केंद्र सरकार ने हाल में केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी है। आयोग ने केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में 23.5 प्रतिशत तथा पेंशन में 24 फीसदी बढ़ोतरी का सुझाव दिया था। अब सबकी नजरें राज्य सरकारों पर है कि वे अपने कर्मचारियों के लिए समान वेतन बढ़ोतरी लागू करते हैं या नहीं।
ईशान बक्शी बता रहे हैं कि हर राज्य की वित्तीय स्थिति और राजनीतिक परिदृश्य अलग-अलग हैं। हालांकि हर राज्य में कितनी वेतन बढ़ोतरी होगी और सरकारी खजाने पर इसका क्या असर पड़ेगा, इस बारे में अभी कुछ पता नहीं है लेकिन येस बैंक ने इस बारे में एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन के मुताबिक कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी से केरल और पंजाब सर्वाधिक प्रभावित होंगे। उनके उलट गुजरात और झारखंड को इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ को झेलने में सबसे कम परेशानी होगी। पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र पर भी सरकारी कर्मचारियों की कम संख्या के बावजूद ऊंची तनख्वाह और पेंशन के कारण भारी वित्तीय बोझ पडऩे की संभावना है।
चौथे वेतन आयोग की पगार पा रहे हैं कई कर्मचारी
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन औसतन 23 प्रतिशत बढऩे जा रहा है लेकिन मध्य प्रदेश के कुछ कर्मचारियों को अब भी चौथे वेतन आयोग के बराबर तनख्वाह मिल रही है। मध्य प्रदेश में करीब 7.5 लाख कर्मचारियों को वेतन बढ़ोतरी का फायदा मिलेगा। राज्य में लगभग 4.5 लाख नियमित कर्मचारी हैं जबकि 3 लाख कर्मचारी विभिन्न संस्थाओं, अद्र्घसरकारी, शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों से जुड़े हैं। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा, 'राज्य के खजाने पर सालाना 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि केंद्र सरकार सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को किस तरह लागू करती है। अभी तस्वीर साफ नहीं है लेकिन राज्य सरकार ने मोटे तौर पर इसकी व्यवस्था कर ली है।'
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश के 445,849 नियमित कर्मचारियों में से सबसे अधिक 25 प्रतिशत शिक्षा विभाग में और 19 प्रतिशत गृह विभाग में है। चिकित्सा विभाग के कर्मचारियों की संख्या 12 फीसदी है जिसमें डॉक्टर और नर्स भी शामिल हैं। राज्य में पिछला वेतन आयोग पूरी तरह लागू नहीं किया गया था। कुल 32 सार्वजनिक उपक्रमों में से केवल 24 ने ही छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह और तीन ने आंशिक तौर पर लागू किया था। अधिकारी ने कहा, 'राज्य के 24 सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों की संख्या कुल कर्मचारियों के 98.63 प्रतिशत बैठती है।' एक सार्वजनिक उपक्रम में 259 ऐसे कर्मचारी हैं जिनका मासिक वेतन 1,000 रुपये से 1,400 रुपये है। दो अन्य सार्वजनिक उपक्रम अपने 93 कर्मचारियों को 2,500 से 4,300 रुपये वेतन देते हैं। अद्र्घसरकारी संस्थाओं में एक ऐसी संस्था भी है जो अपने 467 कर्मचारियों को चौथे वेतन आयोग के मुताबिक प्रतिमाह 8,00 से 5,000 रुपये के बीच वेतन देती है। ऐसे में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करना राज्य सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। इस साल की शुरुआत में राज्य सरकार के 5 लाख कर्मचारियों ने ग्रेड फिक्सेशन की मांग करते हुए एक दिन की हड़ताल की थी। मध्य प्रदेश तृतीय श्रेणी सरकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अरुण द्विवेदी कहते हैं, 'राज्य सरकार ने अभी तक छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया है क्योंकि राज्य में करीब 1.50 लाख कर्मचारी 32,00-3,600 ग्रेड में हैं। इसे केंद्र सरकार के ग्रेड पे के अनुरूप होना चाहिए। किसी अन्य राज्य में ऐसा ग्रेड पे नहीं है। उन्हें वर्ष 2003 से ही वाजिब महंगाई भत्ता नहीं दिया गया है।'
ज्यादा वेतन पा रहे हैं आंध्र और तेलंगाना के कर्मचारी
