नई दिल्ली: बचपन से हमारे सामने 'जिद' को नारारात्मक रूप में पेश किया जाता है, लेकिन बिहार के दरभंगा जिला निवासी आशीष कुमार ठाकुर की जिद ने ही उसे संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में सफलता दिलाई है. ग्राणीण परिवेश में बचपन बीता. प्रारंभिक शिक्षा भी गांव के सरकारी स्कूल से पूरी हुई. दरभंगा में रहकर इंटरमीडिएट की.
तमन्ना थी अपने सपनों को पंख देने की तो पश्चिम बंगाल से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी कर ली. एक मध्ययम वर्गीय परिवार के मुखिया धर्मनाथ ठाकुर ने भी एक पिता के नाते अपने बेटे की पढ़ाई में कोई कसर नहीं रखा. सदैव एक दोस्त की तरह प्रोत्साहन दी.
पेशे से शिक्षक मां शायामा कुमारी भी आज अपने नौनिहाल की सफलता से फूले नहीं शमा रही हैं. भला हो भी क्यों नहीं. आशीष अपने गांव का पहला ऐसा शख्स है जिसने यह मुकाम हासिल किया है. आशीष दरभंगा जिला के मनीगाछी प्रखंड के माऊंबेहट के रहने वाले हैं. इनके माता-पिता गांव में रहते हैं.
जब आशीष से हमारी बात हुई तो उन्होंने अपनी इस सफलता का श्रेय अपने मता-पिता के साथ-साथ गांव के गुरुजनों से लेकर दिल्ली में जिस कोचिंग से पढ़ाई पूरी की उसके तमाम शिक्षकों को दी. साथ ही उन्होंने कहा कि मेरे से ज्यादा मेरे परिवार, गांव और मेरे दोस्तों के चाह थी कि मैं इस परीक्षा में सफलता हासिल करूं. इससे मुझे बल मिलता गया और आज मैंने इस मुकाम को हासिल किया. इस दौरान उन्होंने अपने खास दोस्त का भी जिक्र किया, जिसके साथ रहकर दिल्ली में तैयारी पूरी की. बकौल आशीष, मोनू झा ने हर कदम पर मेरा साथ दिया. खुद सारा काम करता था और मुझे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता रहा.
यूपीएससी का इंटरव्यू देने के बाद हाल ही में आशीष ने गृह मंत्रालय में नौकरी ज्वाइन की. वह इन दिनों मध्यप्रदेश में ट्रेनिंग कर रहे हैं. इससे पहले 2016 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में इंटरव्यू तक का सफर तय किया था, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी थी. वर्ष 2018 में उनका चयन सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में बैंक पीओ की नौकरी मिली, लेकिन यूपीएससी की जिद में इसे ठुकरा दिया. आशीष को खुद पर भरोसा था.
एक मध्यम वर्गीय परिवार के छात्र के लिए सरकारी नौकरी ठुकराना कोई आसान बात नहीं रही होगी, लेकिन आशीष के इस निर्णय में पिता ने बखूबी साथ दिया. आज उस पल को याद करते हुए धर्मनाथ ठाकुर भावुक हो जाते हैं. आशीष ने अपने निर्णय और जिद को सही साबित कर सभी चाहने वाले को गर्व करने का मौका दिया है. आशीष ने यूपीएससी की परीक्षा में 346वां रैंक हासिक किया.
सोशल मीडिया के इस दौर में भी आशीष ने फेसबुक और ट्विटर जैसे माध्यम से खुद को दूर रखा. उनका कहना है कि सोशल मीडिया के इन माध्यमों से मैंने खुद को इसलिए दूर रखा क्योंकि अगर वहां मुझे मेरी बेहतरी के लिए कुछ मिल नहीं रहा था. मैंने इसलिए लगभग दो वर्षों से इससे दूरी बनाकर रखी. बाकी हर उस माध्यम का उपयोग किया जो मुझे मेरी तैयारी में मददगार साबित हो रहा हो. आज आशीष की सफलता से पूरे गांव वाले खुश हैं. उन्हें गर्व है कि अब उनका गांव भी इस प्रतिष्ठित पद से महरूम नहीं रह गया.
