नई दिल्ली। अच्छी शिक्षा पाने का खर्च दिनोंदिन देश में बढ़ता जा रहा है। शुरूआती शिक्षा से लेकर किसी प्रोफेशनल कोर्स की फीस हर साल बड़ी तेजी से बढ़ रही है। फाइनेंशियल प्लानिंग दुरुस्त न होने पर कई बार पढ़ाई के बड़े खर्चे आम आदमी के मासिक बजट को बिगाड़ देते हैं।
ऐसे में बच्चे की पढ़ाई पर होने वाले खर्च का पहले से अनुमान लगाकर उसके लिए सही प्लानिंग करना एक समझदारी का निर्णय साबित हो सकता है।
एक्सपर्ट का नजरिया
फिनएज एडवाइजरी के डायरेक्टर और बिजनेस हेड अनिरुद्ध बोस का कहना है कि एजुकेशन की कॉस्ट ऊंचे रेट पर बढ़ रही है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई के लिए सही समय पर बचत कर निवेश शुरू कर देना चाहिए। ध्यान रहे एजुकेशन के लिए आपने जिन विकल्पों में निवेश किया है उस पर मिलने वाला रिटर्न महंगाई की दर को मात देने वाला होना चाहिए।
सरकारी आंकड़ों में भी बढ़ता खर्चे का ग्राफ
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के 2008 से 2014 के बीच हुए सर्वे के आंकड़े बताते हैं के भारत में उच्च शिक्षा लगातार महंगी होती जा रही है। सर्वे के मुताबिक प्राइमरी से पोस्ट ग्रैजुएशन कोर्स की फीस में 175 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि इसी दोरान प्रोफेशनल और टेक्निकल एजुकेशन में 96 फीसदी की बढ़त हुई है। इसमें कोर्स की फीस, बुक्स, ट्रांसपोर्टेशन, कोचिंग और अन्य खर्चे शामिल हैं। वर्ष 2014 में किसी भी प्राइवेट संस्थान की पढ़ाई का खर्चा सरकारी स्कूल की तुलना में 11 गुना ज्यादा था जबकि हायर एजुकेशन का खर्च तीन गुना ज्यादा था।
भविष्य में हो सकती है कितने फंड की जरूरत?
आंकडों के मुताबिक एजुकेशन की महंगाई दर 10 से 12 फीसदी सालाना है। यही आंकड़ा आने वाले वर्षों में अगर औसतन 6 फीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ता है तो 16 वर्ष के बाद जिस इंजिनियरिंग कोर्स की फीस आज 6 लाख रुपए है वह 15 लाख हो जाएगी। इसी तरह एमबीए कोर्स की मौजूदा फीस अगर 10 लाख रुपए है वह 21 वर्ष के बाद 34 लाख रुपए हो जाएगी।
उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराने के लिए फाइनेंनशियल प्लानिंग जरूरी है। अन्य लक्ष्यों की तरह बच्चों की पढ़ाई के खर्च को लक्ष्य मानकर नियमित निवेश करना आवश्यक हो जाता है।
बच्चों की पढ़ाई के लिए फाइनेंनशियल प्लानिंग करते वक्त रखें इन बातों का ख्याल
1. प्लान तैयार करें-
निवेश विकल्प का चुनाव करने से पहले बच्चे की पढ़ाई की जरूरतों को देखते हुए एक टार्गेट एमाउट तय कर लें। मौजूदा समय में 2 से 3 करियर विकल्पों की फीस चेक कर लें। अब 8 फीसदी की महंगाई दर को ध्यान में रखते हुए कैल्कुलेट करें कि आज से 16 वर्ष बाद आपके बच्चे को अपनी पसंद का कैरियर विकल्प चुनने के लिए कितना पैसा खर्च करना होगा। एक बार जरूरत पड़ने वाली राशि की गणना करने के बाद ये पता करें कि इसके हर महीने कितनी बचत करनी होगी। ऊपर दिए गए उदाहरण के आधार पर 12 फीसदी के ग्रोथ रेट को देखते हुए इंजिनियरिंग कराने के लिए हर महीने 2,600 रुपए की बचत करनी होगी। और 21 वर्ष के बाद एमबीए करने के लिए यह राशि 3100 रुपए हो जाएगी। इसके लिए आप फाइनेंशियल प्लानर की भी मदद ले सकते हैं।
