बिहार की खिल्ली उड़ाने से पहले ये भी पढ़ लीजिए, आंखें खुल जाएंगी

लखनऊ। बिहार इस समय पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। पिछले साल का रूबी प्रकरण इस साल नाम बदलकर गणेश के नाम से आया गया। बिहार की खिल्ली उड़ रही है। बिहार बोर्ड से टॉप करने वाला छात्र सलाखों के पीछे पहुंच चुका है। बिहार इस समय मीडिया के निशाने पर है।

ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या बिहार का वास्तविक चेहरा यही है जो हम देख रहे हैं। जैसा हम सुन रहे हैं। हम आपके सामने बिहार का एक दूसरा पक्ष रखना चाहते हैं। एक ऐसा पक्ष जिसकी चर्चा बिहार के संदर्भ में कम ही की जाती है।
इधर कुछ वर्षों में नौकरशाह देने के मामले बिहार थोड़ा पीछे जरूर हुआ है लेकिन अभी भी वो अन्य कई बड़े प्रदेशों से आगे है। 2010 तक भारत में कुल 4443 आईएएस थे। इसमें सबसे ज्यादा 671 उत्तर प्रदेश और फिर बिहार के 419 आईएएस थे। 2010 में बिहार सिर्फ उत्तर से पीछे था जबकि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, नई दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्य प्रदेश केरल और कोलकाता से आगे था। 2011-15 के बीच बिहार ने देश को 68 आईएएस अफसर दिए। इस मामले में बिहार उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु के बाद चौथे स्थान पर रहा। वहीं अगर हाल ही में घोषित संघ लोक सेवा आयोग के सिविल सेवा परीक्षा 2015-16 में अंतिम परीक्षाफल में बिहार के 33 अभ्यर्थी सफल हुए हैं। इतनी बड़ी संख्या कम नहीं होती। सिविल सेवा 2014 में बिहार के 83 अभ्यर्थी सफल हुए थे।

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हर दसवां आईएएस बिहार से

1 जनवरी 2017 के अनुसार देश में आईएएस कैडर का हर दसवां आदमी बिहार से है। देश के 1588 आईएएस अफसरों में से 108 बिहार के हैं (ये आंकड़े 1997 से 2006 के बीच के हैं)। केंद्र सरकार में बहुत से सचिव बिहार कैडर के हैं। बिहार के आईएएस अफसरों देश की महती जिम्मेदारी भी है। 1980 बैच के अरुण झा राष्ट्रीय जनजाति आयोग के सचिव हैं।

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अरुण झा।
इससे पहले जनजातीय मंत्रालय में सचिव थे। झा प्रधानमंत्री के अधीन वाले विभाग-प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत में विशेष सचिव रह चुके हैं। गिरिश शंकर तीन सितंबर 2015 को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आए। पहले गृह मंत्रालय में तैनाती हुई। अभी भारी उद्योग विभाग के सचिव हैं। यह केंद्र सरकार का महत्वपूर्ण विभाग है। शंकर 1982 बैच के अधिकारी हैं। नवीन वर्मा को उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास मंत्रालय का सचिव बनाया गया है। वर्मा 1982 बैच के हैं। बिहार कैडर के चर्चित अधिकारी अमिताभ वर्मा जहाजरानी मंत्रालय के अधीन अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकार के अध्यक्ष हैं। 1997 बैच के संतोष मल्ल केंद्रीय विद्यालय संगठन के आयुक्त हैं। देश भर में फैले सैकड़ों केंद्रीय विद्यालयों की देखरेख की जिम्मेदारी इसी संगठन पर है।

केंद्र में 52 विभाग, 7 के सचिव बिहार के आईएएस

देश भर के कुल 4926 ( मार्च 2017 तक) आईएएस अधिकारियों में 462 अकेले बिहार से हैं। यानी 9.38 प्रतिशत टॉप ब्यूरोक्रेट्स बिहारी हैं। इस मामले में बिहार से आगे सिर्फ उत्तर प्रदेश है जहां के 731 (14.84 प्रतिशत) आईएएस अधिकारी हैं। केंद्र में 52 विभाग हैं। इनमें सात के सचिव बिहार कैडर के हैं। राज्य कैडर के कुल 42 आईएएस केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। संजीव हंस, एन सरवन कुमार, सर्वानन एम, कुंदन कुमार, अभय कुमार सिंह और बी कार्तिकेय विभिन्न मंत्रियों से संबद्ध् हैं। एम सर्वानन प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह से जुड़े हैं।

