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बच्चों का अरमान अधूरा, शिक्षा के नाम पर कोरम पूरा

सुपौल। भले ही सरकार शिक्षा को मौलिक अधिकार दिए जाने के बाद स्कूली बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कराने की दिशा में कटिबद्ध हो। लाखों-कराड़ों की राशि गुणवता पूर्ण शिक्षा के नाम पर खर्च कर रही हो।
लेकिन शिक्षा विभाग के नीति नियंता की वजह से प्रखंडा में कई ऐसे विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को गुणवता पूर्ण शिक्षा तो दूर आज भी सामान्य शिक्षा से वंचित होना पड़ रहा है। बच्चे विद्यालय भी आते हैं, मगर हाजिरी बनाकर पुन: अपने घर जाना ही मुनासिब समझते हैं। खासकर छात्राएं तो हाजिरी बनाकर विद्यालय में रुकना भी पसन्द नहीं करती। कार्यरत शिक्षकगण भी विभागीय व्यवस्था को कोसते हुए इन बच्चों को रोकने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। ऐसे विद्यालयों में से एक विद्यालय गोविन्दपुर पंचायत स्थित मध्य विद्यालय घटहा भी है। जहां कुल नामांकित छात्र एवं छात्राओं की संख्या 765 एवं शिक्षकों की संख्या 10 है। पर्याप्त भवन होने की वजह से वर्ग कक्ष की कमी नहीं है। विद्यालय में बच्चों के लिए वर्ग कक्ष की सुविधाओं व विषयवार शिक्षकों का घोर अकाल है। कुल 10 शिक्षक एवं शिक्षिकाओं में से 8 उर्दू विषय के ही शिक्षक हैं। जो अपनी उपस्थिति पंजी पर हस्ताक्षर भी उर्दू में ही करते हैं। वहीं वर्ग कक्ष में बेंच एवं डेस्क पर्याप्त मात्रा में नहीं रहने के कारण 6-8वीं कक्षा की छात्राएं जमीन पर बैठना पसन्द नहीं करती। कई बार औचक निरीक्षण में विद्यालय पहुंचे पदाधिकारियों ने उर्दू शिक्षकों से कहा भी है कि वे उपस्थिति पंजी पर हिन्दी में हस्ताक्षर करें। लेकिन इनमें से अधिकांश शिक्षकों ने यही कहा कि वे उर्दू छोड़ अन्य भाषा नहीं लिख पाते हैं। हिन्दी के मात्र दो शिक्षक है। जिनमें से एक विद्यालय प्रधान ही हैं, जिन्हें विद्यालय में बढ़ते विभागीय कार्य की वजह से कार्य के निष्पादन की व्यवस्था में तत्पर रहना पड़ता है। अब सवाल उठता है कि उक्त स्कूल के बच्चों को हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, संस्कृत आदि पाठ्यक्रम के विषयों को कौन पढ़ाएगा। अगर पाठ्यक्रम की पढ़ाई ही नहीं होगी तो बच्चे स्कूल में क्या करेंगे। बच्चों के विद्यालय में ठहराव हेतु विद्यालय प्रधान व अन्य शिक्षकों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। विद्यालय में अधिकांश बच्चे मध्याह्न भोजन के खाने तक ही रुकते हैं, या फिर मध्याह्न भोजन के खाने के वक्त पुन: विद्यालय आ जाते हैं। ऐसे में कई अहम सवाल उक्त विद्यालय के पोषक क्षेत्र के लोगों के जेहन में उठता है कि उनके बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के नाम पर शिक्षा विभाग व उसके विभागीय पदाधिकारी आखिर विद्यालय में क्या जांच करने आते हैं। विद्यालय में संसाधन की कमियों व शिक्षा में आने वाली मुख्य अड़चनों को दूर कर पाना क्या उनके वश में है। जबकि विद्यालय की इन स्थितियों से पदाधिकारीगण अनभिज्ञ नहीं हैं। विद्यालय प्रधान कृष्णदेव रजक बताते हैं कि वे सम्बन्धित उच्चाधिकारियों को एक नहीं कई बार स्थिति से अवगत करा चुके हैं। स्वयं कई उच्चाधिकारी भी अपने औचक निरीक्षण में विद्यालय की स्थिति से अवगत होते रहे हैं। प्रधान बताते हैं कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वे विद्यालय के पठन-पाठन एवं सफल संचालन की दिशा में यथासंभव कोशिश करते रहते हैं।
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-कोट
-रिक्तियों के आलोक में पूर्व से ही शिक्षक पदस्थापित हैं। विभाग को भी विद्यालय की समस्या से अवगत कराया जा चुका है। विभाग द्वारा उन्हें जैसा निर्देश प्राप्त होगा। उस आधार पर कार्रवाई होगी।
पूनम सिन्हा,
प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी
प्रतापगंज

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