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इंटर में एक शैक्षणिक व्यवस्था लागू ही नहीं

राज्यमें अभी चार स्तरों पर इंटर की पढ़ाई की व्यवस्था है। सरकार ने तय किया था कि अंगीभूत कॉलेजों से इंटर की पढ़ाई समाप्त कर केवल प्लस टू स्कूल इंटर कॉलेजों में इसकी पढ़ाई की व्यवस्था करनी थी। शैक्षणिक सत्र 2016-17 से भी इस व्यवस्था को लागू किया जाना संभव नहीं हो सकेगा। माना जा रहा है कि इंटर की पढ़ाई को लेकर सरकार की उदासीनता के कारण ही उच्च शिक्षा में ग्रॉस इनरोलमेंट रेशियो काफी कम होता है।

शिक्षामंत्री डाॅ. अशोक कुमार चौधरी ने भी माना है कि इंटर शिक्षा में एकरूपता नहीं है। दरअसल, अब तक सरकार का पूरा ध्यान पहली से दसवीं तक की पढ़ाई पर रहा। इंटर की शिक्षा को पहले प्री-यूनिवर्सिटी की तर्ज पर विकसित किया गया था। फिर, इसके लिए शिक्षा विभाग के स्तर पर उच्च माध्यमिक निदेशालय का गठन किया गया। अभी यह माध्यमिक निदेशालय के तहत गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि जिला शिक्षा पदाधिकारी के जिम्मे जिलों में इंटर संस्थानों के शिक्षण की जांच का जिम्मा है। इंटर के विद्यार्थियों का करीब 70 फीसदी भाग अंगीभूत या विश्वविद्यालयों से संबद्ध डिग्री कॉलेजों में हैं। इसके बाद बिहार बोर्ड से मान्यता प्राप्त इंटर कॉलेजों का स्थान आता है। सबसे अंतिम स्थान प्लस टू स्कूलों का आता है।

जांचकी व्यवस्था नहीं

इंटरस्तरीय संस्थानों में कक्षाओं की जांच की व्यवस्था नहीं है। डीईओ के स्तर पर इंटर कॉलेज प्लस टू स्कूलों में तो जांच हो जाती है। कॉलेजों में जांच संभव नहीं हो पाती। इनमें अपने हिसाब से पढ़ाई होती है। वर्ष 2007 में यूजीसी के निर्देश के बाद विवि स्तर पर इंटर की पढ़ाई को हटाने का निर्देश जारी हुआ था। पटना विवि को छोड़कर अन्य सभी विवि में इस दिशा में निर्णय नहीं लिए गए। इंटर स्तरीय स्कूलों में करीब 17 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं। अन्य संस्थानों में भी शिक्षकों की कमी है। इस सब पर अबतक सरकार की ओर से कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है।

इंटर स्तरीय स्कूलों में करीब 17 हजार शिक्षकों के पद खाली

10वीं तक है शैक्षणिक विकास पर जोर, बिना इंटर कैसे बढ़ेगा उच्च शिक्षा का जीईआर

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