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सिस्टम ही सही नहीं है। स्कूल-कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी है। जो हैं भी तो वे योग्य नहीं हैं। ऐसे में शिक्षा व्यवस्था ठीक होने की उम्मीद कम हो जाती है।
डॉ योगेंद्र, शिक्षाविद्, भागलपुर विश्वविद्यालय

टॉपर के मामले में भी बिहार आगे

1972 से 2016 तक, यूपीएससी में सबसे ज्यादा टॉपर के ही हुए हैं। इस मामले में बिहार उत्तर प्रदेश के साथ संयुक्त रूप से पहले स्थान पर है। दोनों प्रदेश ने 5-5 यूपीएससी टॉपर दिए हैं। बिहार से 1987 में आमिर सुभानी, 1988 में प्रशांत कुमार, 1996 में सुनील कुमार बरनवाल, 1997 में देवेश कुमार और 2001 आलोक रंजन झा ने यूपीएसी टॉप किया था।
इस वर्ष बिहार बोर्ड के 12वीं बा टापर गणेश कुमार। जिये जेल भेज दिया गया है।

व्यवस्था फेल हुई, छात्र नहीं

अब सवाल ये उठता है कि जब बिहार देश के सबसे कठिन परीक्षा में अव्वल आता रहा है तो बिहार बोर्ड के परीक्षा परिणाम पर स्वाल क्यों उठ रहे हैं। इसका जवाब हमने बिहार के ही कुछ लोगों से जानने का प्रयास किया। पटना विश्वविद्वालय के छात्र और यूपीएससी की तैयारी कर रहे कुंदन गौतम बताते हैं कि प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था ठीक नहीं है। जो बच्चे प्रतियोगी परीक्षा में पास होते हैं वे बिहार से बाहर जाकर तैयारी करते हैं। यहां योग्य शिक्षक नहीं होते जिस कारण परीक्षा परिणाम बिगड़ता है। गरीबी भी इसकी बड़ी वजह है। लोग आगे बढ़ने के लिए कुछ भी कर रहे हैं।
हमारे यहां पढ़ाई में राजनीति होने लगी है। स्कूलों में ठीक पढ़ाई नहीं होती जिस कारण बच्चे बाहर जाने को मजबूर हैं। शिक्षा व्यवस्था से राजनीति खत्म नहीं हुई तो बिहार ऐसे ही बदनाम होता रहेगा। सिविल की परीक्षाएं निष्पक्ष होती हैं जिस कारण बिहार के छात्र बेहतर कर पाते हैं।
गौरव कुमार, सफल अभ्यर्थी, 2016 यूपीएससी परीक्षा, बिहार, अरवल
जेएनयू के छात्र अंकित दूबे कहते हैं फेल बिहार नहीं, उसका सिस्टम हो रहा है। सरकार बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकार को बर्खास्त कर देना चाहिए। बिहार से पासआउट छात्रों को अन्य प्रदेशों में शक की नजारों से देखा जाता है। उनकी काबीलियत पर सवालियां निशां लग रहे हैं।
वहीं लेखक और वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र कहते हैं कि न तो बिहार का हर छात्र प्रतिभाशाली है, और न ही हर छात्र नकलची। दूसरे राज्यों की तरह हमारे यहां भी दोनों तरह के छात्र हैं। हमारी कमी व्यवस्था की है, क्योंकि अगर स्कूल-कॉलेज में ढंग की पढ़ाई हो तो कम प्रतिभाशाली छात्र भी औसत स्थिति में शिक्षा प्राप्त कर ही लेता है।
जैसा प्राइवेट स्कूलों में होता है। मगर पिछले 25 सालों से हमारे यहां शिक्षा के विकास और उसके संसाधनों के नाम पर बिल्कुल काम नहीं हुआ। शिक्षकों की नियुक्ति इस तरह हुई कि खुद वहां अनपढ़ डिग्रीधारियों का जमावड़ा हो गया। स्कूल परीक्षा दिलाने के केंद्र के रूप में विकसित होते चले गये। जिनको पढ़ना था, उन्हें मजबूरन राज्य छोड़ना पड़ा। परीक्षा बोर्ड भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए। बिना पढ़े डिग्रियां मिलने लगी और जिन्हें सिर्फ डिग्रियां चाहिए थीं, उन्होंने पढ़ना छोड़ दिया। अब पिछले तीन साल से मीडिया की सक्रियता की वजह से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, लिहाजा सरकार को भी सख्त कार्रवाई करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यह फेल्योर व्यवस्था का है, छात्रों का नहीं।
(आंकड़े आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन बिहार से साभार)

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