शिक्षक और मूलभूत संसाधन नहीं होने के बावजूद जिले के 121 अपग्रेड हाई स्कूल को प्लस टू का कोड आवंटित करने के लिए बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से आवेदन मांगा गया है।
बता दें कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से कोड मिलने के बाद ही इन विद्यालयों में प्लस टू में नामांकन लेने वाले छात्र बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से आयोजित होने वाली परीक्षा में शामिल हो पाएंगे। दरअसल बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के निर्देश के आलोक में जिला स्तर से अपग्रेड स्कूलों के प्रधानाध्यापकों से इस संबंध में आवेदन मांगे गए हैं।जिसमें स्कूलों में उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी भी देनी है। बता दें कि जिले में पुराने 45 प्लस टू ही स्कूलों में जिन्हें बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से कोड प्राप्त हो चुका है उनमें भी विषयवार शिक्षक उपलब्ध नहीं है।जबकि विगत वर्षो में जिले के 121 स्कूलों को अपग्रेड करते हुए हाई स्कूल का दर्जा दिया गया है। इन स्कूलों में मूलभूत संसाधनों के अलावे विषयवार शिक्षक मैट्रिक स्तर की पढ़ाई के लिए उपलब्ध नहीं है। बावजूद इसके बावजूद इन स्कूलों को बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से मैट्रिक के लिए कोड आवंटित किया जा चुका है। शिक्षकों और मूलभूत संसाधन नहीं रहने के बावजूद इन विद्यालयों में नामांकन लेकर हजारों छात्र प्रति वर्ष मैट्रिक और इंटर की परीक्षाएं पास भी कर रहे हैं। जमीनी हकीकत क्या है यह किसी से छुपा नहीं। बता दें कि अपग्रेड स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था के अलावा मूलभूत सुविधाएं भी नदारद है।
अपग्रेड स्कूलों को बोर्ड से मिल चुका है मैट्रिक का कोड
सरकार
की ऐसी मंशा है कि सभी पंचायतों में एक-एक हाई स्कूल जरूर हो। जिसके बाद
कैमूर के विभिन्न प्रखंडों के पंचायतों में विगत वर्षों में 121 स्कूलों को
मिडिल स्कूलों को अपग्रेड करते हुए हाई स्कूल का दर्जा दिया जा चुका है।
विद्यालयों को बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से कोड भी प्राप्त हो चुका है।
अपग्रेड स्कूलों के हालात यह है कि इन स्कूलों में बच्चे सिर्फ एडमिशन और
फॉर्म भरने की खानापूर्ति करते हैं।
जिले में प्लस टू स्तर की पढ़ाई की सुविधा काफी खस्ताहाल
क्योंकि
एक तरफ बिहार विद्यालय परीक्षा समिति मैट्रिक और इंटर की परीक्षा को
कदाचार मुक्त कराने के लिए कई उपाय कर रही है। लेकिन प्लस टू स्तर की पढ़ाई
अब भी पुराने ढर्रे पर ही चल रही है।स्कूलों में शिक्षकों का अभाव सहित
प्रैक्टिकल नॉलेज का ज्ञान नहीं होना रेगुलर क्लासेस संचालित नहीं होने की
वजह से सरकारी विद्यालयों में प्लस टू स्तर की पढ़ाई करने वाले छात्र
शिक्षा के प्रतिस्पर्धा में बिछड़ते नजर आ रहे हैं।