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों की आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के सरकारी कर्मचारियों के लिए कोई खास अहमियत नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका वेतन हर पांच साल में बढ़ता है और वे पहले से ही करीब इतना ही वेतन पा रहे हैं। तेलंगाना गैर राजपत्रित अधिकारी संगठन के नेता देवीप्रसाद के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों के वेतन में 23.5 प्रतिशत बढ़ोतरी की घोषणा से पहले इन दोनों राज्यों के कर्मचारी केंद्रीय कर्मचारियों से दस से 20 प्रतिशत तक अधिक वेतन पा रहे थे। अब केंद्रीय कर्मचारियों और दोनों राज्यों के कर्मचारियों के वेतन में केवल 4-5 प्रतिशत का अंतर रह गया है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, '2019 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में नए वेतन आयोग से यह अंतर पट जाएगा।' आंध्र प्रदेश के विभाजन से एक साल पहले जुलाई 2013 में राज्य सरकार के कर्मचारियों को 27 प्रतिशत अंतरिम राहत दी थी। इस दौरान दसवें वेतन आयोग की अंतिम रिपोर्ट लंबित थी। इससे राज्य सरकार के 9.50 लाख कर्मचारियों और 5.50 लाख पेंशनरों को फायदा हुआ था। पृथक तेलंगाना की मांग को देखते हुए सरकारी कर्मचारियों का दिल जीतने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डïी ने उनके पूर्ववर्ती वाई एस राजशेखर रेड्डïी द्वारा 2009 में घोषित वेतन वृद्घि से पांच प्रतिशत ज्यादा बढ़ोतरी की घोषणा की थी।
आंध्र के विभाजन के बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने सरकारी कर्मचारियों को 43 प्रतिशत फिटमेंट का इनाम दिया। दबाव में आंध्र प्रदेश सरकार को भी अपने कर्मचारियों के लिए बराबर वेतन बढ़ोतरी की घोषणा करनी पड़ी। हालांकि इससे सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ा क्योंकि विभाजन के बाद आंध्र के हिस्से में ज्यादा सरकारी कर्मचारी आए। जनसंख्या के आधार पर सरकारी कर्मचारियों का बंटवारा किया गया था। आंध्र के हिस्से मे 58.32 प्रतिशत कर्मचारी आए जिनका वेतन राज्य के राजस्व के 73 प्रतिशत के बराबर है। संयुक्त आंध्र प्रदेश में यह 53 प्रतिशत था। इस तरह दोनों राज्यों के सरकारी कर्मचारियों को पिछले वेतन संशोधन में 43 प्रतिशत बढ़ोतरी मिली जो 2013 से लागू हुआ। इससे पिछले वेतन आयोग के समय में उन्हें 39 प्रतिशत बढ़ोतरी मिली थी। इस तरह पिछले दो वेतन आयोग में आंध्र और तेलंगाना के कर्मचारियों के वेतन में 82 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि इस दौरान केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन 40 प्रतिशत ही बढ़ा।
कर्ज में डूबे तमिलनाडु की केंद्र से मदद की गुहार
भारी कर्ज के कारण वित्तीय संकट से जूझ रही तमिलनाडु सरकार की स्थिति सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के दबाव में और खस्ताहाल हो जाएगी। तमिलनाडु वित्त मंत्रालय में अतिरिक्त मुख्य सचिव के षणमुगम ने कहा, 'इस बारे में कोई भी प्रक्रिया शुरू करने से पहले हमें केंद्र सरकार से आदेश लेना पड़ेगा। अभी मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता।' सरकारी सूत्रों का कहना है कि कर्मचारियों की नए वेतनमान को निर्धारित करने के लिए जल्दी ही एक समिति का गठन किया जाएगा।
हालांकि राज्यों को अपने वेतन आयोग के बारे में घोषणा करने की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन केंद्र द्वारा वेतनमान में बढ़ोतरी के कारण राजनीतिक मजबूरी के चलते वे ऐसा करते हैं। पूर्व में कई राज्य कुछ वर्षों के लिए इसे टालते रहे हैं लेकिन तमिलनाडु ने हमेशा ही केंद्र के साथ कदमताल की है। लेकिन इस बार तमिलनाडु सहित पांच राज्यों ने केंद्र से वेतन बढ़ोतरी की प्रक्रिया मे जल्दबाजी नहीं करने का अनुरोध किया है। तमिलनाडु सरकार ने 2009 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया था जो एक जनवरी 2007 से प्रभावी हुआ था। इससे करीब 12 लाख सरकारी कर्मचारियों का वेतन 30 फीसदी बढ़ा था और सरकारी खजाने पर प्रतिवर्ष 5,155.79 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ा था। तमिलनाडु में इस समय करीब 18 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। तमिलनाडु के 2016-17 के अंतरिम बजट में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को वित्त वर्ष 2018 से लागू किए जाने के आधार पर राजकोषीय घाटे का अनुमान व्यक्त किया गया है। वित्त वर्ष 2017 में 1,61,159.01 करोड़ रुपये के राजस्व खर्च का अनुमान व्यक्त किया गया है जो वित्त वर्ष 2016 के संशोधित अनुमानों से 9.05 प्रतिशत अधिक है।
