मैं बिहारी हूं और टाॅपर घोटाले से मेरा कोई लेना-देना नहीं है

बिहार का टॉपर घोटाला, इन दिनों हर शहर, हर गली और हर मोहल्ले में इसी की चर्चा है. इन्हीं चर्चाओं के बीच मैं अपने पैर के दर्द के इलाज के लिए एक डॉक्टर के पास गई थी. नंबर आने में वक्त था लिहाजा ओपीडी के बाहर बैठ कर इंतजार कर रही थी. इसी दौरान साथ बैठे कुछ लोगों से बातचीत होने लगी...

बातों-बातों में जब उन्हें पता चला कि मैं एक पत्रकार हूं तो वहां बैठे एक सज्जन तपाक से पूछ बैठे- वाकई में कमाल कर दिया आप लोगों ने. आप लोगों को इतने आइडिया कौन देता है टॉपर से सवाल पूछने का? मैं उनके सवाल का जवाब दे पाती, इससे पहले ही कंपाउंडर ने ऊंची आवाज में अगले मरीज का नाम लिया- श्रुति सिंह. ये सुनते ही वहां बैठे सभी लोग हंस पड़े. मैं सवाल से जूझ रही थी तभी एक मरीज ने कंपाउंडर की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये भी बिहार से है. तो दूसरे सज्जन बोल पड़े जिन डॉक्टर साहब को आप दिखाने आए हैं वो भी बिहार से ही हैं.
..फिर लोगों ने मेरी तरफ जिज्ञासा भरी नजरों से देखा, इससे पहले कि वो मुझसे कोई सवाल पूछते, मैंने खुद ही कह दिया. जी हां, मेरा नाम सरोज सिंह है, मैं भी बिहार से हूं और मुझे गर्व है कि मैं एक बिहारी हूं.
लेकिन लोगों की आंखों में तैरता शक मुझे साफ दिख रहा था.

एजुकेशन सिस्टम शक के घेरे में

वैसे आज का सच यही है. आज हर बिहारी या तो रूबी राय है या गणेश कुमार. भले ही आपने 80 के दशक में 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास की हो या 90 के दशक में या फिर 2000 के दशक में, अगर आप बिहार के हैं तो आज की तारीख में हर कोई आपकी पढ़ाई और आपके नतीजों को शक की नजर से देख रहा है.
अगर आप अपने दफ्तर में किसी बड़े पद या ओहदे पर पर बैठे हैं तो यकीन मानिए रूबी राय और गणेश कुमार जैसे लोगों के टॉप करने की खबरों के बाद आप ही के दफ्तर का छोटा से छोटा कर्मचारी भी आपकी तरक्की पर सवाल पूछने का हक रखने लगा है. क्योंकि दुर्भाग्य से ही सही आज रूबी राय और गणेश कुमार बिहार की शिक्षा व्यवस्था के ऐसे ब्रांड एंबेसडर बन गए हैं, जिनकी वजह से बिहार का पूरा एजुकेशन सिस्टम शक के घेरे में खड़ा है.
बीते साल रूबी राय और इस साल गणेश कुमार की बदनामी ने आर्यभट्ट, चाणक्य, राजेन्द्र प्रसाद और लोकनायक जय प्रकाश नारायण जैसे बिहार के सपूतों को भुला दिया. प्राचीन काल में शिक्षा के सबसे सम्मानित केंद्र तक्षशिला और नालंदा की ख्याति को भी पीछे छोड़ दिया. इन टॉपरों की छीछालेदर ने उस बोधगया की शोहरत भी भुला दी जहां बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर बिहार में जन्मे थे जबकि सिखों के 10वें और आखिरी गुरु गोविंद सिंह भी बिहारी थे.

