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समान काम के लिए समान वेतन के सवाल पर पटना हाई कोर्ट के दिए गये जजमेंट पर बिहार सरकार के अपील पर बहस के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातें

TET-STET शिक्षक शिक्षिका मित्रों !
विगत 29 जनवरी को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने समान काम के लिए समान वेतन के सवाल पर पटना हाई कोर्ट के दिए गये जजमेंट पर बिहार सरकार के अपील पर बहस के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं है !

1) संकल्पना के धरातल पर कोर्ट ने शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन देने को जायज ठहरा दिया है !
2) स्थानीय निकायों से बहाली के वाबजूद शिक्षकों को तर्कसंगत वेतन देने की जरुरत रेखांकित की है !
3) राज्य सरकार को प्रधान सचिव स्तर की कमिटी बनाकर समान काम के लिए समान वेतन देने का विधिसम्मत ढंग से आवश्यक प्रस्ताव भेजने का निदेश दिया है !
4) एरियर जोड़कर देने सम्बन्धी पटना हाई कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार के दलील को गंभीरता से लेते हुए एक स्तर की स्वायत निर्णय का हक़ राज्य को दे सकती है !
5) राज्य सरकार वित्तीय अक्षमता का रोना रोती रही !
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निदेश के बाद से अफवाहों का बाजार गर्म है ! तरह तरह की बातें हो रही है ! आशंकाओं संदेहों की होड़ दिख रही है ! कई तरह के आरोप प्रत्यारोप आभासी मीडिया पर तैरते दिख रहे हैं ! कुछ लोग ये बोल रहे हैं कि Rte का सवाल नही उठाया गया ! कुछ ये बोल रहे हैं कि tet शिक्षकों का पक्ष प्रमुखता से नही उठ रहा है ! कुछ लोग यह भोलेपन की उम्मीद पाले हुए बैठे थे की पहले दिन ही सरकार की एसएलपी धराम से गिरेगी ! कुछ लोग NCTE के रेगुलेशन के चर्चा नही होने पर अपनी चिंता व्यक्त करते दिख रहे हैं ! आशंकाओं से दिक्कत नही है क्योंकि आशंकाएं हमें सतर्क और सावधान बनती है ! लेकिन हर चीज की अधिकता नुकसानदेह चीज है ! लिहाजा अतिरेकपूर्ण संदेहों से मुक्ति और पुरे आत्मविश्वास के साथ अपनी लड़ाई को मुकम्मल अंजाम की तरफ बढ़ाना वक्त की फौरी जरुरत है ! अतएव यह जरुरी है कि हम परिस्थितियों का समेकित अध्ययन करें ! हम बेहद मजबूत स्थिति में है और अपनी पूरी उर्जा हम सर्वोच्च न्यायालय में चल रही लड़ाई पर केन्द्रित करें ! पहली बात तो ये कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय बिहार सरकार नही है जो हम tet –stet शिक्षकों के साथ वरीयता के आधार पर कोई भेदभाव करे ! भेदभाव के खिलाफ ही समानता के सवाल पर हम वहां हैं ! और हमारे सवाल को माननीय न्यायालय ने काफी गंभीरता से लेते हुए ही बहस की शुरुआत की है ! बहस के पहले दिन स्वाभाविक रूप से राज्य सरकार के वकीलों को ज्यादा समय कोर्ट ने दिया ! शिक्षकों की तरफ से जो डिमांड अधिवक्ताओं ने रखा वो आलरेडी माननीय पटना हाई कोर्ट के ऐतेहासिक जजमेंट में दर्ज भी है जिसपे माननीय सर्वोच्च निश्चितरूप से गंभीरतापूर्वक अध्ययन कर रही है ! संकल्पना के धरातल पर माननीय कोर्ट द्वारा शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन देने को जायज ठहराना हमारे जीत की दिशा में पहला मील का पत्थर है ! हमारे वकील ने मौखिक एवं लिखित दोनों रूपों में ncte के फ्रेम में पात्रताधारी शिक्षकों के योग्यता के सवाल को लड़ाई का महत्वपूर्ण हथियार बनाना शुरू किया है !