अंतरिम बजट में वेतन के लिए 47,261.92 करोड़ रुपये और पेंशन के लिए 19,840.81 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह कुल राजस्व खर्च का 41.64 प्रतिशत है। महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी, वेतन बढ़ोतरी और रिक्त पदों पर नियुक्ति के कारण वित्त वर्ष 2018 में इसमें 30 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2019 में 10.50 प्रतिशत बढ़ोतरी की संभावना है। वेतन आयोग की सिफारिशों को वित्त वर्ष 2018 से लागू किए जाने की संभावना के साथ वित्त वर्ष 2017 में राजस्व घाटा 9,154.78 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया गया है। वित्त वर्ष 2017 मे राजकोषीय घाटा 36,740.11 करोड़ रुपये यानी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 2.92 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2018 में इसके 3.30 प्रशित और वित्त वर्ष 2019 में 2.79 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है।
आकार में कम लेकिन वित्तीय संसाधनों में दम
हरियाणा सातवें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अपने कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी करने की स्थिति में है। अगर इसे अक्षरश: लागू किया जाता है तो सरकारी खजाने पर सालाना करीब 4,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। हरियाणा में करीब 2.80 लाख कर्मचारी और 1.80 लाख पेंशनभोगी हैं। वेतन और पेंशन मद में 2016-17 में 24,951 करोड़ खर्च आने का अनुमान है जबकि 2015-16 के संशोधित अनुमानों के मुताबिक यह राशि 20,693 करोड़ रुपये थी। वित्त विभाग के सूत्रों के मुताबिक वेतन पर सालाना 19,340 करोड़ रुपये और पेंशन पर 5,611 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि सामान्यत: राज्य सरकार केंद्रीय वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करती है और राज्य के कर्मचारियों के इसी के मुताबिक वेतन और भत्ते मिलेंगे। मार्च में वित्त वर्ष 2016-17 के बजट पर चर्चा के दौरान उन्होंने कहा था कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी के लिए बजट में प्रावधान किया गया है।
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ईशान बक्शी बता रहे हैं कि हर राज्य की वित्तीय स्थिति और राजनीतिक परिदृश्य अलग-अलग हैं। हालांकि हर राज्य में कितनी वेतन बढ़ोतरी होगी और सरकारी खजाने पर इसका क्या असर पड़ेगा, इस बारे में अभी कुछ पता नहीं है लेकिन येस बैंक ने इस बारे में एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन के मुताबिक कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी से केरल और पंजाब सर्वाधिक प्रभावित होंगे। उनके उलट गुजरात और झारखंड को इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ को झेलने में सबसे कम परेशानी होगी। पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र पर भी सरकारी कर्मचारियों की कम संख्या के बावजूद ऊंची तनख्वाह और पेंशन के कारण भारी वित्तीय बोझ पडऩे की संभावना है।
चौथे वेतन आयोग की पगार पा रहे हैं कई कर्मचारी
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन औसतन 23 प्रतिशत बढऩे जा रहा है लेकिन मध्य प्रदेश के कुछ कर्मचारियों को अब भी चौथे वेतन आयोग के बराबर तनख्वाह मिल रही है। मध्य प्रदेश में करीब 7.5 लाख कर्मचारियों को वेतन बढ़ोतरी का फायदा मिलेगा। राज्य में लगभग 4.5 लाख नियमित कर्मचारी हैं जबकि 3 लाख कर्मचारी विभिन्न संस्थाओं, अद्र्घसरकारी, शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों से जुड़े हैं। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा, 'राज्य के खजाने पर सालाना 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि केंद्र सरकार सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को किस तरह लागू करती है। अभी तस्वीर साफ नहीं है लेकिन राज्य सरकार ने मोटे तौर पर इसकी व्यवस्था कर ली है।'
