मधेपुरा । जिले के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले साढ़े चार लाख स्कूली
बच्चे दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं। स्थिति यह है कि पहले से कुपोषण की
मार झेल रहे बच्चे की रही सही कसर स्कूल में लगा चापाकल से निकलने वाली
गंदगी पूरा कर रहा है।
मालूम हो कि जिला में वर्ग एक से आठ तक में लगभग पांच लाख बच्चे, विभिन्न विद्यालय में नामांकित हैं। नामांकित बच्चों वाले 25 प्रतिशत में तो चापाकल तक नहीं है। ऐसे बच्चे स्कूल के आसपास के घरों में अपनी प्यास बुझा रहे हैं। हैरानी की बात है कि सर्व शिक्षा अभियान के सिविल विभाग के पास जिला के स्कूलों में लौह रहित चापाकल या सामान्य चापाकल का सही आंकड़े तक मौजूद नहीं है। हास्यास्पद है कि सिविल विभाग का प्रशासनिक कार्य देख रहे जेई दिपेन्द्र कुमार ने आंकड़ा देना असंभव बताया। जिले के स्कूली बच्चों को साफ पेयजल नहीं मिलने से कई बच्चे तो इतने बीमार हो गये कि वे विद्यालय तक नहीं जा रहे हैं। मजेदार बात है कि ग्रामीण सुदूर क्षेत्र की बात छोड़ दी जाय तो जिला मुख्यालय स्थित विद्यालयों की स्थिति नारकीय है। जिला मुख्यालय स्थित किसी भी विद्यालय के पास जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं शहर के एक मात्र विद्यालय में बना मॉडल शौचालय विवादों में घिरने के बाद बीमार अवस्था में है। जिला के चापाकल के साथ साथ शौचालय की स्थिति भी दयनीय है। सर्व शिक्षा अभियान के सिविल विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिला के लगभग 150 विद्यालय के प्रधान शिक्षक के पास शौचालय निर्माण की राशि वर्षो से पड़ा हुआ है। इसमें कई ऐसे प्रधान शिक्षक है जिसके पास वित्तीय वर्ष 2007-08 तक का रूपया अटका पड़ा है। इस मामले में भी मजेदार बात है कि ऐसे शिक्षकों के खिलाफ ठोस कार्रवाई के बजाय आंख मिचौली का खेल खेलते हैं। नतीजा जिला के 20 प्रतिशत प्राथमिक विद्यालय में आज भी शौचालय नहीं है। लोगों का कहना है कि जब पुराने स्कूलों की यह हालत है तो विगत पांच वर्षों में खुले विद्यालय की स्थिति वर्णित करना ही बेतुका है।
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दूषित जल से हानी : जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. डीपी गुप्ता कहते हैं कि दूषित जल पीने से पेट में संक्रमण की बिमारी, किडनी पर असर, दांत की बीमारी का खतरा रहता है।
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जिले के सभी स्कूलों में चापाकल की स्थिति का आकलन किया जा रहा है। जल्द ही सुधार का कार्य शुरू होगा। शिवशंकर राय, डीपीओ सर्व शिक्षा अभियान।
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मालूम हो कि जिला में वर्ग एक से आठ तक में लगभग पांच लाख बच्चे, विभिन्न विद्यालय में नामांकित हैं। नामांकित बच्चों वाले 25 प्रतिशत में तो चापाकल तक नहीं है। ऐसे बच्चे स्कूल के आसपास के घरों में अपनी प्यास बुझा रहे हैं। हैरानी की बात है कि सर्व शिक्षा अभियान के सिविल विभाग के पास जिला के स्कूलों में लौह रहित चापाकल या सामान्य चापाकल का सही आंकड़े तक मौजूद नहीं है। हास्यास्पद है कि सिविल विभाग का प्रशासनिक कार्य देख रहे जेई दिपेन्द्र कुमार ने आंकड़ा देना असंभव बताया। जिले के स्कूली बच्चों को साफ पेयजल नहीं मिलने से कई बच्चे तो इतने बीमार हो गये कि वे विद्यालय तक नहीं जा रहे हैं। मजेदार बात है कि ग्रामीण सुदूर क्षेत्र की बात छोड़ दी जाय तो जिला मुख्यालय स्थित विद्यालयों की स्थिति नारकीय है। जिला मुख्यालय स्थित किसी भी विद्यालय के पास जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं शहर के एक मात्र विद्यालय में बना मॉडल शौचालय विवादों में घिरने के बाद बीमार अवस्था में है। जिला के चापाकल के साथ साथ शौचालय की स्थिति भी दयनीय है। सर्व शिक्षा अभियान के सिविल विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिला के लगभग 150 विद्यालय के प्रधान शिक्षक के पास शौचालय निर्माण की राशि वर्षो से पड़ा हुआ है। इसमें कई ऐसे प्रधान शिक्षक है जिसके पास वित्तीय वर्ष 2007-08 तक का रूपया अटका पड़ा है। इस मामले में भी मजेदार बात है कि ऐसे शिक्षकों के खिलाफ ठोस कार्रवाई के बजाय आंख मिचौली का खेल खेलते हैं। नतीजा जिला के 20 प्रतिशत प्राथमिक विद्यालय में आज भी शौचालय नहीं है। लोगों का कहना है कि जब पुराने स्कूलों की यह हालत है तो विगत पांच वर्षों में खुले विद्यालय की स्थिति वर्णित करना ही बेतुका है।
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दूषित जल से हानी : जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. डीपी गुप्ता कहते हैं कि दूषित जल पीने से पेट में संक्रमण की बिमारी, किडनी पर असर, दांत की बीमारी का खतरा रहता है।
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जिले के सभी स्कूलों में चापाकल की स्थिति का आकलन किया जा रहा है। जल्द ही सुधार का कार्य शुरू होगा। शिवशंकर राय, डीपीओ सर्व शिक्षा अभियान।
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