तमाम जरूरी मुद्दे गौण

बिहार बोर्ड के 12वीं के नतीजों में जो धांधली हुई, वो सरासर गलत है. सही हुआ कि गणेश कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया. अब उसके जरिए इस सड़ते सिस्टम के उन दीमकों का पता लगाना चाहिए जिन्होंने बिहार के एजुकेशन सिस्टम का ये हाल किया है. अगर सरकार ने सख्ती और इरादा दिखाया तो टॉपर घोटाले के असल गुनहगार शायद पकड़े भी जाएं. क्योंकि मेरी समझ से रूबी और गणेश तो सिर्फ इस सिस्टम के पीड़ित हैं.
असल गुनहगार तो वो लोग हैं जिन्होंने ऐसा सिस्टम रचा जिसमें बिना पढ़े-लिखे कोई भी टॉप कर सकता है. अगर आज 12वीं में ऐसे छात्र निकल रहे हैं तो इसका मतलब क्लास वन से उन्हें इसी तरह की शिक्षा मिल रही है. हम क्यों भूल रहे है कि अगर बुनियाद कमजोर है तो इमारत एक दिन ढह ही जाएगी. यानी बिहार बोर्ड में भ्रष्टाचार का दीमक नया नहीं लगा है, बल्कि दस, बीस या तीस साल से ये दीमक बिहार के एजुकेशन सिस्टम को धीरे-धीरे खोखला कर रहा है.
आज लोग भले ही कहें की नंबर देने या कॉपी जांचने में गलती हुई है, लेकिन ये तमाम मुद्दे गौण हैं.
महत्वपूर्ण है तो ये कि किस स्कूल से उसने पढ़ाई की? वहां उसके टीचर कौन थे? क्या पता थे भी या नहीं? जिन स्कूलों से टॉपरों ने पढ़ाई की वो स्कूल असल में हैं भी या सिर्फ कागज पर ही मौजूद हैं?
सोशल मीडिया पर गणेश कुमार के स्कूल की कुछ तस्वीरें वायरल हो रही हैं. जिसके मुताबिक 2013 में ही इस स्कूल को बिहार बोर्ड से मान्यता मिली थी और 2017 में 12वीं का पहला बैच यहां से निकला. 12वीं तक का ये स्कूल महज पांच कमरों में चलता है. अगर ये सब सही है तो बिहार सरकार की जिम्मेदारी टॉपर घोटाले की जांच सीबीआई और ईडी को देने भर से नहीं खत्म होती. बल्कि उनकी असल जिम्मेदारी तो कहीं बड़ी है, बहुत बड़ी.

चुनौती आसान नहीं

अब वक्त आ गया है कि सुशासन बाबू सूबे के शिक्षा तंत्र को खोखला करने वाले दीमकों का पता लगाएं और उनका इलाज करें. शिक्षा मंत्री या बोर्ड के अफसरों पर कार्रवाई से कुछ हासिल नहीं होगा. और ना ही स्कूल या टीचर को दंडित करने से कुछ हासिल होगा. बिहार में ना तो मेधा की कमी है, न मेहनती छात्रों की और न ही शानदार शिक्षकों की. क्योंकि पूरे देश में धाक रखने वाला सुपर-30 बिहार में ही है, जिसके करीब 100 प्रतिशत छात्र आईआईटी जैसी देश की सबसे कठिन प्रवेश परीक्षा चुटकियों में निकाल लेते हैं. सिविल सेवा परीक्षा में बिहार के छात्रों की धाक से पूरा देश वाकिफ है. ऐसे में साल दर साल बिहार की साख पर टॉपर घोटाले का बट्टा क्यों लग रहा है?
नीतीश कुमार. (फोटो: PTI)
नीतीश कुमार. (फोटो: PTI)
आज जरूरत है कि बिहार के हर स्कूल को इस काबिल बनाया जाए कि वहां से दोबारा कोई गणेश कुमार या रूबी नहीं निकले. ये चुनौती आसान नहीं है लेकिन पूरे देश में बिहार की जो जगहंसाई हो रही है उसे देखते हुए नीतीश कुमार को ये करना ही होगा.
इसके लिए सरकार को ..
  • राज्य के हर स्कूल का फिजिकल वेरिफिकेशन करने की जरूरत है.
  • स्कूलों में छात्र और टीचर के रेशियो पर ध्यान देने की जरूरत है.
  • स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर को रिफ्रेशर कोर्स कराने की जरूरत है ताकि वो वक्त से कदम मिलाकर चल सकें.
  • शिक्षा मित्र का जो चलन बिहार सरकार ने शुरू किया था उस पर फिर से विचार करने की जरूरत है.
क्योंकि अस्थाई नौकरी करने वाला टीचर छात्रों को अस्थाई ज्ञान ही देगा. इसलिए टीचरों की चयन प्रक्रिया कड़ी करनी होगी और उन्हें नतीजा आधारित लक्ष्य देने होंगे.
यकीन मानिए आज भी बिहार में रूबी राय और गणेश कुमार से कहीं बेहतरीन ब्रांड एम्बेसडर हैं. जरूरत बस उन्हें तलाशने और तराशने की है. शिक्षा तंत्र में सुधार की ये राह लंबी हो सकती है, क्योंकि दशकों से जिस सिस्टम को दीमक ने खोखला किया है उसे दुरुस्त कर फिर से पटरी पर लाने में भी वक्त लगेगा.
कौन जाने तब तक नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहे या न रहें, लेकिन अगर उन्होंने सूबे के एजुकेशन सिस्टम को दुरुस्त कर दिया तो आने वाली पीढ़ियां भी उनको सुशासन बाबू के नाम से ही याद रखेंगी.
नोट – लेखक बिहारी है और उसकी सभी डिग्रियां सत्यापित हैं.
(लेखिका सरोज सिंह @ImSarojSingh स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं. द क्विंट का उनके विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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