पटना: राज्य के माध्यमिक (हाइ) और उच्च माध्यमिक (प्लस टू) स्कूलों
में शिक्षकों की भारी कमी के चलते पढ़ाई का बुरा हाल है. विडंबना यह है कि
जो शिक्षक उपलब्ध हैं, उनका सही उपयोग भी नहीं हो रहा है. शहरी इलाकों में
जहां बहुत से स्कूलों में जरूरत से ज्यादा शिक्षक अधिकारियों तक पहुंच के
जरिये जमे हुए हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों बहुत से स्कूलों में सैकड़ों
बच्चों के लिए एक भी शिक्षक नहीं हैं. गणित, विज्ञान और अंगरेजी जैसे
महत्वपूर्ण विषयों में शिक्षकों की कमी सबसे ज्यादा है.
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक-छात्र अनुपात में काफी अंतर है.
नियमानुसार औसतन 35 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक होना चाहिए. बिहार
माध्यमिक शिक्षक संघ के पदाधिकारी बताते हैं, राज्य के शहरी क्षेत्रों में
50 से 60 विद्यार्थियों पर एक, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 70 से 80
विद्यार्थियों पर एक शिक्षक है. राज्य में शिक्षकों के करीब 18 हजार पद
रिक्त हैं, जिनमें करीब 15 हजार पदों पर नियोजन की प्रक्रिया चल रही है.
विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की
भारी कमी का कारण यह है कि लोग कई नियोजन इकाइयों में आवेदन करते हैं और एक
से अधिक जगहों पर चयन होने पर शहरी क्षेत्र को प्राथमिकता देते हैं.
नियमानुसार नियोजित शिक्षकों को अपनी नियोजन इकाई में रहना होता है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में शिक्षा
मंत्री से कहा था कि हाइस्कूलों में शिक्षकों की कमी जल्द दूर करें. इसके
बाद विभाग रिक्त पदों की समीक्षा कर रहा है और जल्द ही नियोजन का नया
शेड्यूल जारी हो सकता है.
माध्यमिक शिक्षा विभाग शिक्षकों की कमी को दूर करने का प्रयास कर रहा
है. विभाग का प्रयास यह भी है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में छात्र और
शिक्षकों का रेसियो एक समान रहे.
राजीव प्रसाद सिंह, निदेशक, माध्यमिक शिक्षा
राज्य के माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी
है. सरकार यदि उपलब्ध शिक्षकों को बच्चों की संख्या के आधार पर तैनात करे,
तो स्थिति कुछ हद तक सुधर सकती है.
केदार पांडेय, महासचिव, माध्यमिक शिक्षक संघ