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कोदरकट्टी: दर्जनों बीए-एमए पास, अब सबको जॉब की आस

अररिया। पढ़ो और बढ़ो.., जो पढ़ेगा वो बढ़ेगा..। अररिया जिले के रामपुर कोदरकट्टी गांव के लोगों ने भले ही यह बात देर से समझी हो, लेकिन ढाई दशक पहले उन्हें जब यह बात समझ में आ गई तो अब गांव में पढ़ाई-लिखाई की रोशनी तेज होने लगी है।
गांव के महादलित टोले में पहुंच कर यह चौंकाने वाली जानकारी मिली कि गांव के लगभग पांच दर्जन युवा ग्रेजुएट या उससे ऊपर की पढ़ाई कर चुके हैं, लेकिन उनमें से केवल तीन को ही सरकारी जॉब मिल पाया है।
ऋषिदेव जाति बहुल इस टोले के लोग अब इस बात को भलीभांति समझ चुके हैं कि गरीबी और पिछड़ेपन को दूर करने की सबसे बड़ी दवा शिक्षा ही है। आगे बढ़ना है तो पढ़ना ही होगा।
प्रसिद्ध इथनोग्राफिस्ट रिसली ने सन 1875 में प्रकाशित अपनी किताब में ट्राइब्स एंड कास्ट्स आफ बंगाल प्रेजिडेंसी में ऋषिदेव समुदाय का खूबसूरत अध्ययन प्रस्तुत किया है।किताब के मुताबिक इस समाज के लोग अपने ही अंदर सिमटे रहते हैं। दिन भर जंगलों में शिकार की तलाश और चूहों की खोजबीन, शायद इसी वजह से इस जाति का एक नाम मुसहर भी धर दिया गया होगा। हालांकि इस समुदाय के प्रमुख आराध्यदेव बाबा दीना-भदरी हैं, जिनकी वीरता के किस्से हर गांव में कहे व सुने जाते हैं। इक्कीसवीं सदी में भी किसी आपदा की स्थिति में ऋषिदेव समुदाय के लोग बाबा दीना-भदरी का ही सुमिरन करते हैं। अंग्रेजों के वक्त में यहां इंडिगो फैक्ट्री कार्यरत थी और गांव के आसपास मध्ययुगीन इतिहास के कई अवशेष हैं।

लेकिन रामुपर कोदरकट्टी के लोग न केवल अपने गौरवशाली इतिहास से अनभिज्ञ हैं, बल्कि आज से पहले तक सत्ता व शासन की नजरे इनायत से दूर ही रहे हैं। गांव के जिन युवाओं ने पढ़ाई से नाता जोड़ा उनमें से अधिकांश बेरोजगार हैं, जबकि अनपढ़ युवाओं ने रोजगार की तलाश में दिल्ली-पंजाब का रास्ता पकड़ लिया है। ग्रामीण गिरानंद ऋषिदेव ने बताया कि उन्होंने अररिया कालेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई, लेकिन दर्जनों युवा ऐसे हैं जो पढ़ लिख कर इस उम्मीद में हैं कि कोई नौकरी मिल जाय तो वे बेहतर ¨जदगी की शुरूआत कर सकें। जॉब तलाशने वालों की भीड़ में संगीता देवी भी शामिल हैं। संगीता ने पूर्णिया महिला कालेज से पोस्टग्रेजुएट कर रखा है। यहां के एक पढ़े लिखे युवक सुबोध से शादी हुई तो वे पूर्णिया के बक्सा घाट से वे सीधे रामपुर आ गई। संगीता ने बताया कि वह नौकरी करना चाहती है, लेकिन कहीं अच्छा जॉब मिले तो सही। रंजीत ऋषिदेव भी एमएम पास हैं, लेकिन बेराजेगार हैं। इसी तरह अनिल व अजय ने भी कोलज की पढ़ाई पूरी की, लेकिन घूस के पैसे नहीं जुटा पाने के कारण पंचायत शिक्षक की नौकरी नहीं हासिल कर पाए। ललन, शिवनारायण, दिलीप संजीव, सुनील, प्रदीप, शंकर, रमेश, किरण, सीमा, पूजा, निवास, संतोष, प्रमोद, सावन, सोनी, प्रशांत, राजू, चंदन, दीपक, पूरन, अमर, धीरेंद्र, शिवानंद सनाज, कुंदन, मिट्ठू ..महादलित टोले के शिक्षित बेरोजगारों की सूची बहुत लंबी है। लेकिन उन्हें सत्ता व शासन की नजरे इनायत का इंतजार है।

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