्रोन्नति रद्द करने के बाद भी नहीं घटा वेतन
पटनाहाईकोर्ट में इस प्रोन्नति के खिलाफ अनियमितता की अपील हुई जिसमें कोर्ट ने अधिसूचना रद्द करने का निर्देश दिया। इसके बाद प्रोन्नति प्राप्त करने वाले शिक्षकों ने अपील की तो अंतिम निर्देश में कोर्ट ने पूर्व में हुए फैसले को ही सही बताया। इसके बाद पीयू प्रशासन ने अपने स्तर पर अधिसूचनाएं रद्द कीं। लेकिन पीयू प्रशासन ने शिक्षकों को पदावनत नहीं किया। सबको प्रोफेसर का वेतनमान मिलता रहा। राजभवन ने इसी मामले में पीयू प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है।