दूसरी बात बिहार सरकार के प्रधान सचिव स्तर की कमेटी जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय को समान काम के लिए समान वेतन देने का विधिसम्मत ढंग से आवश्यक प्रस्ताव भेजने का काम करना है वो हवा में प्रस्ताव नही बनाएगी ! प्रस्ताव का विधिसम्मत होना अनिवार्य है ! विधिसम्मत नही होने की स्थिति में पुरजोर क़ानूनी चुनौती tet stet शिक्षकों के वकील वहां देंगे ! जिसकी तैयारी में tsunss गोपगुट लगी हुई है ! अनुभव आधारित वरीयता पूरी तरह ncte के रेगुलेशंस और शिक्षा का अधिकार की संकल्पना के खिलाफ है ! सुप्रीम कोर्ट के पिछले जजमेंट में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि अनुभव, कार्य सम्बन्धी योग्यता का (सबस्टीच्यूट) विकल्प नही हो सकता है ! कार्यसम्बन्धी योग्यता सेवापुर्व शर्त है – और यह यथानिदेशित मूल्याङ्कन से सर्वथा भिन्न चीज है !
तीसरी बात माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला प्राथमिक माध्यमिक दोनों स्तर के शिक्षकों पर आनेवाला है और फैसले का फ्रेम में tet stet दोनों तरह के शिक्षक समान रूप से शामिल होंगे ! लिहाजा tet बनाम stet की घृणित विभाजनकारी व्यक्तिवादी राजनीति का भी इस युद्ध बेला में कठोर निषेध होनी चाहिए !
चौथी बात राज्य को प्रस्ताव बनाने का अधिकार है शिक्षकों के पेशेवर एवं अकादमिक योग्यताओं को परिभाषित करने का अधिकार नही है ! यह कार्य महज ncte ही कर सकती है और कोई सरकार किसी तरह का योग्यता या वरीयता सम्बन्धी प्रस्ताव उसी आधार पर बना सकती है ! लिहाजा किसी भी स्थिति में बिहार सरकार के कमिटी के प्रस्ताव पर हमें कड़ी नजर रखते हुए उसका क़ानूनी मुकाबला करने के लिए तैयार होना होगा !
पांचवी बात, समान काम के लिए समान वेतन पर फैसला सुनाते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय किसी भी स्थिति में शिक्षा के अधिकार कानून और ncte के रेगुलेशंस को दरकिनार नही कर सकती है ! क्योंकि यह केवल आम कर्मचारियों को समान काम के लिए समान वेतन देने का मसला नही है बल्कि यह फैसला शिक्षकों के लिए है और शिक्षकों के पेशेवर और अकादमिक योग्यताओं पर राज्य नियमावली के रद्द होने की स्थिति में केन्द्रीय कानून ही मार्गनिदेशक भूमिका में सामने आएगी ! और इसे प्रमुखता से लेन की जिम्मेवारी के साथ संगठन मुस्तैद भी है !
tsunss गोपगुट मजबूती के साथ माननीय सर्वोच्च न्यायालय में TET-STET शिक्षक शिक्षिका मित्रों के अधिकार की लड़ाई लड़ रही है ! माननीय सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान रुख खासकर TET-STET शिक्षक शिक्षिका मित्रों के लिए निर्णायक जीत की दिशा में बढ़ते दृढ कदम की ओर ही संकेत कर रहा है !
जिन लोगो को ये लगता है कि अनुभव, के आधार पर वरीयता के खेल को आसानी से बिहार सरकार खेल लेगी उन्हें जरा क़ानूनी पहलुओं से भी परिचित हो लेनी चाहिए !
अनुभव, कार्य सम्बन्धी योग्यता का (सबस्टीच्यूट) विकल्प नही हो सकता है !