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश के 445,849 नियमित कर्मचारियों में से सबसे अधिक 25 प्रतिशत शिक्षा विभाग में और 19 प्रतिशत गृह विभाग में है। चिकित्सा विभाग के कर्मचारियों की संख्या 12 फीसदी है जिसमें डॉक्टर और नर्स भी शामिल हैं। राज्य में पिछला वेतन आयोग पूरी तरह लागू नहीं किया गया था। कुल 32 सार्वजनिक उपक्रमों में से केवल 24 ने ही छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह और तीन ने आंशिक तौर पर लागू किया था। अधिकारी ने कहा, 'राज्य के 24 सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों की संख्या कुल कर्मचारियों के 98.63 प्रतिशत बैठती है।' एक सार्वजनिक उपक्रम में 259 ऐसे कर्मचारी हैं जिनका मासिक वेतन 1,000 रुपये से 1,400 रुपये है। दो अन्य सार्वजनिक उपक्रम अपने 93 कर्मचारियों को 2,500 से 4,300 रुपये वेतन देते हैं। अद्र्घसरकारी संस्थाओं में एक ऐसी संस्था भी है जो अपने 467 कर्मचारियों को चौथे वेतन आयोग के मुताबिक प्रतिमाह 8,00 से 5,000 रुपये के बीच वेतन देती है। ऐसे में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करना राज्य सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। इस साल की शुरुआत में राज्य सरकार के 5 लाख कर्मचारियों ने ग्रेड फिक्सेशन की मांग करते हुए एक दिन की हड़ताल की थी। मध्य प्रदेश तृतीय श्रेणी सरकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अरुण द्विवेदी कहते हैं, 'राज्य सरकार ने अभी तक छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया है क्योंकि राज्य में करीब 1.50 लाख कर्मचारी 32,00-3,600 ग्रेड में हैं। इसे केंद्र सरकार के ग्रेड पे के अनुरूप होना चाहिए। किसी अन्य राज्य में ऐसा ग्रेड पे नहीं है। उन्हें वर्ष 2003 से ही वाजिब महंगाई भत्ता नहीं दिया गया है।'
ज्यादा वेतन पा रहे हैं आंध्र और तेलंगाना के कर्मचारी
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों की आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के सरकारी कर्मचारियों के लिए कोई खास अहमियत नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका वेतन हर पांच साल में बढ़ता है और वे पहले से ही करीब इतना ही वेतन पा रहे हैं। तेलंगाना गैर राजपत्रित अधिकारी संगठन के नेता देवीप्रसाद के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों के वेतन में 23.5 प्रतिशत बढ़ोतरी की घोषणा से पहले इन दोनों राज्यों के कर्मचारी केंद्रीय कर्मचारियों से दस से 20 प्रतिशत तक अधिक वेतन पा रहे थे। अब केंद्रीय कर्मचारियों और दोनों राज्यों के कर्मचारियों के वेतन में केवल 4-5 प्रतिशत का अंतर रह गया है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, '2019 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में नए वेतन आयोग से यह अंतर पट जाएगा।' आंध्र प्रदेश के विभाजन से एक साल पहले जुलाई 2013 में राज्य सरकार के कर्मचारियों को 27 प्रतिशत अंतरिम राहत दी थी। इस दौरान दसवें वेतन आयोग की अंतिम रिपोर्ट लंबित थी। इससे राज्य सरकार के 9.50 लाख कर्मचारियों और 5.50 लाख पेंशनरों को फायदा हुआ था। पृथक तेलंगाना की मांग को देखते हुए सरकारी कर्मचारियों का दिल जीतने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डïी ने उनके पूर्ववर्ती वाई एस राजशेखर रेड्डïी द्वारा 2009 में घोषित वेतन वृद्घि से पांच प्रतिशत ज्यादा बढ़ोतरी की घोषणा की थी।
आंध्र के विभाजन के बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने सरकारी कर्मचारियों को 43 प्रतिशत फिटमेंट का इनाम दिया। दबाव में आंध्र प्रदेश सरकार को भी अपने कर्मचारियों के लिए बराबर वेतन बढ़ोतरी की घोषणा करनी पड़ी। हालांकि इससे सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ा क्योंकि विभाजन के बाद आंध्र के हिस्से में ज्यादा सरकारी कर्मचारी आए। जनसंख्या के आधार पर सरकारी कर्मचारियों का बंटवारा किया गया था। आंध्र के हिस्से मे 58.32 प्रतिशत कर्मचारी आए जिनका वेतन राज्य के राजस्व के 73 प्रतिशत के बराबर है। संयुक्त आंध्र प्रदेश में यह 53 प्रतिशत था। इस तरह दोनों राज्यों के सरकारी कर्मचारियों को पिछले वेतन संशोधन में 43 प्रतिशत बढ़ोतरी मिली जो 2013 से लागू हुआ। इससे पिछले वेतन आयोग के समय में उन्हें 39 प्रतिशत बढ़ोतरी मिली थी। इस तरह पिछले दो वेतन आयोग में आंध्र और तेलंगाना के कर्मचारियों के वेतन में 82 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि इस दौरान केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन 40 प्रतिशत ही बढ़ा।
