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31 जनवरी तक होना था निजी शिक्षण संस्थानों का पंजीयन

सुपौल : वर्ष 2009 में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची में शामिल किया गया. सरकारी से लेकर निजी शिक्षण संस्थानों के संचालन को लेकर इसके बाद नियम-कायदे बनने लगे और इन नियम-कायदों में इस बात का ख्याल रखा गया कि देश में सभी के लिए शिक्षा सुलभ तरीके से उपलब्ध हो सके. जाहिर है इसका उद्देश्य शैक्षणिक सुधार के रास्ते विकास का मार्ग प्रशस्त करने की थी. समय-समय पर इसके तहत कार्रवाई भी हुई. लेकिन निजी शिक्षण संस्थानों पर नियंत्रण के मामले में सारी कवायद सिफर ही साबित हुई है. हाल ही में सूबे के शिक्षा मंत्री ने एक बार फिर शिक्षण संस्थानों पर नियंत्रण को गंभीरता से लिया.
 
इसके तहत सभी जिलाधिकारी व जिला शिक्षा पदाधिकारी को पत्र प्रेषित कर पहले 31 दिसंबर और फिर 31 जनवरी तक शिक्षण संस्थानों का पंजीयन सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया. वही निर्धारित समय सीमा के अंदर पंजीयन नहीं कराने वाले संस्थानों के विरुद्ध कार्रवाई का निर्देश भी दिया गया. लेकिन समस्या यह है कि पंजीयन के प्रावधानों को लेकर विभाग से लेकर जिला प्रशासन तक अनभिज्ञ है. यही कारण है कि आदेश के बावजूद दिसंबर माह में भी किसी स्कूल अथवा कोचिंग का पंजीयन नहीं कराया जा सका. दिलचस्प यह है कोचिंग संस्थानों के पंजीयन को लेकर भी एसएसए डीपीओ को डीइओ द्वारा आदेश निर्गत कर मामले से पल्ला झाड़ लिया गया.
 
तीन सदस्यीय है स्कूल संचालन निगरानी समिति : निजी स्कूलों के पंजीयन व निगरानी को लेकर चार सदस्यीय समिति गठित है. जिसमें जिला शिक्षा पदाधिकारी समिति के अध्यक्ष तथा एसएसए डीपीओ सचिव हैं. जबकि समिति में जिलाधिकारी द्वारा मनोनित वरीय उप समाहर्ता के रूप में ब्रज किशोर लाल बतौर सदस्य की भूमिका में हैं. फिलहाल जिले में कुल 90 स्कूल बिहार राज्य बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा नियमावली 2009 के तहत पंजीकृत हैं. जबकि आवेदकों की संख्या 185 है.
 
हालांकि सुखद यह है कि यह आंकड़ा नवंबर 2016 का है, जब अंतिम बार स्कूलों को पंजीयन निर्गत किया गया है. इसके बाद से न तो किसी भी स्कूल ने आवेदन किया और न ही उन्हें पंजीयन निर्गत किया गया है. प्रावधानों के अनुसार समिति के नियमित अंतराल पर बैठक होनी है और नियमावली के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करना है. पंजीयन निर्गत करने के पूर्व समिति को संबंधित विद्यालय की जांच सुनिश्चित करनी है. जबकि जांच की पूरी प्रक्रिया आवेदन के छ: माह के भीतर पूरा करना है. मानकों पर खड़ा उतड़ने पर स्कूल प्रबंधन को अधिकतम एक वर्ष का समय दिया जा सकता है. जबकि इस अवधि में भी अपुनालन नहीं होने की स्थिति में दो वर्ष के अंदर संचालक को स्कूल बंद करने का प्रावधान है.
 
