वैशाली के जिस वीआर कॉलेज के टॉपर छात्रों (रूबी राय और सौरभ
श्रेष्ठ) की योग्यता पर शिक्षा जगत में बवाल मचा है, उसी कालेज की कॉपियां
2012 में मन माफिक जंचवाने के सवाल पर हुए बवाल के बाद बिहार बोर्ड ने एसएम
कालेज से वापस मंगा ली थी। और फिर 823 छात्रों में 815 प्रथम श्रेणी से
पास हुए।
तत्कालीन प्राचार्य निशा राय साफ कहती हैं कि उनपर बोर्ड से अप्रत्यक्ष दबाव था कि इस कालेज की कॉपियों के मूल्यांकन के लिए अलग व्यवस्था की जाए जिसपर वह तैयार नहीं हुईं।
वीआर कॉलेज कीरतपुर भगवानपुर के 12 छात्र उस साल भी इंटर साइंस के टॉपरों में शामिल थे। इंटर विज्ञान की ही कापियां एसएम कॉलेज में मूल्यांकन के लिए आई थीं। कालेज की तरफ से कुछ लोग तत्कालीन प्राचार्य डा. निशा राय के पास परची लेकर पहुंचे थे जिनमें कुछ कॉलेजों के रोल कोड थे। एक परची पर वीआर कॉलेज कीरतपुर का भी रोल कोड था। ऐसी कापियों के मूल्यांकन के लिए अलग कमरे की मांग हुई थी।
जिसपर मूल्यांकन में लगे कुछ शिक्षकों ने विरोध कर दिया था। वैसे कुछ शिक्षक अलग मूल्यांकन को तैयार भी थे। तब सिंडिकेट के लोग भागलपुर में घर-घर जाकर शिक्षकों से संपर्क कर रहे थे। खुद को 15-16 कॉलेजों का हेड और डायरेक्टर बताने वाला एक शख्स तो भागलपुर विवि के गेस्ट हाउस में ठहरा था। तब यह मुद्दा मीडिया में भी आया लेकिन बोर्ड ने संज्ञान नहीं लिया था।
निशा राय को आज भी पूरा प्रकरण याद है। बताती हैं कि बोर्ड से ही अलग कमरे में मूल्यांकन का निर्देश मिला था लेकिन कालेज की प्रतिष्ठा के कारण वह राजी नहीं हुईं। मेहरबानी यह कि मूल्यांकन के बीच ही बिहार बोर्ड ने वीआर कॉलेज की कापियां वापस मंगा ली थीं। इसके बाद कापियां कहां भेजी गईं पता नहीं चल सका लेकिन रिजल्ट बेहद आकर्षक आया। ‘हिन्दुस्तान’ ने वीआर कॉलेज कीरतपुर के 823 छात्रों में 815 के फर्स्ट डिविजन से पास होने की खबर को प्रमुखता से छापा था।
29 अप्रैल 2012 का वह दिन
एसएम कॉलेज में इंटर की कापियों के मूल्यांकन में लगे शिक्षकों ने यह कहकर हंगामा मचा दिया था कि एक खास रोल कोड के लिए क्यों अलग व्यवस्था की जा रही है। शिक्षकों का कहना था कि एक हफ्ते से कापियों का मूल्यांकन समान रूप से हो रहा था। फिर वीआर कॉलेज की कापियों का मूल्यांकन अलग कमरे में और कुछ खास शिक्षकों से क्यों कराया जाने लगा? तब की प्राचार्य डा. निशा राय ने कुछ शिक्षकों पर एक शिक्षा माफिया के हाथों में खेलने का आरोप लगाया था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो सकी थी।
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तत्कालीन प्राचार्य निशा राय साफ कहती हैं कि उनपर बोर्ड से अप्रत्यक्ष दबाव था कि इस कालेज की कॉपियों के मूल्यांकन के लिए अलग व्यवस्था की जाए जिसपर वह तैयार नहीं हुईं।
वीआर कॉलेज कीरतपुर भगवानपुर के 12 छात्र उस साल भी इंटर साइंस के टॉपरों में शामिल थे। इंटर विज्ञान की ही कापियां एसएम कॉलेज में मूल्यांकन के लिए आई थीं। कालेज की तरफ से कुछ लोग तत्कालीन प्राचार्य डा. निशा राय के पास परची लेकर पहुंचे थे जिनमें कुछ कॉलेजों के रोल कोड थे। एक परची पर वीआर कॉलेज कीरतपुर का भी रोल कोड था। ऐसी कापियों के मूल्यांकन के लिए अलग कमरे की मांग हुई थी।
जिसपर मूल्यांकन में लगे कुछ शिक्षकों ने विरोध कर दिया था। वैसे कुछ शिक्षक अलग मूल्यांकन को तैयार भी थे। तब सिंडिकेट के लोग भागलपुर में घर-घर जाकर शिक्षकों से संपर्क कर रहे थे। खुद को 15-16 कॉलेजों का हेड और डायरेक्टर बताने वाला एक शख्स तो भागलपुर विवि के गेस्ट हाउस में ठहरा था। तब यह मुद्दा मीडिया में भी आया लेकिन बोर्ड ने संज्ञान नहीं लिया था।
निशा राय को आज भी पूरा प्रकरण याद है। बताती हैं कि बोर्ड से ही अलग कमरे में मूल्यांकन का निर्देश मिला था लेकिन कालेज की प्रतिष्ठा के कारण वह राजी नहीं हुईं। मेहरबानी यह कि मूल्यांकन के बीच ही बिहार बोर्ड ने वीआर कॉलेज की कापियां वापस मंगा ली थीं। इसके बाद कापियां कहां भेजी गईं पता नहीं चल सका लेकिन रिजल्ट बेहद आकर्षक आया। ‘हिन्दुस्तान’ ने वीआर कॉलेज कीरतपुर के 823 छात्रों में 815 के फर्स्ट डिविजन से पास होने की खबर को प्रमुखता से छापा था।
29 अप्रैल 2012 का वह दिन
एसएम कॉलेज में इंटर की कापियों के मूल्यांकन में लगे शिक्षकों ने यह कहकर हंगामा मचा दिया था कि एक खास रोल कोड के लिए क्यों अलग व्यवस्था की जा रही है। शिक्षकों का कहना था कि एक हफ्ते से कापियों का मूल्यांकन समान रूप से हो रहा था। फिर वीआर कॉलेज की कापियों का मूल्यांकन अलग कमरे में और कुछ खास शिक्षकों से क्यों कराया जाने लगा? तब की प्राचार्य डा. निशा राय ने कुछ शिक्षकों पर एक शिक्षा माफिया के हाथों में खेलने का आरोप लगाया था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो सकी थी।
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