कार्यसम्बन्धी योग्यता सेवापुर्व शर्त है – और यह यथानिदेशित मूल्याङ्कन से सर्वथा भिन्न चीज है !
सुप्रीम कोर्ट के अलावे इलाहबाद खंडपीठ के 12/09/2015 को
WRIT - A No 34833 of 2014
Anand Kumar Yadav & Ors
Vs
Union of India & Ors
With
WRIT - C No 32572 of 2014
Shivam Rajan & Ors
Vs
State of U P & Ors
With
WRIT - C No 46000 of 2014
Anshuman Srivastava & Ors
Vs
Union of India & Ors एवं संलग्न अन्य याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए भी कहा !
C8 Experience on the job is not a substitute for qualification
The contention that the experience gained by Shiksha Mitras over the course of their engagement should obviate the need of obtaining the essential qualification cannot be accepted for more than one reason. Firstly, the essential qualification must be held by the person on the date of entry into the service. If the entry be preceded by a selection process it is liable to be tested with reference to the date of advertisement. Viewed from any angle, the Shiksha Mitras did not possess the requisite qualification on either of the relevant cut off dates. Secondly, the experience that may have been gained by a person has never been construed as a substitute for an essential qualification that is statutorily prescribed. Acceptance of this contention would have grave ramifications, fall foul of settled precedent on the subject and be against the basic tenets of Article 16 and principles governing public employment.
While dealing with a similar contention, the Supreme Court in State of M P Vs Dharam Bir26 observed:
"31. The plea that the Court should have a "human approach" and should not disturb a person who has already been working on this post for more than a decade also cannot be accepted as the Courts are hardly swayed by emotional appeals. In dispensing justice to the litigating parties, the courts not only go into the merits of the respective cases, they also try to balance the equities so as to do complete justice between them. Thus the courts always maintain a human approach. In the instant case also, this approach has not been departed from. We are fully conscious that the respondent had worked on the post in question for quite a long time but it was only in ad hoc capacity. We are equally conscious that a selected candidate who also possesses necessary educational qualification is available. In this situation, if the respondent is allowed to continue on this post merely on the basis of his concept of "human approach", it would be at the cost of a duly selected candidate who would be deprived of cleared the selection. In fact, it is the "human approach" which requires us to prefer the selected candidate over a person who does not possess even the requisite qualification. The Courts as also the Tribunal have no power to override the mandatory provisions of the Rules on sympathetic consideration that a person, though not possessing the essential educational qualifications. should be allowed to continue on the post merely on the basis of his experience. Such an order would amount to altering or amending the Statutory provisions made by the Government under Article 309 of the Constitution.
32. "Experience" gained by the respondent on account of his working on the post in question for over a decade cannot be equated with dducational qualifications required to be possessed by a candidate as a condition of eligibility for promotion to higher posts. If the Government, in exercise of its executive power, has created certain posts, it is for it to prescribe the mode of appointment or the qualifications which have to be possessed by the candidates before they are appointed on those posts. The qualifications would naturally vary with the nature of posts or the service created by the Government."
ऐसा एकदम नही है कि राज्य सरकार की कमेटी कानूनों को तक पर रखके कोई प्रस्ताव माननीय सुप्रीम कोर्ट में रखेगी और वो न्यायालय के द्वारा मान ली जायेगी ! जिन लोगो को ये लगता है कि बिहार सरकार 2015 की तर्ज पर वरीयता का षड्यंत्र रचते हुए tet stet शिक्षकों को उनके वाजिब अधिकार से जिस प्रकार से वंचित किया उसी प्रकार से माननीय सर्वोच्च न्यायालय में भी वरीयता का वितंडा खड़ा करके बिहार सरकार tet stet शिक्षकों को धोखा देने का काम करेगी उन्हें इलाहबाद खंडपीठ के जजमेंट के इस हिस्से को जरुर ही पढनी चाहिए ! जिसमे स्पष्ट रूप से राज्य के अधिकारों के क़ानूनी पहलु का विधिवत वर्णन दृष्टव्य है !
