समस्तीपुर : जिले के आठ सौ लोक शिक्षक समायोजन की आस में भटक रहे हैं।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी इनका समायोजन शिक्षा विभाग में नहीं किया गया
है। लंबे समय तक लोक शिक्षण केंद्रों पर लोक शिक्षक के रूप में काम करने के
बाद सरकार ने इनकी सेवा खत्म कर दी थी।
उसके बाद इन लोगों ने पटना हाईकोर्ट में सीडब्ल्यूजेसी 21406/13 दायर किया था। 22 नवंबर 2014 को हाईकोर्ट ने इनके पक्ष में फैसला दिया था। इस फैसले के आलोक में लोक शिक्षकों ने जिलाधिकारी को आवेदन भी दिया था। लेकिन अब तक इनके समायोजन की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इधर न्याय की गुहार लगाते हुए बिहार प्रदेश लोक शिक्षक संघ के अध्यक्ष मो. मेराजुउद्दीन ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा। प्रधानमंत्री कार्यालय से बिहार सरकार के मुख्य सचिव को आवश्यक कार्रवाई के लिए 22 नवंबर 2016 को लिखा गया। उसके बाद अध्यक्ष ने दोबारा प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र भेजा इसके आलोक में प्रधानमंत्री कार्यालय ने 8 दिसंबर 2016 को समस्तीपुर एसपी के यहां मामले को भेज दिया।
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क्या है मामला
वर्ष 2013 में लोक शिक्षकों का चयन किया गया था। इनका चयन योग्यता, पात्रता के आधार पर साक्षात्कार के जरिए किया गया था। इनके द्वारा लोक शिक्षक के रूप में काम भी किया गया। सरकार से मानदेय भी मिला। उसके बाद इनकी सेवा समाप्त कर दी गई। इस दौरान इनमें से अधिसंख्य की उम्र सीमा भी समाप्त हो गयी। उसके बाद ये लोग शिक्षा विभाग में अपने समायोजन की मांग को लेकर लगातार संघर्ष करने लगे। अंत में हाईकोर्ट भी गए।
उसके बाद इन लोगों ने पटना हाईकोर्ट में सीडब्ल्यूजेसी 21406/13 दायर किया था। 22 नवंबर 2014 को हाईकोर्ट ने इनके पक्ष में फैसला दिया था। इस फैसले के आलोक में लोक शिक्षकों ने जिलाधिकारी को आवेदन भी दिया था। लेकिन अब तक इनके समायोजन की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इधर न्याय की गुहार लगाते हुए बिहार प्रदेश लोक शिक्षक संघ के अध्यक्ष मो. मेराजुउद्दीन ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा। प्रधानमंत्री कार्यालय से बिहार सरकार के मुख्य सचिव को आवश्यक कार्रवाई के लिए 22 नवंबर 2016 को लिखा गया। उसके बाद अध्यक्ष ने दोबारा प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र भेजा इसके आलोक में प्रधानमंत्री कार्यालय ने 8 दिसंबर 2016 को समस्तीपुर एसपी के यहां मामले को भेज दिया।
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क्या है मामला
वर्ष 2013 में लोक शिक्षकों का चयन किया गया था। इनका चयन योग्यता, पात्रता के आधार पर साक्षात्कार के जरिए किया गया था। इनके द्वारा लोक शिक्षक के रूप में काम भी किया गया। सरकार से मानदेय भी मिला। उसके बाद इनकी सेवा समाप्त कर दी गई। इस दौरान इनमें से अधिसंख्य की उम्र सीमा भी समाप्त हो गयी। उसके बाद ये लोग शिक्षा विभाग में अपने समायोजन की मांग को लेकर लगातार संघर्ष करने लगे। अंत में हाईकोर्ट भी गए।