दरभंगा। करीब तीस वर्षों से सरकार की बोझ हल्का कर समाज की सेवा में लगे वित्त रहित शिक्षण संस्थानों के शिक्षा कर्मी एक बार फिर आंदोलन की राह पर है। वित्त रहित शिक्षा नीति को समाप्त करने संबंधी राज्य सरकार की घोषणा हवा महल साबित हो चुकी है। इधर नियोजित शिक्षकों के वेतनमान देने की घोषणा पर घोषणा और उधर वित्त रहित शिक्षा कर्मियों के संबंध में सरकार की ऊहापोह की स्थिति ने हतोत्साह की परिस्थिति पैदा कर दी है। वर्षों से पद सृजन, सेवा सामंजन व स्थायी वेतनमान की मांग कर रहे शिक्षा कर्मी अनुदान भी नहीं मिलने से परेशान हैं। सबसे दुखद बात तो यह है कि इनकी जरूरतों की पहचान ही सरकार को नहीं है।
वहीं विवि अनुदान आयोग समाज में इनकी उपयोगिता को देखते हुए इन्हें समानता की ²ष्टि से देख रहा है। ऐसी स्थिति में फूड फार वर्क की तर्ज पर मिलने वाले अनुदान से भी वर्षों से ये सब वंचित हैं। फलत: 3 अगस्त से विधान मंडल सत्र के दौरान में शिक्षा कर्मी करो या मरो के तहत निर्णायक आंदेालन की तैयारी कर चुके हैं। यूजीसी समझती उपयोगिता : बिहार में वित्त रहित शिक्षण संस्थानों की उपयोगिता से विवि अनुदान आयोग परिचत है। फलत: यह ऐसे शिक्षण संस्थानों व शिक्षकों को अंगीभूत कॉलेजों की तरह ही सुविधा उपलब्ध् कराने का प्रयास करता है। खासकर टू एफ में रजिस्टर्ड कॉलेजों को आधारभूत संरचना सहित पुस्तकालय व प्रयोगशाला आदि को समृद्ध करने के लिए अनुदान मिलता है। इधर अंगीभूत कॉलेजों के साथ ही संबद्ध कॉलेजों को भी नैक मूल्यांकन कराने का दबाव है। ग्रे¨डग के हिसाब से यूजीसी अंगीभूत कॉलेजों की तरह संबद्ध कॉलेजों को भी समान रूप से अनुदान देगी। यूजीसी इसके साथ ही संबद्ध कॉलेज के शिक्षकों को भी शोध कार्य के लिए माइनर व मेजर रिसर्च प्रोजेक्ट की स्वीकृति देती है। यूजीसी ऐसे शिक्षण संस्थानों को सरकार व समाज के लिए काफी उपयोगी मानते हुए देश के सभी विवि के कुलपतियों को पंचायत स्तर पर ई शासन को बढावा देने के लिए ई-पंचायत योजनाओं में संबद्ध कॉलेजों के छात्रों व शिक्षकों को भागीदारी सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया है।
राज्य सरकार को नहीं पहचान : वित्त रहित शिक्षण संस्थानों की उपयोगिता की पहचान राज्य सरकार को बिल्कुल नहीं है। परिणाम स्वरूप करीब 240 डिग्री व 515 इंटरस्तरीय कॉलेजों के हजारों शिक्षा कर्मी भुखमरी के शिकार हैं।तीन दशकों तक बनने वाली सरकार यह नहीं समझ पाई कि अगर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ये अपनी जीवन न्योछावर नहीं करते तो क्या होता। बढ़ती जनसंख्याओं के हिसाब से युवाओं को हम कैसे उच्च् शिक्षा दे पाते। आज भी इन संस्थानों के शिक्षा कर्मी दीप के समान स्वयं जलते हुए भी शिक्षा दान कर ज्ञान रूपी प्रकाश फैला रहे है। और राज्य सरकार तो अभी तक यही समझ रही है कि घर की मुर्गी दाल बराबर।
पकड़े आंदोलन की राह : राज्य सरकार की कथनी व करनी में अंतर के साथ दोहरी नीति ने वित्त शिक्षा कर्मियों की जमीर को एक बार फिर जगाया है। इन शिक्षण संस्थानों के दो संगठन वित्त रहित शिक्षा संयुक्त संघर्ष मोर्चा व बिहार राज्य संबद्ध डिग्री महाविद्यालय शिक्षक-शिक्षकेत्तर कर्मचारी महासंघ ने विधान मंडल सत्र के दौरान करो या मरो की तर्ज पर सोमवार व मंगलवार से जोरदार आंदोलन का एलान किया है। अब भी देखना यह है कि सरकार की सोच पटरी पकड़ती है फिर बेपटरी ही सरपट दौड़ती है।
कहते हैं नेता : इस बार निर्णायक आंदोलन होगा। वादा से मुकर चुकी सरकार चुनावी वर्ष में भी अगर कुछ नहीं कर पाती तो यह हम सबके लिए दुखद होगा। इसलिए यह आंदोलन जरूरी है।
डॉ. राय श्री पाल ¨सह
प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष
वित्त रहित शिक्षा संयुक्त संघर्ष मोर्चा
हमारी सभी प्रमुख पांच मांगें पुरानी हैं। सरकार वादाखिलाफी कर चुकी है। अब भी मौका है। अगर हमें वेतनमान मिल गया तो और अधिक उत्साह से सेवा में हम लोग लग जाएंगे।
डॉ. मनोज कुमार झा, जिला संयोजक
बिहार राज्य संबद्ध डिग्री महाविद्यालय शिक्षक शिक्षकेत्तर कर्मचारी महासंघ
सरकारी नौकरी - Government Jobs - Current Opening All Exams Preparations , Strategy , Books , Witten test , Interview , How to Prepare & other details