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शिक्षक की प्रजाति तीन-चार प्रकार के

समाज में तरह-तरह के जीव-जंतु रहते हैं। शिक्षक भी उनमे से एक हैं। शिक्षक की प्रजाति तीन-चार प्रकार के होते है।एक प्रकार कॉलेज के शिक्षक (Professor), जिनको इतना वेतन मिलता है कि उसे खर्च करने के लिए विभिन्न प्रकार के योजना बनाने पड़ते हैं। तब भी खर्च नहीं हो पता है।
दूसरा प्रकार वेतनमान वाला शिक्षक, जिनको इतना वेतन तो मिल ही जाता है कि सम्मान के साथ रोटी, कपड़ा और मकान का उपाय हो जाता है।शिक्षक के तीसरे प्रजाति 'टीचर' कहलाते हैं, जिन्हें शिक्षक कहने पर चोट पहुँच जाती है और भड़क जाते हैं। ये उनका स्वभावगत समस्या है। दरअसल ये शिक्षक प्राइवेट स्कूल और रेजिडेंशियल स्कूल के नाम पर इतना कमाते हैं, इतना कमाते है कि कहना मुश्किल है कि कितना कमाते हैं। वैसे ये शिक्षक धन्यवाद के पात्र हैं क्योंकि इन्ही के बदौलत इंग्लिश और इंग्लिश टाइप शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है।अब शिक्षक के एक अन्य प्रजाति के बारे में चर्चा करेंगे जो खुद को शिक्षक कहने में शर्म महसूश करते हैं। इनके शारीर पर न ठीक से कपड़ा, न पॉकेट में हरियाली, न ठीक से भोजन और न ही बाल-बच्चों खातिर दवा और इलाज। ये सब उनका सपना बन कर रह गया हुआ है। ये हाल तो रहेगा ही क्योंकि सरकार इन्हें अपना अंग तो क्या पराया अंग मानने से भी इंकार करती है। वैसे तो सरकारइन्हें जीव-जंतु रहने लायक छोड़ा ही नहीं है। तब भी मैं बता रहा हूँ की इस प्रकार के जीव-जंतु 'नियोजित शिक्षक' कहलाते हैं। 'नियोजित शिक्षक' का मतलब- सरकार द्वारा पोषित समाज का एक ऐसा जीव जिसको सरकार से लेकर चपरासी तक उसके साथ दोयम दर्जा तो क्या किसी भी दर्जा का व्यवहार नहीं करते है।सरकार ने तय किया कि स्कूल नहीं आने वाले बच्चे को स्कूल पहुंचाकर तीन-चार घंटी पढाने के सेवाभाव से काम करने वाले शिक्षामित्र होंगे। बाद में इनका बढ़िया सेवा देखकर इनको नियोजित शिक्षक बना दिया गया। इनका मानदेय मामूली रूप से बढ़ाकर एक लॉलीपोप चूसा दिया गया।खेल इतना पर ही समाप्त नहीं हुआ, इसके बाद नया नया नियमावली बना कर बहाली होने लगी। बाद में T.E.T. परीक्षा लेकर नियोजित शिक्षक बनाया गया और प्रक्रिया चल ही रही है। बाद बाकि सरकार की ढुलमुल नीति के वजह से सब धन बाईस पसेरी बन कर रह गयी।सबसे मज़े की बात यह है कि नियोजित शिक्षक से आदमी, घर, TV, रेडियो, मोबाइल, स्कूटर, गाड़ी, गाय-बैल, बकरी-बोका, मुर्गा-मुर्गी से लेकर गर्ववती महिलाओं तक की गिनती का काम लेने लगी सरकार। BLO से लेकर राशन कार्ड-कूपन, आदमी की जात और कमाई का हिसाब लेने का भी काम नियोजित शिक्षकों को दिया गया।सैकड़ों काम कराने के बाद भी शिक्षक को एक मजदुर से भी कम मजदूरी देकर ठगने में जुटी सरकार, सुशासन का ढिंढोरा पीट रही है और अपने मूंछ पर ताव मार रही है। वेतनमान की लड़ाई लड़ रही शिक्षक को रोज नई तारीख़ देकर टरका रही है

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