पटना: हम सरकार के किसी नियम का विरोध नहीं कर रहे हैं।
हमें कहां सरकार के किसी पॉलिसी से दिक्कत है। हमारी भी कुछ मांग है। हम
पुराने हैं। हमने मेहनत की है। हमें सरकार राज्य कर्मी का पहले दर्जा दे
उसके बाद जो मर्जी आए वो करे। जिसे मन करे और जैसे मन करे बहाल करे।
ये
बयान है पूर्णानंद मिश्र का। बिहार के बक्सर जिले के कोरान सराय पंचायत के
मध्य विद्यालय में अपनी ड्यूटी को पूरी शिद्दत के साथ पूरा करने वाले
शिक्षक का नाम है पूर्णानंद। पूर्णानंद के अलावा उपेंद्र पाठक, धीरज
पांडेय, नवनीत उर्फ लाला और संजय सिंह सहित डुमरांव प्रखंड के दर्जनों
शिक्षक अपने सहयोगी की बात से सहमत हैं। उनका कहना है कि वे सरकार के उस
कृत्य का विरोध कर रहे हैं जिसमें उनके लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है।
शिक्षकों का दर्द
पूर्णानंद
सहित डुमरांव प्रखंड के दर्जनों शिक्षकों से हमने बात की। महावीर शंकर
ओझा, प्रभारी प्रधानाध्यापक एसबीएनवीडीओ प्लस टू उच्च विद्यालय देवकुली
बक्सर के शिक्षक हैं। ये बिहार की नई शिक्षा नीति में भी खामी देखते हैं।
इनका कहना है कि किसी भी शिक्षा नीति में दूरगामी परिणाम राज्य या देश को
भुगतने पड़ते हैं। बिना किसी रिसर्च के बिना किसी परीक्षण और आयोग की
रिपोर्ट के मनमाने तरीके से शिक्षा नीति राज्य परसों की जा रही है। जिसका
परिणाम है कि अभी कुछ ही दिन हुए इसमें ढेर सारे बदलाव और प्रतिदिन कुछ ना
कुछ संशोधन किया जा रहा है। बिहार में शिक्षक नियुक्ति नियमावली बन गई,
तकरीबन पौने दो लाख शिक्षकों की नियुक्ति का विज्ञापन निकल गया। आवेदन की
प्रक्रिया भी शुरू हो गई, लेकिन समस्या जस की तस है। लगभग साढ़े तीन लाख
संविदा शिक्षकों की अपनी समस्या है तो TET और CTET पास अभ्यर्थियों का अपना
दुख है।
शिक्षकों की मांग अलग
सरकार
इधर इस बात पर इतरा रही है कि उसने सरकारी नौकरी का इतना बड़ा अवसर दिया
है, लेकिन जिन्हें शिक्षक बनना है, वे इसके विरोध में धरना-प्रदर्शन कर रहे
हैं। पुलिस की लाठियां खा रहे हैं। शिक्षक नियुक्ति नियमावली के बाद से कई
संशोधन भी चुके। शिक्षा मंत्री की अलग परेशानी है। वे कहते हैं कि बिहार
में गणित और विज्ञान के शिक्षक ही नहीं मिलते। इसलिए सरकार ने डोमिसाइल
नीति ही हटा दी है। डोमिसाइल नीति हटाने का विरोध अलग है। सरकारी शिक्षक
बनने का सपना देखने वाले युवा खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
संविदा पर नियुक्त हैं 3 लाख से अधिक शिक्षक
राज्य
सरकार ने 2005 से अब तक पंचायतों और निकायों की ओर से संविदा पर नियुक्त
लगभग 3 लाख 50 हजार शिक्षकों को भी वहीं लाकर खड़ा कर दिया, जहां सरकारी
शिक्षक बनने के लिए पूर्व निर्धारित मानदंड पूरा करने वाले युवा अभ्यर्थी
खड़े थे। संविदा शिक्षक नई नियमावली से सरकारी ओहदे के इंतजार में थे। सभी
इस इंतजार में थे कि सरकार नई नियमावली लाएगी तो उनकी उम्मीदें पूरी हो
जाएंगी, लेकिन सरकारी शिक्षक बनने की आस लगाए अभ्यर्थियों की उम्मीदों पर