कर्ज में डूबे तमिलनाडु की केंद्र से मदद की गुहार
भारी कर्ज के कारण वित्तीय संकट से जूझ रही तमिलनाडु सरकार की स्थिति सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के दबाव में और खस्ताहाल हो जाएगी। तमिलनाडु वित्त मंत्रालय में अतिरिक्त मुख्य सचिव के षणमुगम ने कहा, 'इस बारे में कोई भी प्रक्रिया शुरू करने से पहले हमें केंद्र सरकार से आदेश लेना पड़ेगा। अभी मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता।' सरकारी सूत्रों का कहना है कि कर्मचारियों की नए वेतनमान को निर्धारित करने के लिए जल्दी ही एक समिति का गठन किया जाएगा।
हालांकि राज्यों को अपने वेतन आयोग के बारे में घोषणा करने की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन केंद्र द्वारा वेतनमान में बढ़ोतरी के कारण राजनीतिक मजबूरी के चलते वे ऐसा करते हैं। पूर्व में कई राज्य कुछ वर्षों के लिए इसे टालते रहे हैं लेकिन तमिलनाडु ने हमेशा ही केंद्र के साथ कदमताल की है। लेकिन इस बार तमिलनाडु सहित पांच राज्यों ने केंद्र से वेतन बढ़ोतरी की प्रक्रिया मे जल्दबाजी नहीं करने का अनुरोध किया है। तमिलनाडु सरकार ने 2009 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया था जो एक जनवरी 2007 से प्रभावी हुआ था। इससे करीब 12 लाख सरकारी कर्मचारियों का वेतन 30 फीसदी बढ़ा था और सरकारी खजाने पर प्रतिवर्ष 5,155.79 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ा था। तमिलनाडु में इस समय करीब 18 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। तमिलनाडु के 2016-17 के अंतरिम बजट में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को वित्त वर्ष 2018 से लागू किए जाने के आधार पर राजकोषीय घाटे का अनुमान व्यक्त किया गया है। वित्त वर्ष 2017 में 1,61,159.01 करोड़ रुपये के राजस्व खर्च का अनुमान व्यक्त किया गया है जो वित्त वर्ष 2016 के संशोधित अनुमानों से 9.05 प्रतिशत अधिक है।
अंतरिम बजट में वेतन के लिए 47,261.92 करोड़ रुपये और पेंशन के लिए 19,840.81 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह कुल राजस्व खर्च का 41.64 प्रतिशत है। महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी, वेतन बढ़ोतरी और रिक्त पदों पर नियुक्ति के कारण वित्त वर्ष 2018 में इसमें 30 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2019 में 10.50 प्रतिशत बढ़ोतरी की संभावना है। वेतन आयोग की सिफारिशों को वित्त वर्ष 2018 से लागू किए जाने की संभावना के साथ वित्त वर्ष 2017 में राजस्व घाटा 9,154.78 करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया गया है। वित्त वर्ष 2017 मे राजकोषीय घाटा 36,740.11 करोड़ रुपये यानी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 2.92 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2018 में इसके 3.30 प्रशित और वित्त वर्ष 2019 में 2.79 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है।
आकार में कम लेकिन वित्तीय संसाधनों में दम
हरियाणा सातवें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अपने कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी करने की स्थिति में है। अगर इसे अक्षरश: लागू किया जाता है तो सरकारी खजाने पर सालाना करीब 4,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। हरियाणा में करीब 2.80 लाख कर्मचारी और 1.80 लाख पेंशनभोगी हैं। वेतन और पेंशन मद में 2016-17 में 24,951 करोड़ खर्च आने का अनुमान है जबकि 2015-16 के संशोधित अनुमानों के मुताबिक यह राशि 20,693 करोड़ रुपये थी। वित्त विभाग के सूत्रों के मुताबिक वेतन पर सालाना 19,340 करोड़ रुपये और पेंशन पर 5,611 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि सामान्यत: राज्य सरकार केंद्रीय वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करती है और राज्य के कर्मचारियों के इसी के मुताबिक वेतन और भत्ते मिलेंगे। मार्च में वित्त वर्ष 2016-17 के बजट पर चर्चा के दौरान उन्होंने कहा था कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी के लिए बजट में प्रावधान किया गया है।
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