बिहार बोर्ड स्‍कैम: सबक नहीं सीखा, इसलिए दोहराया इतिहास

पटना [सद्गुरु शरण]। कहावत है कि जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते, वे वही इतिहास दोहराने को अभिशप्त होते हैं। बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट परीक्षा का आर्ट्स टॉपर विवाद और अन्य गड़बडिय़ां इसी कहावत पर मुहर लगा रही हैं।

बोर्ड परीक्षा में पिछले दो साल टॉपर विवाद हो चुका। इसे लेकर बोर्ड अधिकारी और परीक्षार्थी जेल भी गए। इसके बावजूद इस साल भी उसी तरह का विवाद खड़ा होने से जाहिर है कि राज्य के शिक्षा विभाग और बिहार बोर्ड ने पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं सीखा। इसके चलते ये संस्थाएं इतिहास दोहराने को अभिशप्त हो गईं।
अब जरा मौजूदा विवाद के घटनाक्रम पर गौर करिए तो साफ दिखेगा कि लाखों परीक्षार्थियों के भविष्य से जुड़े मामले में भी किस तरह 'राजनीति' हो रही थी। रिजल्ट के अगले दिन जब मीडिया ने गणेश कुमार के आर्ट्स टॉपर होने पर सवाल खड़े किए तो शिक्षामंत्री अशोक चौधरी ने बेहद तल्खी के साथ यह कहते हुए अनावश्यक आक्रामकता दिखाई कि क्या मीडिया के लोग संगीत विशेषज्ञ हैं जो गणेश कुमार की मेधा पर सवाल खड़े कर रहे? मंत्रीजी के इस सवाल का जवाब उन्हें अब मिल चुका है यद्यपि उन्होंने अपने मीडिया संबंधी बयान पर अब तक कोई अफसोस नहीं जताया। खैर।
हर कोई सहमत होगा कि मीडिया पर बेवजह 'हमला' करते वक्त मंत्रीजी वास्तव में लोकतंत्र की भावना पर 'हमला' कर रहे थे। मीडिया तो खैर लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है, यदि कोई आम आदमी भी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है तो जन प्रतिनिधियों की बाध्यता है कि सवालों के स्पष्ट जवाब देकर जनता को संतुष्ट करें।
आज के मंत्रियों से कोई यह अपेक्षा नहीं करता कि वे लाल बहादुर शास्त्री की तरह अपने विभाग की गड़बड़ी की जिम्मेदारी स्वीकार करेंगे। इसके बावजूद इतनी अपेक्षा तो की ही जाती है कि वे संयत रहेंगे। आक्रामकता इस संकल्प में दिखनी चाहिए थी कि इस साल बोर्ड परीक्षा परिणाम में एक भी त्रुटि नहीं रहने दी जाएगी। इसके लिए रोज गहन समीक्षा होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
शिक्षा विभाग और बिहार बोर्ड की गैर जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली की वजह से मेधावी परीक्षार्थियों समेत पूरा बिहार अपमानित हुआ। शिक्षा विभाग की 'अति-आक्रामकता' के सामने यह सवाल सहमा हुआ है कि टॉपर घोटाले से पर्दा हटने के बावजूद इस बात का जवाब नहीं मिल रहा कि जेईई जैसी कठिन परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले तमाम परीक्षार्थी बिहार बोर्ड परीक्षा में कैसे अनुत्तीर्ण हो गए?
शिक्षा विभाग ने राज्य के छात्र-छात्राओं के साथ मजाक किया है। कम से कम जेईई क्वॉलीफाई कर चुके परीक्षार्थियों की कॉपियां दोबारा जांची जानी चाहिए। स्क्रूटनी में सिर्फ री-टोटलिंग की जाती है। उससे बात नहीं बनेगी। मेधावी परीक्षार्थियों का भविष्य बर्बाद होने से बचाया जाना चाहिए। जिन शिक्षकों ने कॉपियां जांचने में यह 'पाप' किया है, उन्हें जो सजा दी जाए, कम है। बोर्ड परीक्षा में फेल कर दिए गए मेधावियों की मनोदशा क्या होगी, महसूस किया जा सकता है।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य के युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित-प्रोत्साहित करने में जी-जान लगाए हुए हैं, उसी वक्त शिक्षा विभाग ने युवाओं को मायूसी में डुबो दिया। इस भारी चूक का अविलंब परिमार्जन किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर राज्य के युवा भरोसा करते हैं। इस भरोसे की हिफाजत की जानी चाहिए। बिहार बोर्ड भी अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकता। बोर्ड के अधिकारियों को बताना चाहिए कि वे साल भर क्या तैयारी कर रहे थे? इसी के साथ अब भविष्य के रोडमैप पर काम शुरू हो जाना चाहिए। लगातार दूसरे साल बोर्ड परीक्षा का 'टॉपर' जेल में है। यह बेहद अशोभनीय दृश्य है।

शिक्षा विभाग के सामने चुनौती है कि राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में पठन-पाठन का माहौल कैसे वापस लाया जाए। इस पर व्यापक बहस चलनी चाहिए। राज्य को कलंकित कर रहीं घटनाओं के लिए शिक्षक किसी से कम जिम्मेदार नहीं हैं। वे जिम्मेदारी के साथ पढ़ाते तो राज्य के आम-ओ-खास लोगों को 'प्रॉडिगल साइंस' और 'मैथिल कोकिला लता मंगेशकर' जैसे जुमलों की शर्मिंदगी न झेलनी पड़ती।

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