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शिक्षक कब सुधरेंगे : बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में आधे से अधिक परीक्षार्थियों अनुत्तीर्ण

 बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में आधे से अधिक परीक्षार्थियों के अनुत्तीर्ण हो जाने पर हाय-तौबा मचना स्वाभाविक है। माना जा रहा है कि इस साल नकलचियों पर सख्ती बरते जाने के कारण परीक्षाफल में गिरावट आई। जाहिर है कि गुजरे वर्षों में परीक्षाफल का ऊंचा स्तर अच्छी पढ़ाई के कारण नहीं, बल्कि नकल के कारण रहता था। इस साल सख्ती हुई तो परीक्षाफल धड़ाम हो गया।
वास्तव में अगला शैक्षिक सत्र शुरू होने से पहले यह पूरी तरह मुफीद समय है कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था के बारे में गंभीरता से विचार किया जाए। बड़ा सवाल यह है कि आठ लाख से अधिक परीक्षार्थियों के अनुत्तीर्ण रहने के लिए कौन जिम्मेदार है? राह चलते किसी साधारण समझ वाले व्यक्ति से भी पूछ लीजिए तो बता देगा कि शिक्षा व्यवस्था की इस बदहाली के लिए शिक्षक जिम्मेदार हैं जो विद्यार्थियों को पढ़ाने के अपने मूल दायित्व के अलावा हर काम में रुचि रखते हैं। इसमें दो राय नहीं कि शिक्षक यदि पढ़ाने का दायित्व ईमानदारी से निभाने लगें तो परीक्षार्थी न नकल करेंगे, न अनुत्तीर्ण होंगे। शिक्षक पढ़ाते नहीं, इसलिए परीक्षार्थी नकल पर आश्रित रहते हैं। इस साल नकल नहीं कर पाए तो आधे से अधिक परीक्षार्थी अनुत्तीर्ण हो गए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय परंपरा में ईश्वर से भी ऊपर दर्जा रखने वाले शिक्षक अपने कर्तव्य पथ से इस तरह भटक चुके हैं। सरकार व्यवस्था करने जा रही है कि स्कूलों में नोटिस बोर्ड पर शिक्षकों की फोटो चस्पा की जाए ताकि विद्यार्थियों को पता रहे कि किस शिक्षक का पीरियड है। शिक्षकों को कक्षा में भेजने के लिए इस तरह के इंतजाम बताते हैं कि हालात किस कदर बिगड़ चुके हैं। क्या शिक्षकों और उनके संगठनों में इतना नैतिक साहस है कि वे सामने आकर अपनी गलती स्वीकार करें और राज्य को आश्वस्त करें कि भविष्य में वे पठन-पाठन के धर्म से विमुख नहीं होंगे।
राज्य सरकार को भी समझना पड़ेगा कि सिर्फ नकल पर सख्ती इस समस्या का समाधान नहीं है। सरकार को स्कूलों को सुविधाएं देकर ऐसा माहौल बनाना होगा कि वहां पढ़ाई-लिखाई हो। इसके लिए स्कूलों के भवन तो अच्छे होने ही चाहिए, वहां विद्यार्थियों, खासकर छात्राओं के लिए टॉयलेट आदि सुविधाएं होनी चाहिए। शिक्षकों की परफारमेंस का गुण-दोष के आधार पर मूल्यांकन करके उनके लिए दंड-प्रोत्साहन की प्रणाली भी विकसित की जा सकती है। जाहिर है कि सरकार को शिक्षा क्षेत्र को अपनी प्राथमिकताओं में उच्च स्थान देना पड़ेगा। यदि एक बार स्कूलों में पठन-पाठन का अच्छा माहौल बन जाता है तो फिर नकल करने या रोकने की जरूरत ही नहीं रहेगी। बिहार अपनी मेधा के लिए विश्वविख्यात है। इस राज्य के विद्यार्थी देश-दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं, लेकिन ऐसे राज्य के भीतर नकल-आश्रित परीक्षा व्यवस्था होना शर्म की बात है। नीतीश सरकार ने नकल पर सख्ती करके परीक्षा प्रणाली की पवित्रता बढ़ाई है, लेकिन असली कसौटी स्कूल-कॉलेजों में पठन-पाठन का माहौल बनाना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इसके लिए संसाधनों की कमी नहीं होने देगी। दूसरी तरफ शिक्षकों, अभिभावकों और विद्यार्थियों को भी इस दिशा में अपने-अपने दायित्व पूरी ईमानदारी के साथ निभाने होंगे।
[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]
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