2. फंड्स का करें बेहतर मैनेजमेंट-
फंड्स का बेहतर मैनेटमेंट करने के लिए बच्चे की जरूरतों के हिसाब से पोर्टफोलियो बनाएं। फिनएज एडवाइजरी के डायरेक्टर और बिजनेस हेड अनिरुद्ध बोस का कहना है कि बच्चे की पढाई के खर्च का निवेश तीन बकेट छोटी अवधि, मध्यम अवधि और लंबी अवधि में बांट लें। इन तीनों में नियमित रूप से पैसे डालें और उसके बाद ट्रैक करें।
3. पोर्टफोलियो का करें निर्माण-
बच्चे की पढ़ाई की जरूरतों का निवेश पोर्टफोलियो तय अवधि के पूरा होने के आखिर 10 वर्षों में निवेश केवल इक्विटीज में होना चाहिए। इक्विटी के इंस्ट्रूमेंट्स जैसे कि इक्विटी म्यूचुअल फंड्स, यूलिप फंड्स पोर्टफोलियो में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके अतिरिक्त बच्चे की पढ़ाई के लिए पब्लिक प्रोविडेंट फंड का भी चयन किया जा सकता है।
निवेश के लिए इन विकल्पों का कर सकते हैं चुनाव…
1. म्यूचुअल फंड्स-
डायवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंड्स का चयन कर आप लंबी अवधि के लिए अच्छा फंड जुटा सकते हैं। दो से चार म्युचुअल फंड स्कीम में एसआईपी शुरु करें। कोशिश करें कि इसमें लार्ज और मिड कैप फंड्स भी हों। इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम में निवेश करने से बच्चे का भविष्य सुरक्षित होगा और साथ ही टैक्स की भी बचत होगी। समय समय पर जरूरत पड़ने पर यूनिट्स निकाल लें, लेकिन निवेश नियमित रूप से करें। बोस का कहना है कि छोटी अवधि में होनी वाली जरूरतें मौजूदा आय से भी पूरी हो जाती हैं। बच्चे की पढ़ाई के लिए तीन से पांच वर्षों के लिए किया गया निवेश एसआईपी के बैलेंस्ड फंड्स में होना चाहिए। और लंबी अवधि के लिए एसआईपी मिड कैप और लार्ज कैप इक्विटी फंड्स में होनी चाहिए।
2. चाइल्ड यूलिप-
बच्चों की पढ़ाई के खर्चों को पूरा करने के लिए चाइल्ड यूलिप का भी चयन किया जा सकता है। इसके वेवर प्रीमियम फीचर की मदद से बच्चे को मनचाही उम्र में पैसे मिल जाते हैं। माता पिता होने के नाते सुनिश्चित कर लें कि अपने खुद के लिए टर्म इंश्योरेंस खरीदी हुई है ताकि आपके बाद बच्चे की भविष्य में होने वाली जरूरतें पूरी हो सके।
3. पब्लिक प्रोविडेंट फंड-
बच्चे के नाम से पब्लिक प्रोविडेंट फंड एकाउंट का भी चयन किया जा सकता है। पीपीएफ 15 वर्षों की स्कीम है जिसके जरिए टैक्स फ्री कॉर्पस का निर्माण किया जा सकता है। बच्चे की जरूरत के अनुसार एकाउंट के छठे वर्ष के बाद कुछ राशि की निकासी की जा सकती है। बच्चे के बालिक होने पर इस एकाउंट में वह खुद भी योगदान कर सकता है और इस एकाउंट को अनिश्चित समय के लिए अएक्सटेंड करवाया जा सकता है। ध्यान रहे कि पीपीएफ डेट निवेश है और इसलिए इसपर मिलने वाला रिटर्न काफी कम होगा। साथ ही माता पिता और बच्चे की पीपीएक एकाउंट की कुल लिमिट 1.5 लाख रुपए प्रति वर्ष होगा।
