हाईकोर्ट की पृच्छा के बाद शिक्षकों की सेवा शर्त जल्द आना तय
--------------------------------------------------------------------
सर्वहारा विकास मंच की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान - सरकार से चार हफ्ते में मांगा जवाब । पूछा कि RTE के अनुरूप क्यों तय नही की गयी शिक्षकों की जिम्मेदारी ?
##############################
मित्रों ! शिक्षकों और पूरी शिक्षा व्यवस्था का मजाक बनाकर शिक्षकों को समाज के कटघरे में खड़ा करने वाली बिहार सरकार अब अदालत में बेनकाब होने की स्थिति मे आ गई है । पहल सर्वहारा विकास मंच ने की है । मंच की कोषाध्यक्षा होने के नाते श्रीमती पिंकी माया ने उच्च न्यायालय, पटना के समक्ष जनहित याचिका ( CWJC No - 19026/2016 ) दायर कर नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त तय नहीं करने के कारण प्रदेश में चौपट शिक्षा व्यवस्था की ओर अदालत का ध्यान आकृष्ट कराया था जिसकी सुनवाई आज माननीय मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन ने की । अदालत ने चार सप्ताह का समय देते हुए सरकार से यह बताने को कहा है कि RTE के प्रावधानों के अनुसार सरकार ने अबतक शिक्षकों की क्या - क्या सेवा शर्त तय की है? साथ हीं यह भी बताने को कहा है कि राज्य के स्कूलों मे शिक्षक संसाधन का स्वरूप क्या है? मंच ने अदालत से गुहार लगाई है कि नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त अविलंब तय की जाए ताकि राज्य के सभी सरकारी स्कूलों मे बच्चों की मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम को अक्षरशः लागू किया जा सके ।
जैसा कि आप विदित हैं कि RTE के प्रावधानों के अनुसार सभी विद्यालयों में कक्षा - i - v एवं कक्षा vi- viii के लिए अलग - अलग अर्थात प्रत्येक मध्य विद्यालय मे दो - दो प्रधानाध्यापक , कक्षा vi- viii के लिए विषयवार शिक्षक, सभी मध्य विद्यालयों मे शारीरिक शिक्षक, कला एवं कार्य शिक्षा के लिए अंशकालिक शिक्षक की व्यवस्था की जानी थी । शासन की उदासीनता के कारण देश में TRE लागू होने के सात वर्षों बाद भी स्कूलों में इसकी व्यवस्था नहीं की जा सकी है । बिहार में नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त तय किये बिना उपरोक्त मानदंड पूरे नहीं किये जा सकते हैं । यहां तो नियोजित शिक्षकों को प्रधानाध्यापक बनाने की मनाही है । यदि राज्य सरकार नियोजित शिक्षकों के लिए व्यवस्थित और तर्कपूर्ण सेवा शर्त नही बनाती है तो 72000 स्कूलों में प्रधानाध्यापक भी नही दे पाएगी । यह याचिका अपने आप में राज्य की शैक्षिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है । वहीं अदालत में जवाब देने से पहले सरकार को हर हाल में नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त तय करके जाना होगा अन्यथा सरकार के पास कोई जवाब नही होगा । अब यह भी तय है कि सरकार को नियोजित शिक्षकों को भी प्रधानाध्यापक बनाने का नीतिगत निर्णय लेना ही होगा ।
हलांकि हम नियोजित शिक्षकों के लिए अलग से सेवा शर्त के समर्थक नहीं हैं बल्कि हमारी मांग यह है कि नियोजित शिक्षकों की सेवा पुराने शिक्षकों के लिए निर्धारित सेवा शर्तों के अधीन सामंजित की जाए । हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि सर्वहारा विकास मंच का यह प्रयास नियोजित शिक्षकों के लिए एक बेहतर सेवाशर्त तय करा पाने और गरीबों के बच्चों की शिक्षा को बेहतर बना पाने मे एक कीर्तिमान स्थापित करे ।
कृपया याचिका पूर्व सरकार को सौंपे गए ज्ञापन, RTE के प्रावधान और याचिका के विषय वस्तु को विस्तार पूर्वक पढकर तार्किक विश्लेषण करेंगे कि क्या हम सही दिशा मे अग्रसर हैं या नहीं?
