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हाईकोर्ट नियोजित शिक्षकों के वेतनमान संबंधी रिट याचिकाओं को सिरे से खारिज क्यों करती है ???

हाईकोर्ट नियोजित शिक्षकों के वेतनमान संबंधी रिट याचिकाओं को सिरे से खारिज क्यों करती है?
जितनी भी रिट याचिकाएं दायर की जाती है सबमे बस एक ही मांग कर दी जाती है "समान काम समान वेतन"
शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के तहत पात्रता/दक्षता परीक्षा उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक को मूल कोटि मे समायोजत करते हुए 4200,4600, 4800 का ग्रेड पे स्वीकृत किया जाय।
जबकि कोर्ट निम्नलिखित बिन्दुओ पर केस को खारिज कर देता है---
(1) बहाली के लिए निकले विज्ञापन मे राज्य सरकार द्वारा सेवाशर्त और वेतनादि का निर्धारण किस प्रकार किया गया है ।
(2)" समान काम समान वेतन " यह मूल अधिकार नही,नीति निर्देशक तत्व है,
नीति निर्देशक तत्व न्यायालय मे वाद योग्य होता ही नही है।
(3)नई सेवाओं का सृजन करना राज्य सरकार का संवैधानिक अधिकार है इसे चेलैंज नही किया जा सकता है।
(4) पंचायत/प्रखण्ड /नगर /जिला परिषद शिक्षकों के लिए नई सेवाशर्त नियमावली लागू है। अतः कोर्ट इसे पुराने कोटि के शिक्षकों से तुलना करना युक्तिसंगत नही समझती है
इस प्रकार नियोजित शिक्षकों के वेतनमान दिलाने संबंधी दायर सैकड़ों रिट याचिकाएं खारिज हुई है और आगे भी दायर होनेवाली सभी याचिकाएं खारिज ही होंगी।
जीत होगी कैसे--------------------------
हमलोगो को जनहित याचिका दायर करना होगा जिसमे नियोजित शिक्षकों के वेतनमान देने का जिक्र नही करना होगा ।
हम उसमे ये मांग करें कि राज्य सरकार 15 वर्षों से खाली सहायक शिक्षकों के पद पर नियुक्ति आरम्भ करे क्योंकि सभी विभागों मे नई नियमित कोटि की नियुक्तियां हो रही हैं तो शिक्षा विभाग मे क्यो नही?
जबकि शिक्षा मौलिक अधिकार मे शामिल है।आर टी इ एक्ट 2009 एवं एन सी टी ई द्वारा निर्धारित मापदण्डों को पूरा करने वाले अभ्यर्थियो की नियुक्ति चयन आयोग द्वारा किया जाय।
इस आधार पर लड़ेंगे तो जीत निश्चित होगी और मूल कोटि का पद सृजित होगा तब हमलोग न्यायालय मे अपील करेंगे कि आखिर हमलोग नियोजन में ऐसे ही कबतक कार्यरत रहेंगे।
नई नियुक्ति मे प्राथमिकता कोर्ट हमे दिलायेगी ही।
सीधे नियोजित शिक्षकों को वेतनमान संबंधी याचिका जीतना मुश्किल है।
घूमा फिराकर सरकार खो फंसाना होगा तभी कोर्ट से जीत सम्भव है।


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