पटना : बिहार सचिवालय सेवा संघ ने राज्य सरकार से हर हाल में 15 फरवरी तक राज्यकर्मियों के लिए सातवें वेतनमान की अनुशंसा को लागू करने की मांग की है. संघ ने इसे एक जनवरी 2016 के प्रभाव से लागू करने की मांग की है.
सातवें वेतनमान के लिए राज्य के लगभग सभी कर्मचारी महासंघ ने सचिवालय सेवा संघ के आंदोलन को समर्थन दिया है. 23 जनवरी से 27 जनवरी तक विभागवार जनजागरण के बाद सोमवार को नया सचिवालय के समीप सचिवालय कर्मियों की सभा का आयोजन किया गया. संघ के अध्यक्ष नीलम कपूर की अध्यक्षता में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए बिहार सचिवालय सेवा संघ के महासचिव अमरेंद्र नाथ सिंह ने कहा कि 15 फरवरी, 2017 तक सातवें वेतन पुनरीक्षण सहित सचिवालयकर्मियों की मूलभूत समस्याओं का निराकरण कर सरकार इसकी अधिसूचना जारी करे.
उन्होंने कहा कि किसी भी परिस्थिति में केंद्रीय वेतनमान के ढांचे में किसी प्रकार का छेड़छाड़ नहीं किया जाये. अन्यथा न चाहते हुए भी सचिवालय समेत पूरे राज्यकर्मी एक साथ आंदोलन करने पर विवश होंगे. सिंह ने कहा कि न्याय के साथ सुशासन की यह सरकार सहमत होगी कि केंद्र की तरह सातवें वेतन पुनरीक्षण के लिए किसी आयोग या समिति की आवश्यकता नहीं है. सभा को सभी सेवा-संवर्गीय संघों, महासंघों के नेताओं समेत सचिवालय सेवा संघ के मुख्य संरक्षक कृष्णनंदन शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष विद्या प्रसाद, कार्यकारी महासचिव रवींद्र प्रसाद सिंह, विनोद प्रसाद आदि नेताओं ने संबोधित किया. कार्यकारी महासचिव रवींद प्रसाद सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया. उन्होंने कहा कि दु:खद है कि सचिवालय की रीढ़ के रूप में स्थापित सचिवालय सहायकों और सचिवालय लिपिकीय सेवा के लिपिकों की मर्यादा से जुड़े केंद्र की तरह पदनाम परिवर्तन, जिसमें सरकार का किसी भी प्रकार का वित्तीय संबंध नहीं है, अबतक संघ द्वारा लगातार प्रयास किये जाने के बावजूद सरकार द्वारा विचार तक नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि एक ओर राज्य के सभी सेवा-संवर्गो में न्यूनतम 50 प्रतिशत प्रोन्नति के अवसर हैं. वहीं सचिवालय सहायकों के लिए मात्र 25 प्रतिशत ही प्रोन्नति के अवसर हैं इसके कारण सहायक को 26 से 28 साल तक एक ही पद पर कार्य करते रहना पड़ता है. इससे वे कुंठाग्रस्त और ऊर्जाहीन हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि सभी सेवा-संवर्गो में कम से कम चार प्रोन्नति होती हैं, जबकि सचिवालय सेवा के सदस्यों की पूरे सेवा काल में एक प्रोन्नति मिल पाता है. यह न्याय के साथ सुशासन की सरकार में सचिवालय सेवा के सहायकों व पदाधिकारियों के साथ कैसा न्याय है? संघ सरकार से मांग करती है कि सरकार इनका पदनाम परिवर्तन करते हुए इनकी सेवा केंद्रीय सचिवालय की तरह पुनर्गठित हो. ताकि सचिवालयकर्मी भी अपने को उपेक्षित महसूस नहीं करें. उन्होंने कहा कि सचिवालय में कंप्यूटर ऑपरेटरों की स्थिति तो और दयनीय है. वे वर्षों से सरकार के सबसे निकट और महत्वपूर्ण कार्य करते हें. इसके बावजूद इनकी सेवा का कोई ठोस स्वरूप नहीं बन सकी है. इस आर्थिक युग में न ही इन्हें सम्मान जनक मानदेय मिलता है, न ही इनकी सेवा का कोई ठोस स्वरूप ही मिल पाया है. !