C7 Extent of State power under Article 162 to order regularisation
In State of UP Vs Neeraj Awasthi23, the Supreme Court considered the issue of a State direction refusing to accord approval to a regulation sought to be framed for regularization of illegal appointments. The Supreme Court approved the principles enunciated in the following cases:
(a) A Umarani Vs Registrar, Coop Societies24 where it was held that:
"45. No regularization is, thus, permissible in exercise of statutory power conferred under Article 162 of the Constitution if the appointments have been made in contravention of the statutory rules."
(b) Mahendra L Jain Vs Indore Development Authority25 where it was held that:
"... An illegal appointment cannot be legalized by taking recourse to regularization. What can be regularized is an irregularity and not an illegality..."
In Neeraj Awasthi, the Supreme Court observed that:
"57. If no appointment could be made by the State in exercise of its power under Article 162 of the Constitution as the same would be in contravention of the statutory rules, there cannot be any doubt whatsoever that the Board or for that matter the Market Committee cannot make an appointment in violation of the Act and Regulations framed thereunder
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 254 :- संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडल द्वारा बनाए गए विधियों में असंगति की स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा सम्बंधित विषय पर बनाया गया कानून ही प्रभावी व मान्य होती है !
पुराने शिक्षक जो नियमित वेतनमान पर भत्तों और पेंशन समेत प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त हैं और नये शिक्षक जो संशोधित वेतनमान पर बिना प्रोन्नति प्रावधान के एवं बिना उचित सेवा शर्तों पर स्थानीय निकायों में नियुक्त हैं --- इस प्रकार के दो केडरों के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम में कोई जगह नही है !
पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण प्रक्रिया और कानूनों में विसंगति की रौशनी में शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया को असंवैधानिक करार देते हुए नियोजन नियमावली को रद्द किया है ! अनुच्छेद 254 के आधार पर शिक्षा अधिकार कानून के फ्रेम में विसंगतियों को चुनौती देते हुए ही हम अपने अधिकार के बहाली के सवाल को प्रमुखता से उठाएंगे !
बजट का रोना रोकर राज्य सरकार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे समवर्ती विषयों पर विसंगतिपूर्ण राज्य कानून बनाकर अपने हाथ पीछे नही खीच सकती है ! माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई जजमेंट में इस बात को रेखांकित किया है ! इसके लिए उन्हें सम्बंधित विषयों पर केन्द्रीय कानूनों के चरित्र में भारी बदलाव करना पड़ेगा जोकि फिलहाल संभव नही दीखता है ! संसाधनों की कमी के नाम पे कर्मचारियों को समान काम के लिए समान वेतन के अधिकार से वंचित नही किया जा सकता है ! यह बात कई जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट बोल चुकी है !
शिक्षक भाइयों एवं शिक्षिका बहनों , यह दौर पूरी ताकत के साथ अपनी उर्जा सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई को मजबूत बनाने की है ! सतर्कता के साथ उत्साहजनक सक्रियता व निर्णायक पहलकदमी के साथ मसले पर पूर्ण एकाग्रता वक्त की जरुरत है ! तमाम तरह के भ्रम से दूर रहे ! अपने विवेक का इस्तेमाल करें ! सम्बंधित मसले पर जमकर अध्ययन करें संगठन को भी सुचना से लेकर तथ्यों के धरातल पर मजबूत करने का काम करें ! tsunss गोपगुट बिहार के tet stet शिक्षकों के संघर्ष की अग्रदूत है और इसे निश्चित तौर पर आनेवाले वक्त में साबित करके दिखायेगी !
tsunss गोपगुट जिंदाबाद , शिक्षक एकता जिंदाबाद !
ज्ञानप्रकाश
tsunss गोपगुट बेगूसराय

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