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अब नहीं बचेंगे गुरुजी : रोजाना शिक्षकों की हाजिरी राजभवन को

सूबे में शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए राजभवन और राज्य सरकार की ओर से किए जा रहे कड़े फैसले शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को भले रास न आएं, परंतु इससे शिक्षा के आईने में बिहार की बिगड़ी सूरत को दुरुस्त करने में मदद मिलेगी। दो दिन पहले राजभवन से फरमान जारी हुआ कि उच्च शिक्षकों को साढ़े पांच घंटे विश्वविद्यालय या कॉलेज में बिताने होंगे।
आदेश पर अमल हो रहा है या नहीं, इसकी मॉनीटङ्क्षरग रजिस्ट्रार करेंगे और रोजाना शिक्षकों की हाजिरी राजभवन को भिजवाएंगे। उच्च शिक्षा में सुधार के लिए कुलाधिपति सह राज्यपाल की ओर से पहली बार इतना सख्त कदम उठाया गया है। दरअसल राज्य में उच्च शिक्षा की हालत पिछले कुछ सालों में इस कदर बिगड़ी है कि घरेलू विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से छात्रों का मोहभंग हो रहा है। दूसरे राज्यों में जाकर पढ़ाई करना उनकी मजबूरी बनती जा रही है। पटना विश्वविद्यालय जिसे कभी उच्च शिक्षा के की कसौटी पर खरा माना जाता था, शिक्षकों और कर्मचारियों की लापरवाही से सिर्फ उन छात्रों की मजबूरी बन गया है जो दूसरे राज्यों में पढ़ाई का खर्चा नहीं वहन कर सकते। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि पटना विवि के कुलपति छात्रों और कर्मचारियों के डर से कार्यालय नहीं जाते, सारे कामकाज बाउंसरों की निगरानी में आवास से निपटाते हैं। गया का मगध विश्वविद्यालय, भागलपुर में तिलकामांझी विवि, आरा का वीर कुंवर सिंह और छपरा का जयप्रकाश विवि घपले-घोटाले, लेटलतीफ सत्र और शिक्षकों की मनमानी का प्रतीक बन चुका है। सूबे के शिक्षा मंत्री उच्च शिक्षा में सुधार के लिए विश्वविद्यालय उच्च परीक्षा बोर्ड के गठन के हिमायती हैं, लेकिन कुलपति इसके घोर विरोधी बने हुए हैं।
राज्य में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की हालत तो बद से बदतर है। पहले तो अधिकांश स्कूलों में छात्रों के अनुपात में शिक्षक नहीं हैं, जो हैं वे पढ़ाई से ज्यादा निजी कामों में व्यस्त रहते हैं। स्कूली शिक्षा में सुधार के क्रम में सरकार का शिक्षकों पर लगाम कसने के लिए यह फैसला लेना कि देर से विद्यालय पहुंचने पर वेतन काटा जाएगा, कुछ हद तक अंकुश लगाने में मदद कर सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि शहरी स्कूलों की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों में शिक्षक खूब लेटलतीफ विद्यालय पहुंचते हैं, कहीं-कहीं तो हेडमास्टर या प्राचार्य से ऐसी सेटिंग रहती है कि किसी शिक्षित युवा को ये कुछ पैसे देकर अपनी जगह पढ़ाने के लिए रख देते हैं, खुद खेती-किसानी व व्यवसाय में मशगूल रहते हैं। चूंकि जिला स्तरीय शिक्षा पदाधिकारी मुख्यालय में बैठते हैं, इसलिए इनकी करतूतों पर आसानी से पर्दा पड़ा रहता है। शिक्षा विभाग की ओर से प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में कराए गए सर्वे में यह सच सामने आ चुका है। बहरहाल शिक्षा विभाग ने अब सभी जिलों के शिक्षा अधिकारी (डीईओ) को निर्देश दिया है कि प्रिंसिपल हर दिन डीईओ को शिक्षकों की उपस्थिति की रिपोर्ट देंगे। यह बताना होगा कि स्कूल कितने बजे खुला और वहां अध्यापक समय से आए या नहीं। हालांकि प्राचार्य यह रिपोर्ट कैसे भेजेंगे, यह नहीं बताया गया है। संचार क्रांति के युग में सरकार को सबसे पहले शिक्षा विभाग को हाईटेक करना चाहिए, वाट्स एप, ईमेल आदि तकनीकी से हेडमास्टर और प्राचार्य प्रशिक्षित कर लैस किए जाएं तो शिक्षकों की हाजिरी की मॉनीटङ्क्षरग में डीईओ को आसानी होगी।
[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]

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