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ऐसे में बच्चे की पढ़ाई पर होने वाले खर्च का पहले से अनुमान लगाकर उसके लिए सही प्लानिंग करना एक समझदारी का निर्णय साबित हो सकता है।
एक्सपर्ट का नजरिया
फिनएज एडवाइजरी के डायरेक्टर और बिजनेस हेड अनिरुद्ध बोस का कहना है कि एजुकेशन की कॉस्ट ऊंचे रेट पर बढ़ रही है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई के लिए सही समय पर बचत कर निवेश शुरू कर देना चाहिए। ध्यान रहे एजुकेशन के लिए आपने जिन विकल्पों में निवेश किया है उस पर मिलने वाला रिटर्न महंगाई की दर को मात देने वाला होना चाहिए।
सरकारी आंकड़ों में भी बढ़ता खर्चे का ग्राफ
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के 2008 से 2014 के बीच हुए सर्वे के आंकड़े बताते हैं के भारत में उच्च शिक्षा लगातार महंगी होती जा रही है। सर्वे के मुताबिक प्राइमरी से पोस्ट ग्रैजुएशन कोर्स की फीस में 175 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि इसी दोरान प्रोफेशनल और टेक्निकल एजुकेशन में 96 फीसदी की बढ़त हुई है। इसमें कोर्स की फीस, बुक्स, ट्रांसपोर्टेशन, कोचिंग और अन्य खर्चे शामिल हैं। वर्ष 2014 में किसी भी प्राइवेट संस्थान की पढ़ाई का खर्चा सरकारी स्कूल की तुलना में 11 गुना ज्यादा था जबकि हायर एजुकेशन का खर्च तीन गुना ज्यादा था।
भविष्य में हो सकती है कितने फंड की जरूरत?
आंकडों के मुताबिक एजुकेशन की महंगाई दर 10 से 12 फीसदी सालाना है। यही आंकड़ा आने वाले वर्षों में अगर औसतन 6 फीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ता है तो 16 वर्ष के बाद जिस इंजिनियरिंग कोर्स की फीस आज 6 लाख रुपए है वह 15 लाख हो जाएगी। इसी तरह एमबीए कोर्स की मौजूदा फीस अगर 10 लाख रुपए है वह 21 वर्ष के बाद 34 लाख रुपए हो जाएगी।
उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराने के लिए फाइनेंनशियल प्लानिंग जरूरी है। अन्य लक्ष्यों की तरह बच्चों की पढ़ाई के खर्च को लक्ष्य मानकर नियमित निवेश करना आवश्यक हो जाता है।
बच्चों की पढ़ाई के लिए फाइनेंनशियल प्लानिंग करते वक्त रखें इन बातों का ख्याल
1. प्लान तैयार करें-
निवेश विकल्प का चुनाव करने से पहले बच्चे की पढ़ाई की जरूरतों को देखते हुए एक टार्गेट एमाउट तय कर लें। मौजूदा समय में 2 से 3 करियर विकल्पों की फीस चेक कर लें। अब 8 फीसदी की महंगाई दर को ध्यान में रखते हुए कैल्कुलेट करें कि आज से 16 वर्ष बाद आपके बच्चे को अपनी पसंद का कैरियर विकल्प चुनने के लिए कितना पैसा खर्च करना होगा। एक बार जरूरत पड़ने वाली राशि की गणना करने के बाद ये पता करें कि इसके हर महीने कितनी बचत करनी होगी। ऊपर दिए गए उदाहरण के आधार पर 12 फीसदी के ग्रोथ रेट को देखते हुए इंजिनियरिंग कराने के लिए हर महीने 2,600 रुपए की बचत करनी होगी। और 21 वर्ष के बाद एमबीए करने के लिए यह राशि 3100 रुपए हो जाएगी। इसके लिए आप फाइनेंशियल प्लानर की भी मदद ले सकते हैं।
