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साक्षरता के मामले में आकड़े हवा-हवाई, वास्तविकता डरावनी

बेतिया । जिले में साक्षरता के मामले में शिक्षा विभाग चाहे जो आंकड़े प्रस्तुत करें लेकिन इतना तो अवश्य है कि सरकारी आंकड़ों का वास्तविकता के साथ कोई खास मेल नहीं है। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो साक्षरता व स्वच्छता सगी बहनें बन गयी है।
जिस प्रकार सरकारी दाव को मुंह चिढ़ाकर आज भी ग्रामीण महिलाएं शौच के लिए सरेह व खेत खलिहानों को जा रही है उसी प्रकार साक्षरता मामले में आज भी हजारों ऐसी महिलाएं है जो कहने को साक्षर है लेकिन सही तरीके से अपना नाम भी नहीं लिख पाती है। प्रसव के बाद जब महिलाएं सरकारी चेक को लेने अस्पतालों में आती है तो चेक पर एक हस्ताक्षर करने में उनके पसीने छुटते हैं। बाद में उन्हीं महिलाओं में से अधिकांश को साक्षर बताकर सरकारी आंकड़ें तैयार कर लिए जाते हैं। अगर हम विद्यालयों की बात करें तो फेल नहीं करने के फामरूेले ने शिक्षा की गुणवत्ता पर ग्रहण लगा दिया है। बच्चे क्या पढ़ते हैं यह समझना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। विद्यालय परिसर में अधिकतर शिक्षक व शिक्षिकाएं गैर शैक्षणिक कार्यो में व्यस्त पाये जाते है। पहले अध्यायों का बारीकी से पढ़ाई होता था लेकिन अब तो बस सब उपर वाले के हाथ में है। हालांकि सरकार द्वारा ग्रेडिंग करने की योजना की घोषणा से कुछ फर्क पड़ा है लेकिन अभी भी हवाबाजी अधिक है। उपलब्धियां भी मिली है और घास काटने से लेकर सरेह में मंडराने अथवा चूल्हे के आसपास अपनी उम्र बिताने वाली महिलाएं भी साक्षर हुई है लेकिन अभी भी साक्षरता का पहिया मुख्यधारा में आने के बजाय हासिए पर ही हांफता नजर आ रहा है। सरकारी योजनाओं की आपाधापी में जिन विद्यालयों में पांच साल पहले दस बीस छात्र छात्राओं का आंकड़ा हुआ करता था आज वहां साइकिल छात्रवृत्ति व पोशाक राशि तथा मिड डे मिल की लालच में दो से तीन सौ छात्र छात्राओं की संख्या देखी जा रही है इससे पढ़ाई का माहौल भी बन रहा है लेकिन अगर नियमों को सख्ती से लागू कर दिया जाए तो स्थिति और भी बेहतर हो सकती है।
इनसेट
मेरी एडलिन के प्रयास से जेल में भी साक्षर हुए लोग

राज्य साधनसेवी मेरी एडलिन के प्रयासों के कारण जिले में चालीस हजार से अधिक महिलाएं महापरीक्षा पास कर साक्षर बन चुकी है। घर घर में ककहरा के बोल सुनाई दे रहे हैं। प्रेरणा कार्यक्रम के कारण जिले के हजारों कैदी साक्षर होकर आत्मनिर्भर हो रहे हैं। लेकिन निराशा के भाव तब देखे जाते हैं जब सरकारी विद्यालयों में साल बीत जाने पर भी पुस्तकों की उपलब्धता नहीं पायी है। लाखों बच्चे आज भी पुस्तकों की बाट जोह रहे हैं। ऐसे माहौल में साक्षरता मिशन का क्या हश्र हो रहा होगा यह बताने की शायद आवश्यकता ही नहीं है। हालांकि सरकारी योजनाओं व हाल ही में जीविका के सदस्यों के द्वारा विद्यालयों के निरीक्षण व अनुश्रवण की सरकारी घोषणा के बाद इतना तो जरुर प्रतीत हो रह है कि साक्षरता के मामले में सरकारी विद्यालयों की दशा में सुधार होता दिखाई दे रहा है। अभी भी सरकारी विद्यालयों में उपस्करों की भारी कमी देखी जा रही है। नौतन बैरिया सहित गंडक नदी के आसपास के बाढ़ वाले इलाके में आज भी कई ऐसे विद्यालय हैं जहां पर नामांकित बच्चे बाढ़ के दिनों में तीन से चार माह तक विद्यालय ही नहीं जाते हैं इससे सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि साक्षरता का मामला यहां कैसा रहता होगा। भवनों की अगर बात करें तो हाल ही में शिक्षा विभाग ने पचास से अधिक वैसे शिक्षको पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश जारी किया था जिन्होंने अपने विद्यालय भवन के लिए आवंटित राशि का घोटाला कर लिया था। इससे भी अंदाज लगाया जा सकता है कि इन विद्यालयों में साक्षरता के प्रति शिक्षक कितना समर्पित रहे होंगे। बहरहाल साक्षरता के मामले में हमारे पांच साल पहले वाले आकड़े में काफी इजाफा प्रतीत हो रहा है और आशा है कि आनेवाले समय शिक्षा विभाग और बेहतर परिणाम दे पाएगा।
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