पटना [राज्य ब्यूरो]। बिहार के साढ़े तीन लाख नियोजित
शिक्षकों के समान कार्य समान वेतन पर सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार को भी
सुनवाई हुई। जस्टिस अभय मनोहर सप्रे और उदय उमेश ललित की डबल बेंच में भारत
सरकार के अटॉर्नी जनरल के वेणु गोपाल ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा। बहस
अभी जारी है। छह सितंबर को कोर्ट इस मामले में आगे की सुनवाई करेगा ।
भारत सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि बिहार के नियोजित शिक्षक समान वेतन के हकदार नही हैं, क्योंकि सेवा शर्त में ही उन्होंने लिखित शपथ पत्र दिया है कि वह कभी स्थायी शिक्षकों जैसी सुविधा और वेतन की मांग नहीं करेंगे। कोर्ट में बहस के दौरान वेणुगोपाल ने शिक्षकों की तुलना ड्राइवरों से की। उन्होंने कहा, विभिन्न विभागों में नियुक्त ड्राइवरों के वेतन अलग-अलग हो सकते हैं, तो शिक्षकों की श्रेणी और वेतन अलग-अलग क्यों नहीं हो सकते हैं।
अटॉर्नी जनरल की इस बात का विरोध शिक्षक संगठनों के वकीलों ने किया। अपनी आपत्ति में वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा सरकार द्वारा शिक्षकों की तुलना ड्राइवर से किया जाना शर्मनाक है। शिक्षक दिवस के मौके पर सरकार जानबूझकर शिक्षकों को अपमानित कर रही है। इस बयान से सरकार की सोच परिलक्षित होती है और पता चलता है कि सरकार देश को किस ओर ले जाना चाहती है। अटॉर्नी जनरल की इस बात का विरोध कोर्ट ने भी किया।
कोर्ट में बहस के दौरान वेणुगोपाल ने कोर्ट में स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार समान वेतन पर खर्च होने वाली इतनी बड़ी राशि का वहन नहीं कर सकती है। अटॉर्नी जनरल की बहस के दौरान जस्टिस उदय उमेश ललित ने पांच सवाल किए। कोर्ट ने पूछा कि क्या बिहार के नियोजित शिक्षकों की वेतन विसंगति कभी दूर होगी या नहीं। भारत के जिन राज्यों में सातवां वेतनमान लागू है या जिन राज्यों में इनके कैडर को मिला दिया गया है उनमें वेतनमान की समानता दी गई है या नहीं। जिन राज्यों में वेतनमान की समानता है, क्या उन राज्यों ने इसके केंद्र सरकार से कोई मांग या सवाल किए हैं। बिहार के नियोजित शिक्षकों के साथ भारत सरकार कब तक विषमता कायम रखेगी। कोर्ट ने वेणुगोपाल को इन सवालों का जवाब देने का आदेश दिए हैं।
कोर्ट में अटॉर्नी जनरल की बहस समाप्त होने के बाद शिक्षक संघों की ओर के वकीलों ने अपना पक्ष रखा। कपिल सिब्बल, राजीव धवन, और प्रशांत भूषण ने अपने पक्ष में संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या की। इन वकीलों की राय थी कि बिहार के नियोजित शिक्षकों को समान वेतन मिलना ही चाहिए।
भारत सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि बिहार के नियोजित शिक्षक समान वेतन के हकदार नही हैं, क्योंकि सेवा शर्त में ही उन्होंने लिखित शपथ पत्र दिया है कि वह कभी स्थायी शिक्षकों जैसी सुविधा और वेतन की मांग नहीं करेंगे। कोर्ट में बहस के दौरान वेणुगोपाल ने शिक्षकों की तुलना ड्राइवरों से की। उन्होंने कहा, विभिन्न विभागों में नियुक्त ड्राइवरों के वेतन अलग-अलग हो सकते हैं, तो शिक्षकों की श्रेणी और वेतन अलग-अलग क्यों नहीं हो सकते हैं।
अटॉर्नी जनरल की इस बात का विरोध शिक्षक संगठनों के वकीलों ने किया। अपनी आपत्ति में वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा सरकार द्वारा शिक्षकों की तुलना ड्राइवर से किया जाना शर्मनाक है। शिक्षक दिवस के मौके पर सरकार जानबूझकर शिक्षकों को अपमानित कर रही है। इस बयान से सरकार की सोच परिलक्षित होती है और पता चलता है कि सरकार देश को किस ओर ले जाना चाहती है। अटॉर्नी जनरल की इस बात का विरोध कोर्ट ने भी किया।
कोर्ट में बहस के दौरान वेणुगोपाल ने कोर्ट में स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार समान वेतन पर खर्च होने वाली इतनी बड़ी राशि का वहन नहीं कर सकती है। अटॉर्नी जनरल की बहस के दौरान जस्टिस उदय उमेश ललित ने पांच सवाल किए। कोर्ट ने पूछा कि क्या बिहार के नियोजित शिक्षकों की वेतन विसंगति कभी दूर होगी या नहीं। भारत के जिन राज्यों में सातवां वेतनमान लागू है या जिन राज्यों में इनके कैडर को मिला दिया गया है उनमें वेतनमान की समानता दी गई है या नहीं। जिन राज्यों में वेतनमान की समानता है, क्या उन राज्यों ने इसके केंद्र सरकार से कोई मांग या सवाल किए हैं। बिहार के नियोजित शिक्षकों के साथ भारत सरकार कब तक विषमता कायम रखेगी। कोर्ट ने वेणुगोपाल को इन सवालों का जवाब देने का आदेश दिए हैं।
कोर्ट में अटॉर्नी जनरल की बहस समाप्त होने के बाद शिक्षक संघों की ओर के वकीलों ने अपना पक्ष रखा। कपिल सिब्बल, राजीव धवन, और प्रशांत भूषण ने अपने पक्ष में संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या की। इन वकीलों की राय थी कि बिहार के नियोजित शिक्षकों को समान वेतन मिलना ही चाहिए।