जीवन की विभिन्न धाराओं से तादात्म्य रखते हुए अपने शिक्षण कार्य को जीवंत करने का अदम्य साहस रखने वाले सूबे के उन तमाम नियोजित शिक्षकों की व्यथा-कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
एक चिरपरिचित सज्जन वर्षों बाद मिले, उत्सुकतावश पूछा मुझसे-क्या करते हो ?? मैंने प्रत्युत्तर दिया;शिक्षक हूँ । मेरा यह परिचय शायद उनकी नजरों में पर्याप्त नहीं था । सहसा वो पूछ बैठे-कौन 2000 बैच या 34540 कोटि........मैंने कहा दोनों में से कोई नहीं । वो तुरंत भांप गए और मेरे कुछ कहने से पहले ही कह गए-नयका मास्टर । मैंने बड़े शांत स्वभाव से उनको प्रतिक्रिया दी;हाँ जी एक टीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक ।
समाज का दंश झेलने को मजबूर हम नियोजित शिक्षक विरासत के तौर दशकों से चले आ रहे गलत और अतार्किक शिक्षक संघर्ष की एक मात्र उपज हैं । ये पीढ़ियों की लड़ाई है-लोकतंत्र के इस दौर में भी 80-90 वर्ष का व्यक्ति भी सत्ता में बने रहने के लिए महज स्वार्थ के वशीभूत होकर हम शिक्षकों का हमदर्द बना बैठा है । एक वयोवृद्ध शिक्षक नेता क्या हमारी आज की युवा पीढ़ी का दुःख दर्द समझने की प्रबुद्धता रखता है ?? अगर सचमुच रखता तो इतने शिक्षक संघों का अस्तित्व ही न होता । बिहार शिक्षक राजनीति में जरा माध्यमिक शिक्षक संघ के इतिहास को उलट कर देखिए-आपको समझ में आ जाएगा कि हमारा वजूद क्या है और भावी पीढ़ी के लिए हम शिक्षा जगत् में कैसा स्वर्णिम भविष्य रचने जा रहे हैं । ऐसे शिक्षा के क्षेत्र में कैरियर बनाने में हमारी युवा पीढ़ी न तो उत्साह दिखाएगी जहाँ न किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा,न पेंशन और न अन्य राज्यकर्मियों की भांति विशेष सुविधाएं । ये दशकों से संघर्षरत रहे शिक्षक आंदोलनकारियों की अनमोल विरासत है जो हमें अनिवार्य रूप से "नियोजित" शब्द के तोहफे के रूप में मिली है ।
अब बात सामाजिक परिवेशों की जहाँ योग्यता व मेधा को हमेशा ही अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है,जहाँ यत्र तत्र सर्वत्र अर्थशास्त्र की भाषा ही चलती है । ऐसे हालात में अपनी गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखना कितना दुरूह कार्य है-यह आज का नियोजित शिक्षक भलीभांति जानता है ।आर्थिक सशक्तीकरण के इस दौर में हमारा दायित्व निर्वहन कैसे होगा भगवान ही मालिक ??
समान काम समान वेतन के मसले पर सरकार तो संवेदनहीन है किन्तु अब हम नियोजित शिक्षकों की बारी है-बिना किसी भेदभाव के आपसी चट्टानी एकता को उचित अवसर पर प्रदर्शित करना ही होगा । आइए हम सब मिलकर नियोजित शब्द के कलंक को धो डालें । हमारी विरासत प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय है जो कभी पूरे विश्व को ज्ञान की रोशनी दिया करता था । आज उसी बिहार में हम नियोजित शिक्षकों को अपमानित होकर जीने को विवश किया जा रहा है;ऐसा क्यों ??
समाज के सबसे प्रबुद्ध शिक्षक वर्ग की एकता सड़कों पर उतरने से कतराती क्यों है ??
क्या हमें हमारा वाजिब हक और सामाजिक सम्मान बिना संघर्ष के ही अपने-अपने घरों व विद्यालयों की चहारदीवारी के अन्दर ही हासिल हो जाएगा ??
क्या,क्यों, कैसे के लिए आपके उत्तर की प्रत्याशा में उत्सुक एक नियोजित शिक्षक................
