शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव के आदेश के बाद जिले के दर्जनों शिक्षकों
का प्रतिनियोजन रद्द हुआ. लेकिन आदेश को अभी छह माह भी नहीं बीते हैं कि
नये सिरे से एक बार फिर प्रतिनियोजन का खेल आरंभ हो चुका है.
सुपौल : शिक्षा विभाग का लगातार आदेश जारी होता रहा है और न्यायालय का
भी प्रतिबंध है. लेकिन अधिकारी हैं कि उनके कान के नीचे जूं तक नहीं रेंग
रही है. बात शिक्षकों के प्रतिनियोजन से जुड़ी है. जहां प्रशासनिक आदेशों
से इतर विभागीय अधिकारियों की अपनी मनमर्जी ही चलती दिख रही है. दरअसल
सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव आरके महाजन ने
सभी क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशक व जिला शिक्षा पदाधिकारी को पत्र जारी कर
स्पष्ट कर दिया था कि एकल विद्यालयों को छोड़ किसी भी विद्यालय में
शिक्षकों का प्रतिनियोजन कायम नहीं रहेगा और आगे भी शिक्षकों के
प्रतिनियोजन पर प्रतिबंध रहेगा.
अधिकारियों को एक सप्ताह के अंदर सभी प्रतिनियोजन रद्द करने का आदेश
दिया गया था और यह भी कहा गया था कि अगर आदेश का अनुपालन नहीं हुआ तो
संबंधित शिक्षक को विभागीय स्तर से वेतन का भुगतान नहीं किया जायेगा. बल्कि
वेतन का दावा करने पर संबंधित अधिकारी के वेतन से ही प्रतिनियोजित शिक्षक
को वेतन भुगतान किया जायेगा. लेकिन आदेश और उसका अनुपालन दोनों अलग-अलग दिख
रहे हैं. क्योंकि प्रधान सचिव के आदेश के आलोक में जिले के दर्जनों
शिक्षकों का प्रतिनियोजन रद्द हुआ. लेकिन आदेश को अभी छह माह भी नहीं बीते
हैं कि नये सिरे से एक बार फिर प्रतिनियोजन का खेल आरंभ हो चुका है. खास
बात यह है कि प्रतिनियोजन के लिए पैसा और पैरवी दोनों का ख्याल रखा जाता
है.
स्थानीय स्तर पर प्रतिनियोजन पर जताया था खेद : शिक्षा विभाग के
प्रधान सचिव आरके महाजन द्वारा प्रतिनियोजन अथवा प्रतिनियुक्ति के बाबत
अंतिम आदेश गत वर्ष 22 सितंबर को पत्र संख्या 1068 से जारी किया गया है.
जिसमें स्पष्ट किया गया है कि 04 जनवरी 2011 तथा 07 जून 2013 को भी इस बाबत
पत्र भेजा गया था और बच्चों के लिए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के
अधिकार अधिनियम 2009 के अनुपालन हेतु प्रतिनियुक्ति अथवा प्रतिनियोजन को
प्रतिबंधित किया गया है. अधिनियम की धारा 27 का जिक्र करते हुए प्रधान सचिव
ने कहा था कि कोई भी शिक्षक दस वर्षीय जनगणना,
आपदा सहायता अथवा विधान मंडल, संसद व स्थानीय निकाय के चुनाव को छोड
अन्य किसी गैर शैक्षणिक कार्य के लिए प्रतिनियुक्त नहीं किये जायेंगे.
मतदाता सूची का निर्माण अथवा पुनरीक्षण का कार्य भी गैर शैक्षणिक कार्य
दिवस अथवा अवकाश के दिनों में कराये जाने का आदेश है. यह स्पष्ट किया गया
है कि मतदाता सूची से संबंधित कार्य किसी भी प्रकार का प्रभाव शिक्षकों के
शैक्षणिक गतिविधि को प्रभावित न करे, यह सुनिश्चित होना चाहिए. स्थानीय
स्तर पर शिक्षा विभाग अथवा अन्य पदाधिकारियों द्वारा भी शिक्षकों की
प्रतिनियुक्ति को खेदजनक बताते हुए कहा गया कि इसे किसी भी स्थिति में
बर्दाश्त नहीं किया जायेगा.
आरडीडीइ ही कर रहे हैं आदेश की अवहेलना
सामान्य तौर पर जिला स्तर पर प्रशासनिक कार्य में गड़बड़ी हो तो
प्रमंडल स्तरीय पदाधिकारी ही इसकी निगरानी करते हैं और सरकारी प्रावधानों
के अनुपालन को सुनिश्चित करते हैं. लेकिन शिक्षक प्रतिनियोजन के मामले में
स्वयं आरडीडीइ प्रभाशंकर सिंह विभागीय आदेश का उल्लंघन करते दिख रहे हैं.
दरअसल प्रधान सचिव के आदेश से इतर गत 28 फरवरी को ही आरडीडीइ श्री सिंह
द्वारा पिपरा प्रखंड के मध्य विद्यालय रामनगर में पदस्थापित शिक्षिका सीमा
कुमारी का प्रतिनियोजन छह माह के लिए उर्दू प्राथमिक विद्यालय चकला निर्मली
में कर दिया है. इसमें प्रतिनियुक्ति का आधार विशेष परिस्थितियों को बताया
गया है.
लेकिन विभागीय स्वीकृति का जिक्र तक नहीं है. दिलचस्प यह भी है कि
उर्दू प्राथमिक विद्यालय शहर के उन चंद विद्यालयों में शुमार है जहां छात्र
के हिसाब से शिक्षकों का अनुपात ठीक-ठाक है. जाहिर है, आरडीडीइ के इस आदेश
से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. जानकारों की मानें तो बीते तीन माह में ऐसे
कुछ और प्रतिनियोजन भी आरडीडीइ द्वारा किये गये हैं. ऐसे में सवाल लाजिमी
है कि आखिर जिले के शिक्षा अधिकारी किसके आदेश का अनुपालन करेंगे. क्योंकि
एक ओर आरडीडीइ हैं तो दूसरी ओर विभागीय प्रधान सचिव.
अभी शादी समारोह में हूं. कार्यालय के पत्र के बाबत कोई जानकारी नहीं
है. कार्यालय जाने पर ही पत्र के विषय में कोई जानकारी दी जा सकती है.
प्रभाशंकर सिंह, आरडीडीइ, सहरसा
आरडीडीइ के पत्र की जानकारी नहीं है. पत्र के अवलोकन के उपरांत आवश्यक
कार्रवाई सुनिश्चित की जायेगी. अगर प्रतिनियोजन हुआ है तो संबंधित अधिकारी
के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जायेगी.
जितेंद्र श्रीवास्तव, सचिव, शिक्षा विभाग, पटना