2. फंड्स का करें बेहतर मैनेजमेंट-
फंड्स का बेहतर मैनेटमेंट करने के लिए बच्चे की जरूरतों के हिसाब से पोर्टफोलियो बनाएं। फिनएज एडवाइजरी के डायरेक्टर और बिजनेस हेड अनिरुद्ध बोस का कहना है कि बच्चे की पढाई के खर्च का निवेश तीन बकेट छोटी अवधि, मध्यम अवधि और लंबी अवधि में बांट लें। इन तीनों में नियमित रूप से पैसे डालें और उसके बाद ट्रैक करें।
3. पोर्टफोलियो का करें निर्माण-
बच्चे की पढ़ाई की जरूरतों का निवेश पोर्टफोलियो तय अवधि के पूरा होने के आखिर 10 वर्षों में निवेश केवल इक्विटीज में होना चाहिए। इक्विटी के इंस्ट्रूमेंट्स जैसे कि इक्विटी म्यूचुअल फंड्स, यूलिप फंड्स पोर्टफोलियो में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके अतिरिक्त बच्चे की पढ़ाई के लिए पब्लिक प्रोविडेंट फंड का भी चयन किया जा सकता है।
निवेश के लिए इन विकल्पों का कर सकते हैं चुनाव…
1. म्यूचुअल फंड्स-
डायवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंड्स का चयन कर आप लंबी अवधि के लिए अच्छा फंड जुटा सकते हैं। दो से चार म्युचुअल फंड स्कीम में एसआईपी शुरु करें। कोशिश करें कि इसमें लार्ज और मिड कैप फंड्स भी हों। इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम में निवेश करने से बच्चे का भविष्य सुरक्षित होगा और साथ ही टैक्स की भी बचत होगी। समय समय पर जरूरत पड़ने पर यूनिट्स निकाल लें, लेकिन निवेश नियमित रूप से करें। बोस का कहना है कि छोटी अवधि में होनी वाली जरूरतें मौजूदा आय से भी पूरी हो जाती हैं। बच्चे की पढ़ाई के लिए तीन से पांच वर्षों के लिए किया गया निवेश एसआईपी के बैलेंस्ड फंड्स में होना चाहिए। और लंबी अवधि के लिए एसआईपी मिड कैप और लार्ज कैप इक्विटी फंड्स में होनी चाहिए।
2. चाइल्ड यूलिप-
बच्चों की पढ़ाई के खर्चों को पूरा करने के लिए चाइल्ड यूलिप का भी चयन किया जा सकता है। इसके वेवर प्रीमियम फीचर की मदद से बच्चे को मनचाही उम्र में पैसे मिल जाते हैं। माता पिता होने के नाते सुनिश्चित कर लें कि अपने खुद के लिए टर्म इंश्योरेंस खरीदी हुई है ताकि आपके बाद बच्चे की भविष्य में होने वाली जरूरतें पूरी हो सके।
3. पब्लिक प्रोविडेंट फंड-
बच्चे के नाम से पब्लिक प्रोविडेंट फंड एकाउंट का भी चयन किया जा सकता है। पीपीएफ 15 वर्षों की स्कीम है जिसके जरिए टैक्स फ्री कॉर्पस का निर्माण किया जा सकता है। बच्चे की जरूरत के अनुसार एकाउंट के छठे वर्ष के बाद कुछ राशि की निकासी की जा सकती है। बच्चे के बालिक होने पर इस एकाउंट में वह खुद भी योगदान कर सकता है और इस एकाउंट को अनिश्चित समय के लिए अएक्सटेंड करवाया जा सकता है। ध्यान रहे कि पीपीएफ डेट निवेश है और इसलिए इसपर मिलने वाला रिटर्न काफी कम होगा। साथ ही माता पिता और बच्चे की पीपीएक एकाउंट की कुल लिमिट 1.5 लाख रुपए प्रति वर्ष होगा।
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