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भ्रष्टाचार सामने आने से दांव पर साख

बक्सर । पहले हुई फर्जी निकासी, छात्रवृत्ति घोटाला और उसके बाद आईसीडीएस डीपीओ के निगरानी के हत्थे चढ़ने के बाद प्रशासन की साख को गहरा धक्का लगा है। उच्च स्तर पर हुए भ्रष्टाचार ने प्रशासन द्वारा हाल के वर्षों में हुए बेहतर कार्यों की चर्चा को पीछे ढकेल दिया है।
वहीं, जिलाधिकारी रमण कुमार के आमजन के लिए प्रशासन के अभियान को भी कतिपय पदाधिकारियों की वजह से गहर धक्का लगा है।
एक के बाद एक घोटालों के सामने आने से एक तरफ जहां प्रशासन को बैडफील हो रहा है। वहीं, इससे विश्वास का संकट भी पैदा हो रहा है। कहा जा रहा है कि जांच हो तो कई अन्य विभागों में भी भ्रष्टाचार सामने आ सकता है। अभी छात्रवृत्ति के नाम पर हुए घोटाले की चर्चा आम है। लोग इसमें तरह-तरह की अटकलें लगा रहे हैं। शक की सूई कभी कल्याण विभाग की तरफ जा रही है तो कभी शिक्षा विभाग की तरफ। सवाल उठ रहा है, आखिर किसकी मिलीभगत से इतना बड़ा खेल हुआ। इसके अंतर्गत विद्यालयों को तो फर्जी बनाया ही गया, बैंकों में इनके खाते भी खुल गये। यही नहीं, इन बैंकों से छात्रवृत्ति के नाम पर करीब दो करोड़ रुपये की निकासी हो गयी। और सबसे बड़ी बात कि इसकी भनक तक किसी को नहीं लगी। अब जब मामले का खुलासा हो गया तो विभाग आपस में फटबॉल खेल रहे हैं। जिलाधिकारी रमण कुमार ने इस मामले में जांच टीम का गठन कर दिया है। हालांकि, जांच टीम में शिक्षा विभाग के अधिकारी को रखने पर भी लोग सवाल खड़े कर रहे हैं। कह रहे हैं जांच के दायरे में जब खुद शिक्षा विभाग भी है तो उस विभाग के अधिकारी को जांच टीम में रखने का क्या मतलब हो सकता है। बिहार प्रदेश कांग्रेस के पूर्व संगठन सचिव टी एन चौबे कहते हैं यहां राजा को अंधेरे में रख लकड़हारे वन बेच रहे हैं। उन्होंने समिति की जांच पर सवाल उठाते हुए छात्रवृत्ति घोटाले की जांच भी निगरानी से कराने की मांग की।

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