सधन्यवाद
आपका
वंशीधर ब्रजवासी
--------------------------------------------------------------------
सर्वहारा विकास मंच की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान - सरकार से चार हफ्ते में मांगा जवाब । पूछा कि RTE के अनुरूप क्यों तय नही की गयी शिक्षकों की जिम्मेदारी ?
##############################
मित्रों ! शिक्षकों और पूरी शिक्षा व्यवस्था का मजाक बनाकर शिक्षकों को समाज के कटघरे में खड़ा करने वाली बिहार सरकार अब अदालत में बेनकाब होने की स्थिति मे आ गई है । पहल सर्वहारा विकास मंच ने की है । मंच की कोषाध्यक्षा होने के नाते श्रीमती पिंकी माया ने उच्च न्यायालय, पटना के समक्ष जनहित याचिका ( CWJC No - 19026/2016 ) दायर कर नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त तय नहीं करने के कारण प्रदेश में चौपट शिक्षा व्यवस्था की ओर अदालत का ध्यान आकृष्ट कराया था जिसकी सुनवाई आज माननीय मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन ने की । अदालत ने चार सप्ताह का समय देते हुए सरकार से यह बताने को कहा है कि RTE के प्रावधानों के अनुसार सरकार ने अबतक शिक्षकों की क्या - क्या सेवा शर्त तय की है? साथ हीं यह भी बताने को कहा है कि राज्य के स्कूलों मे शिक्षक संसाधन का स्वरूप क्या है? मंच ने अदालत से गुहार लगाई है कि नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त अविलंब तय की जाए ताकि राज्य के सभी सरकारी स्कूलों मे बच्चों की मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम को अक्षरशः लागू किया जा सके ।
जैसा कि आप विदित हैं कि RTE के प्रावधानों के अनुसार सभी विद्यालयों में कक्षा - i - v एवं कक्षा vi- viii के लिए अलग - अलग अर्थात प्रत्येक मध्य विद्यालय मे दो - दो प्रधानाध्यापक , कक्षा vi- viii के लिए विषयवार शिक्षक, सभी मध्य विद्यालयों मे शारीरिक शिक्षक, कला एवं कार्य शिक्षा के लिए अंशकालिक शिक्षक की व्यवस्था की जानी थी । शासन की उदासीनता के कारण देश में TRE लागू होने के सात वर्षों बाद भी स्कूलों में इसकी व्यवस्था नहीं की जा सकी है । बिहार में नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त तय किये बिना उपरोक्त मानदंड पूरे नहीं किये जा सकते हैं । यहां तो नियोजित शिक्षकों को प्रधानाध्यापक बनाने की मनाही है । यदि राज्य सरकार नियोजित शिक्षकों के लिए व्यवस्थित और तर्कपूर्ण सेवा शर्त नही बनाती है तो 72000 स्कूलों में प्रधानाध्यापक भी नही दे पाएगी । यह याचिका अपने आप में राज्य की शैक्षिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है । वहीं अदालत में जवाब देने से पहले सरकार को हर हाल में नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त तय करके जाना होगा अन्यथा सरकार के पास कोई जवाब नही होगा । अब यह भी तय है कि सरकार को नियोजित शिक्षकों को भी प्रधानाध्यापक बनाने का नीतिगत निर्णय लेना ही होगा ।
हलांकि हम नियोजित शिक्षकों के लिए अलग से सेवा शर्त के समर्थक नहीं हैं बल्कि हमारी मांग यह है कि नियोजित शिक्षकों की सेवा पुराने शिक्षकों के लिए निर्धारित सेवा शर्तों के अधीन सामंजित की जाए । हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि सर्वहारा विकास मंच का यह प्रयास नियोजित शिक्षकों के लिए एक बेहतर सेवाशर्त तय करा पाने और गरीबों के बच्चों की शिक्षा को बेहतर बना पाने मे एक कीर्तिमान स्थापित करे ।
कृपया याचिका पूर्व सरकार को सौंपे गए ज्ञापन, RTE के प्रावधान और याचिका के विषय वस्तु को विस्तार पूर्वक पढकर तार्किक विश्लेषण करेंगे कि क्या हम सही दिशा मे अग्रसर हैं या नहीं?
सधन्यवाद
आपका
वंशीधर ब्रजवासी