प्रावधानों को ले अधिकारियों में भी है ऊहापोह की स्थिति : यह प्रावधानों की जानकारी के अभाव की ही परिचायक माना जा सकता है कि जिस कोचिंग के संचालन व निगरानी की जिम्मेवारी जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति पर है, उसके अनुपालन हेतु विभाग से पत्र मिलने के बाद जिला शिक्षा पदाधिकारी मो हारुण द्वारा सर्वशिक्षा डीपीओ गिरीश कुमार को पत्र भेज कर अनुपालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है. जबकि कोचिंग के मामलों में उनका दूर-दूर तक का नाता नहीं है. नतीजा है कि भ्रम की स्थिति से इच्छुक कोचिंग संचालक भी बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. 
 
  दरअसल विभागीय आदेश के बाद कोचिंग संचालकों को ताला बंद होने का डर सताने लगा, कई कोचिंग संचालकों ने डीइओ कार्यालय से संपर्क साधा. लेकिन हैरत की बात यह रही कि उन्हें पंजीयन की प्रक्रिया और प्रावधानों की जानकारी तक नहीं दी गयी. हां, सुझाव के तौर पर उन्हें एसएस डीपीओ के कार्यालय जाने को कह दिया गया. वही डीपीओ कार्यालय में स्पष्ट निर्देश नहीं होने की वजह से कोचिंग संचालक पंजीयन की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाये हैं.
 
आलम यह है कि जिले में पंजीकृत कोचिंग संस्थानों का आंकड़ा अभी भी शून्य के अंक से आगे नहीं निकल पाया है. जबकि मियाद बीत जाने के कारण कोचिंग संचालकों के चेहरों पर स्पष्ट तौर पर चिंता की लकीरें देखी जा सकती है. वही दूसरी ओर विभागीय उदासीनता के कारण सरकार को भी राजस्व का चूना लग रहा है और छात्र सहित अभिभावक भी दोहन का शिकार हो रहे हैं.
 
कोचिंग संचालन व निगरानी समिति का नहीं हुआ है गठन
 
बिहार कोचिंग रेगुलेशन एक्ट 2010 मार्च महीने में पारित हुआ था. जिसके तहत 10 से अधिक छात्रों को शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक अथवा संस्थानों को एक्ट के दायरे में रखा गया था. इसके तहत 10 से अधिक छात्रों को पढ़ाने के लिए संबंधित कोचिंग संचालक के लिए पंजीयन अनिवार्य किया गया. पंजीयन के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्धता सुनिश्चित करने के बाद 05 हजार रुपये का डिमांड ड्राफ्ट व आवेदन जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय में लिया जाना था.
 
इससे पूर्व संचालन व निगरानी समिति का गठन भी होना था. लेकिन दिलचस्प यह है कि जिले में इस समिति का गठन कभी हुआ ही नहीं. प्रावधानों के अनुसार जिलाधिकारी को समिति का पदेन अध्यक्ष, पुलिस अध्यक्ष को उपाध्यक्ष तथा जिला शिक्षा पदाधिकारी को पदेन सचिव बनाया गया है.
 
जबकि समिति का चौथा व अंतिम सदस्य के रूप में जिला मुख्यालय स्थित प्रस्वीकृत कॉलेज के प्राचार्य को सदस्य बनाया जाना है. एक से अधिक कॉलेज होने की स्थिति में यह सदस्य हर वर्ष रोटेशन पॉलिसी के तहत बदल जाता है. समिति को नियमित बैठक के माध्यम से प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी है. लेकिन जिले में समिति गठन नहीं होने की वजह से यह संभव नहीं हो पा रहा है. खुद प्रशासनिक दस्तावेज बताते हैं कि अब तक जिले में कभी समिति का न तो गठन हुआ और न ही कभी बैठक आयोजित की गयी.
 
विभागीय निर्देश के आलोक में पहल आरंभ की गयी है. शिक्षण संस्थानों को पंजीयन के लिए आमंत्रित किया गया है. शीघ्र ही इस दिशा में कार्रवाई आरंभ की जायेगी.

मो हारुण, जिला शिक्षा पदाधिकारी, सुपौल

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