सातवें वेतनमान के लिए राज्य के लगभग सभी कर्मचारी महासंघ ने सचिवालय सेवा संघ के आंदोलन को समर्थन दिया है. 23 जनवरी से 27 जनवरी तक विभागवार जनजागरण के बाद सोमवार को नया सचिवालय के समीप सचिवालय कर्मियों की सभा का आयोजन किया गया. संघ के अध्यक्ष नीलम कपूर की अध्यक्षता में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए बिहार सचिवालय सेवा संघ के महासचिव अमरेंद्र नाथ सिंह ने कहा कि 15 फरवरी, 2017 तक सातवें वेतन पुनरीक्षण सहित सचिवालयकर्मियों की मूलभूत समस्याओं का निराकरण कर सरकार इसकी अधिसूचना जारी करे.
उन्होंने कहा कि किसी भी परिस्थिति में केंद्रीय वेतनमान के ढांचे में किसी प्रकार का छेड़छाड़ नहीं किया जाये. अन्यथा न चाहते हुए भी सचिवालय समेत पूरे राज्यकर्मी एक साथ आंदोलन करने पर विवश होंगे. सिंह ने कहा कि न्याय के साथ सुशासन की यह सरकार सहमत होगी कि केंद्र की तरह सातवें वेतन पुनरीक्षण के लिए किसी आयोग या समिति की आवश्यकता नहीं है. सभा को सभी सेवा-संवर्गीय संघों, महासंघों के नेताओं समेत सचिवालय सेवा संघ के मुख्य संरक्षक कृष्णनंदन शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष विद्या प्रसाद, कार्यकारी महासचिव रवींद्र प्रसाद सिंह, विनोद प्रसाद आदि नेताओं ने संबोधित किया. कार्यकारी महासचिव रवींद प्रसाद सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया. उन्होंने कहा कि दु:खद है कि सचिवालय की रीढ़ के रूप में स्थापित सचिवालय सहायकों और सचिवालय लिपिकीय सेवा के लिपिकों की मर्यादा से जुड़े केंद्र की तरह पदनाम परिवर्तन, जिसमें सरकार का किसी भी प्रकार का वित्तीय संबंध नहीं है, अबतक संघ द्वारा लगातार प्रयास किये जाने के बावजूद सरकार द्वारा विचार तक नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि एक ओर राज्य के सभी सेवा-संवर्गो में न्यूनतम 50 प्रतिशत प्रोन्नति के अवसर हैं. वहीं सचिवालय सहायकों के लिए मात्र 25 प्रतिशत ही प्रोन्नति के अवसर हैं इसके कारण सहायक को 26 से 28 साल तक एक ही पद पर कार्य करते रहना पड़ता है. इससे वे कुंठाग्रस्त और ऊर्जाहीन हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि सभी सेवा-संवर्गो में कम से कम चार प्रोन्नति होती हैं, जबकि सचिवालय सेवा के सदस्यों की पूरे सेवा काल में एक प्रोन्नति मिल पाता है. यह न्याय के साथ सुशासन की सरकार में सचिवालय सेवा के सहायकों व पदाधिकारियों के साथ कैसा न्याय है? संघ सरकार से मांग करती है कि सरकार इनका पदनाम परिवर्तन करते हुए इनकी सेवा केंद्रीय सचिवालय की तरह पुनर्गठित हो. ताकि सचिवालयकर्मी भी अपने को उपेक्षित महसूस नहीं करें. उन्होंने कहा कि सचिवालय में कंप्यूटर ऑपरेटरों की स्थिति तो और दयनीय है. वे वर्षों से सरकार के सबसे निकट और महत्वपूर्ण कार्य करते हें. इसके बावजूद इनकी सेवा का कोई ठोस स्वरूप नहीं बन सकी है. इस आर्थिक युग में न ही इन्हें सम्मान जनक मानदेय मिलता है, न ही इनकी सेवा का कोई ठोस स्वरूप ही मिल पाया है. !