पानी फिर गया। संविदा शिक्षक तो सरकारी नहीं ही बन पाएंगे, TET और CTET
उत्तीर्ण अभ्यर्थियों के लिए भी सरकार ने संकट पैदा कर दिया। बिहार लोक
सेवा आयोग की परीक्षा पास करने के बाद ही कोई सरकारी शिक्षक बन पाएगा। उनकी
तनख्वाह भी ऐसी तय की है, जो पहले से नियुक्त शिक्षकों के मुकाबले कम है।
इतना ही नहीं, ऐसे अभ्यर्थी परीक्षा पास करने के लिए सिर्फ तीन चांस ही
पाएंगे। तीन बार में भी वे नहीं निकल पाए तो शिक्षक प्रशिक्षण और टीईटी या
सीटीईटी की परीक्षा में लगा उनका समय, श्रम और अर्थ बेकार हो जाएगा। यही
वजह है कि शिक्षक नियुक्ति नियमावली का हर तरफ विरोध हो रहा है।
संविदा शिक्षक नई नियमावली के विरोध में हैं
हर
साल 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। इस साल मजदूर दिवस से नयी नियमावली
के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ है, जो अब भी जारी है। अभ्यर्थी और संविदा
शिक्षक इस क्रम में पुलिस की लाठियां खा रहे हैं। विपक्षी दल भी अब
शिक्षकों और शिक्षक अभ्यर्थियों के आंदोलन को हवा देने लगे हैं। और तो और,
महागठबंधन सरकार में शामिल वाम दलों के नेता भी नियुक्ति नियमावली का विरोध
कर रहे हैं। वाम दलों का कहना है कि बिहार शिक्षक नियुक्ति नियमावली में
वर्षों से कार्यरत नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने का फैसला
तो अच्छा है, लेकिन इस नियमावली में राज्यकर्मी का दर्जा देने की शर्त इतनी
टेढ़ी है कि कोई उसमें फिट ही नहीं बैठेगा। इसके लिए बिहार लोक सेवा आयोग
की परीक्षा पास करने की शर्त थोप दी गई है।
शिक्षा मंत्री ने बिहार की मेधा पर उठाए सवाल
बिहार
के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने पहले यह कह कर बिहार की प्रतिभाओं का मजाक
उड़ाया कि गणित और विज्ञान के शिक्षक बिहार में नहीं मिलते, इसलिए डोमिसाइल
नीति लागू नहीं होगी। जो लोग नियमावली का विरोध कर रहे हैं, उनके बारे में
शिक्षा मंत्री कह रहे कि मंसूबा कामयाब नहीं होने देंगे, हास्यास्पद लगता
है। उन्हें तो नई शिक्षा नीति लागू करने में भी ऐतराज है। बिहार में नई
शिक्षा नीति लागू करने को लेकर शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर आरजेडी के विधायकों
और विधान परिषद के सदस्यों से सलाह ले रहे हैं। आरजेडी के प्रदेश कार्यालय
में उन्होंने नई शिक्षा नीति पर चर्चा की। वे यह जानना चाहते थे कि नई
शिक्षा नीति को लागू किया जाए या उसमें और भी संशोधन की जरूरत महसूस हो रही
है। शिक्षा मंत्री ने कहा कि आरजेडी और सरकार किसी भी सूरत में शिक्षा के
बाजारीकरण और व्यवसायीकरण से बचेगी। केके पाठक से विवाद के सवाल पर
चंद्रशेखर का कहना था कि लोगों ने जो मंसूबा पाल रखा है, उसमें वे सफल नहीं
हो पाएंगे। कुछ ही दिनों पहले चंद्रशेखर ने कहा था कि बिहार में अभी नई
शिक्षा नीति लागू करना असंभव है। उन्होंने इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी का हवाला
दिया।