अररिया। सूबे की सरकार भले ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए नित्य नए -नए
आदेश जारी करें , परंतु धरातल की सच्चाई यही है कि अधिकांश सरकारी विद्यालय
आओ खाओ और घर जाओ की तर्ज पर चल रही है ।
विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति अनिवार्य करने के निर्देश तो शिक्षा विभाग अक्सर जारी करते हैं परंतु बच्चों की उपस्थिति के हिसाब से शिक्षकों की कमी प्राय: सभी विद्यालयों में देखी जा रही है । एक शिक्षक जब अपने क्लास में 200 छात्र-छात्राएं को पढा रहे हों ,तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना बेमानी नही तो और क्या है ? उदाहरण के तौर पर प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय गोसनगर को ही लेते हैं । यहां 450 बच्चे नामांकित हैं । लगभग 400 बच्चे प्रतिदिन विद्यालय आते हैं। जिसे पढ़ाने के लिए मात्र तीन शिक्षक हैं। जबकि प्रत्येक 40 बच्चों पर एक शिक्षक प्रतिनियुक्ति का मानक तय किया गया है। अर्थात एक शिक्षक के जिम्मे 133 बच्चे। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सपना कब साकार होगा। विद्यालय प्रधान फुलेश्वर पाण्डे ने बताया कि बच्चों की उपस्थिति के हिसाब से यहां शिक्षकों की कमी है। पूर्व में शिक्षक समायोजन की प्रक्रिया के तहत यहां दो शिक्षकों को समायोजित भी किया गया था परंतु आज तक एक भी शिक्षक ने अपना योगदान नहीं किया। शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों को समुचित शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पा रही है। विद्यालय के शिक्षा समिति के अध्यक्ष जगन्नाथ ¨सह, सचिव शोभा देवी, सदस्य सुधीर ¨सह, किरण देवी आदि ने कहा कि बच्चे विद्यालय अवश्य आते हैं । मध्याह्न भोजन ही विद्यालय आने का उनका मुख्य उद्देश्य होता है। ऐसा नहीं कि यह हाल प्रखण्ड के किसी एक विद्यालय का है ।कमोबेस अधिकांश विद्यालयों का यही हाल है । इस बाबत प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी मंसूर आलम ने कहा कि दो शिक्षकों का समायोजन उक्त विद्यालय में किया गया है अगर निर्धारित समय के अंदर वे योगदान नही करते हैं तो उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की जाएगी । इसके अतिरिक्त जिन विद्यालयों में छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की कमी है और जहां अधिक शिक्षक हैं उसे समायोजित करने की प्रक्रिया चल रही है ।
विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति अनिवार्य करने के निर्देश तो शिक्षा विभाग अक्सर जारी करते हैं परंतु बच्चों की उपस्थिति के हिसाब से शिक्षकों की कमी प्राय: सभी विद्यालयों में देखी जा रही है । एक शिक्षक जब अपने क्लास में 200 छात्र-छात्राएं को पढा रहे हों ,तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना बेमानी नही तो और क्या है ? उदाहरण के तौर पर प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय गोसनगर को ही लेते हैं । यहां 450 बच्चे नामांकित हैं । लगभग 400 बच्चे प्रतिदिन विद्यालय आते हैं। जिसे पढ़ाने के लिए मात्र तीन शिक्षक हैं। जबकि प्रत्येक 40 बच्चों पर एक शिक्षक प्रतिनियुक्ति का मानक तय किया गया है। अर्थात एक शिक्षक के जिम्मे 133 बच्चे। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सपना कब साकार होगा। विद्यालय प्रधान फुलेश्वर पाण्डे ने बताया कि बच्चों की उपस्थिति के हिसाब से यहां शिक्षकों की कमी है। पूर्व में शिक्षक समायोजन की प्रक्रिया के तहत यहां दो शिक्षकों को समायोजित भी किया गया था परंतु आज तक एक भी शिक्षक ने अपना योगदान नहीं किया। शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों को समुचित शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पा रही है। विद्यालय के शिक्षा समिति के अध्यक्ष जगन्नाथ ¨सह, सचिव शोभा देवी, सदस्य सुधीर ¨सह, किरण देवी आदि ने कहा कि बच्चे विद्यालय अवश्य आते हैं । मध्याह्न भोजन ही विद्यालय आने का उनका मुख्य उद्देश्य होता है। ऐसा नहीं कि यह हाल प्रखण्ड के किसी एक विद्यालय का है ।कमोबेस अधिकांश विद्यालयों का यही हाल है । इस बाबत प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी मंसूर आलम ने कहा कि दो शिक्षकों का समायोजन उक्त विद्यालय में किया गया है अगर निर्धारित समय के अंदर वे योगदान नही करते हैं तो उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की जाएगी । इसके अतिरिक्त जिन विद्यालयों में छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की कमी है और जहां अधिक शिक्षक हैं उसे समायोजित करने की प्रक्रिया चल रही है ।