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निर्धारित मानक पर नहीं कई शैक्षिक संस्थान

भोजपुर। 'अजीब दास्तां है, ये कहां शुरु करे, कहां खत्म..। गीत की यह पंक्तियां शहर के कई विद्यालयों पर सटीक बैठती है, जहां के बच्चों को पढ़ने के लिए एक अदद छत तक नहीं है। छत की छाया नसीब नहीं होने के कारण इन विद्यालयों के बच्चों खुले आसमान के नीचे तालीम लेने को विवश है।
जब पारा 44 डिग्री पर पहुंच जाता है,या कड़ाके की ठंड पड़ रही होती हो या फिर जब बारिश का मौसम हो तो ये बच्चे कैसे पढ़ाई करते है? इस बात की तस्दीक शासन से लेकर प्रशासन तक कर सकता है।
जिले में प्राथमिक शिक्षा व माध्यमिक शिक्षा की स्थिति बदहाल है। भोजपुर जिले में सर्वशिक्षा अभियान फाइलों में हीं सिमटकर रह गई है। योजनाएं तो बनी लेकिन अमल में नहीं लाई जा सकी। भोजपुर में भवनहीन 110 विद्यालय ऐसे है, जिनकी अपनी जमीन नहीं है। बच्चे या तो किसी के निजी घर में पढ़ रहे है या फिर खुले आसमान के नीचे। सरकार की तमाम योजनाएं इन विद्यालयों के बच्चों की पहुंच से दूर है। भोजपुर में भूमिहीन विद्यालयों के लिए सरकारी स्तर पर चलाये गए भू-दान कार्यक्रम का हश्र भी बुरा है।
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भवन निर्माण में भी अनियमितता उजागर: जिले के कई प्राथमिक व मध्य विद्यालयों के भवन निर्माण में भी अनियमितताएं सामने आई है। गत दिनों ही तकरीबन दस करोड़ रुपये अतिरिक्त भवन के नाम पर हड़प लिए गए, मगर कहीं भी भवन नहीं बना। कहीं मिड डे मिल योजना की राशि से भवन बन रहा है तो कहीं भवन बना ही नहीं और राशि की निकासी कर ली गई है।
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प्रभार के सहारे 300 विद्यालय: भोजपुर जिले का तकरीबन तीन सौ प्राथमिक व मध्य विद्यालय प्रभार के सहारे चल रहा है। इन विद्यालयों में प्रधानाध्यापक के पद खाली हैं। वर्षो से इन पदों पर नियुक्ति नहीं हो रही है। अधिकांश विद्यालय तो शिक्षा मित्र के सहारे चल रहा है। स्थिति यह है कि करीब सौ विद्यालय में पंचायत शिक्षक ही प्रधानाध्यापक की भूमिका में है। शिक्षक एचएम के प्रभार में रहने के कारण सप्ताह में दो दिन बीआरसी व सीआरसी की बैठक में भाग लेने चले जाते हैं। लिहाजा पठन-पाठन बाधित होता है।
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शिक्षकों की कमी:
प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में नये सत्र में कुल 56 हजार बच्चों को पढ़ाने के लिये कुल 17500 शिक्षकों की आवश्यकता है। मगर नामांकित बच्चों की पढ़ाई 9148 शिक्षकों के भरोसे टिकी है। जानकारों का कहना है कि तकरीबन प्राथमिक से लेकर मध्य विद्यालयों में शिक्षकों का घोर अभाव है। एक शिक्षक पर 52 छात्रों के अनुपात की कमी को पूरा करने की जवावदेही शिक्षा विभाग पर है। अब देखना यह है कि यह कमी कब पूरी होती है।
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अधिकांश विद्यालयों में खेल मैदान का अभाव:

अजीब हाल है सरकारी 'व्यवस्था' का भी। सरकारी विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम लागू तो कर दिया गया है। यहां तक कि खेल की घंटी भी दिनचर्या में शामिल है। मगर दुर्भाग्य देखिए अधिकांश सरकारी विद्यालयों में खेल का मैदान नहीं है। देहात क्षेत्रों के विद्यालयों से कहीं अधिक शहरी क्षेत्र के विद्यालयों के पास खेल का मैदान नहीं है। मैदान नहीं होने के कारण अधिकांश विद्यालयों के बच्चे खेल का आनंद नहीं उठा पाते है।
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