राधेश्याम कुमार सिंह
जिला सचिव, बेगूसराय
TSUNSS
एक चिरपरिचित सज्जन वर्षों बाद मिले, उत्सुकतावश पूछा मुझसे-क्या करते हो ?? मैंने प्रत्युत्तर दिया;शिक्षक हूँ । मेरा यह परिचय शायद उनकी नजरों में पर्याप्त नहीं था । सहसा वो पूछ बैठे-कौन 2000 बैच या 34540 कोटि........मैंने कहा दोनों में से कोई नहीं । वो तुरंत भांप गए और मेरे कुछ कहने से पहले ही कह गए-नयका मास्टर । मैंने बड़े शांत स्वभाव से उनको प्रतिक्रिया दी;हाँ जी एक टीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक ।
समाज का दंश झेलने को मजबूर हम नियोजित शिक्षक विरासत के तौर दशकों से चले आ रहे गलत और अतार्किक शिक्षक संघर्ष की एक मात्र उपज हैं । ये पीढ़ियों की लड़ाई है-लोकतंत्र के इस दौर में भी 80-90 वर्ष का व्यक्ति भी सत्ता में बने रहने के लिए महज स्वार्थ के वशीभूत होकर हम शिक्षकों का हमदर्द बना बैठा है । एक वयोवृद्ध शिक्षक नेता क्या हमारी आज की युवा पीढ़ी का दुःख दर्द समझने की प्रबुद्धता रखता है ?? अगर सचमुच रखता तो इतने शिक्षक संघों का अस्तित्व ही न होता । बिहार शिक्षक राजनीति में जरा माध्यमिक शिक्षक संघ के इतिहास को उलट कर देखिए-आपको समझ में आ जाएगा कि हमारा वजूद क्या है और भावी पीढ़ी के लिए हम शिक्षा जगत् में कैसा स्वर्णिम भविष्य रचने जा रहे हैं । ऐसे शिक्षा के क्षेत्र में कैरियर बनाने में हमारी युवा पीढ़ी न तो उत्साह दिखाएगी जहाँ न किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा,न पेंशन और न अन्य राज्यकर्मियों की भांति विशेष सुविधाएं । ये दशकों से संघर्षरत रहे शिक्षक आंदोलनकारियों की अनमोल विरासत है जो हमें अनिवार्य रूप से "नियोजित" शब्द के तोहफे के रूप में मिली है ।
अब बात सामाजिक परिवेशों की जहाँ योग्यता व मेधा को हमेशा ही अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है,जहाँ यत्र तत्र सर्वत्र अर्थशास्त्र की भाषा ही चलती है । ऐसे हालात में अपनी गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखना कितना दुरूह कार्य है-यह आज का नियोजित शिक्षक भलीभांति जानता है ।आर्थिक सशक्तीकरण के इस दौर में हमारा दायित्व निर्वहन कैसे होगा भगवान ही मालिक ??
समान काम समान वेतन के मसले पर सरकार तो संवेदनहीन है किन्तु अब हम नियोजित शिक्षकों की बारी है-बिना किसी भेदभाव के आपसी चट्टानी एकता को उचित अवसर पर प्रदर्शित करना ही होगा । आइए हम सब मिलकर नियोजित शब्द के कलंक को धो डालें । हमारी विरासत प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय है जो कभी पूरे विश्व को ज्ञान की रोशनी दिया करता था । आज उसी बिहार में हम नियोजित शिक्षकों को अपमानित होकर जीने को विवश किया जा रहा है;ऐसा क्यों ??
समाज के सबसे प्रबुद्ध शिक्षक वर्ग की एकता सड़कों पर उतरने से कतराती क्यों है ??
क्या हमें हमारा वाजिब हक और सामाजिक सम्मान बिना संघर्ष के ही अपने-अपने घरों व विद्यालयों की चहारदीवारी के अन्दर ही हासिल हो जाएगा ??
क्या,क्यों, कैसे के लिए आपके उत्तर की प्रत्याशा में उत्सुक एक नियोजित शिक्षक................
राधेश्याम कुमार सिंह
जिला सचिव, बेगूसराय
TSUNSS