तमन्ना थी अपने सपनों को पंख देने की तो पश्चिम बंगाल से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी कर ली. एक मध्ययम वर्गीय परिवार के मुखिया धर्मनाथ ठाकुर ने भी एक पिता के नाते अपने बेटे की पढ़ाई में कोई कसर नहीं रखा. सदैव एक दोस्त की तरह प्रोत्साहन दी.
पेशे से शिक्षक मां शायामा कुमारी भी आज अपने नौनिहाल की सफलता से फूले नहीं शमा रही हैं. भला हो भी क्यों नहीं. आशीष अपने गांव का पहला ऐसा शख्स है जिसने यह मुकाम हासिल किया है. आशीष दरभंगा जिला के मनीगाछी प्रखंड के माऊंबेहट के रहने वाले हैं. इनके माता-पिता गांव में रहते हैं.
जब आशीष से हमारी बात हुई तो उन्होंने अपनी इस सफलता का श्रेय अपने मता-पिता के साथ-साथ गांव के गुरुजनों से लेकर दिल्ली में जिस कोचिंग से पढ़ाई पूरी की उसके तमाम शिक्षकों को दी. साथ ही उन्होंने कहा कि मेरे से ज्यादा मेरे परिवार, गांव और मेरे दोस्तों के चाह थी कि मैं इस परीक्षा में सफलता हासिल करूं. इससे मुझे बल मिलता गया और आज मैंने इस मुकाम को हासिल किया. इस दौरान उन्होंने अपने खास दोस्त का भी जिक्र किया, जिसके साथ रहकर दिल्ली में तैयारी पूरी की. बकौल आशीष, मोनू झा ने हर कदम पर मेरा साथ दिया. खुद सारा काम करता था और मुझे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता रहा.
यूपीएससी का इंटरव्यू देने के बाद हाल ही में आशीष ने गृह मंत्रालय में नौकरी ज्वाइन की. वह इन दिनों मध्यप्रदेश में ट्रेनिंग कर रहे हैं. इससे पहले 2016 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में इंटरव्यू तक का सफर तय किया था, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी थी. वर्ष 2018 में उनका चयन सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में बैंक पीओ की नौकरी मिली, लेकिन यूपीएससी की जिद में इसे ठुकरा दिया. आशीष को खुद पर भरोसा था.
एक मध्यम वर्गीय परिवार के छात्र के लिए सरकारी नौकरी ठुकराना कोई आसान बात नहीं रही होगी, लेकिन आशीष के इस निर्णय में पिता ने बखूबी साथ दिया. आज उस पल को याद करते हुए धर्मनाथ ठाकुर भावुक हो जाते हैं. आशीष ने अपने निर्णय और जिद को सही साबित कर सभी चाहने वाले को गर्व करने का मौका दिया है. आशीष ने यूपीएससी की परीक्षा में 346वां रैंक हासिक किया.
सोशल मीडिया के इस दौर में भी आशीष ने फेसबुक और ट्विटर जैसे माध्यम से खुद को दूर रखा. उनका कहना है कि सोशल मीडिया के इन माध्यमों से मैंने खुद को इसलिए दूर रखा क्योंकि अगर वहां मुझे मेरी बेहतरी के लिए कुछ मिल नहीं रहा था. मैंने इसलिए लगभग दो वर्षों से इससे दूरी बनाकर रखी. बाकी हर उस माध्यम का उपयोग किया जो मुझे मेरी तैयारी में मददगार साबित हो रहा हो. आज आशीष की सफलता से पूरे गांव वाले खुश हैं. उन्हें गर्व है कि अब उनका गांव भी इस प्रतिष्ठित पद से महरूम नहीं रह गया.