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विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त सियासी लाभ को कदम : बिहार शिक्षक नियोजन Latest Updates

विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त ऐसे मुद्दे को छूना जिससे सिर्फ एक कौम का हित जुड़ा हो, सत्तारूढ़ दल का राजनीतिक लाभ पाने की मंशा में उठाया गया कदम ही प्रतीत होता है। हालांकि इस बहाने पुराने रजिस्ट्री कानून में बदलाव करने का सरकारी मंसूबा सकारात्मक पहल भी मानी जाएगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रदेश में सत्तारूढ़ दल तीसरी बार सिंहासन पर विराजमान होने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। चुनावी लाभ की दृष्टि से लिए उसके फैसलों पर गौर करें तो नियोजित शिक्षकों को वेतनमान देने के मामले में पूर्व में यह कहा जाता रहा कि सपने में भी यह संभव नहीं है, डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने की मांग कई बार ठुकराई गई, लेकिन चुनाव सिर पर आते ही इन्हें कैबिनेट की मंजूरी मिल गई।

अब एक और चुनावी कदम पचीस साल पहले भागलपुर में हुए सांप्रदायिक दंगे के पीड़ितों को उनकी ऐसी जमीन-जायदाद को वापस दिलाने को उठाया गया है, जो उन्होंने भयाक्रांत होकर औने-पौने दामों पर बेच दी थी। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को हुए इतना लंबा समय बीत चुका है कि दंगा पीड़ितों की दूसरी पीढ़ी ही लाभ पाने की हकदार हो सकेगी। तमाम पीड़ित और उनके परिवार के लोग मुफलिसी का जीवन ही व्यतीत कर रहे होंगे। ऐसे कुल 85 लोगों को चिह्न्ति कर उन्हें संपत्ति वापस दिलाने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है, जिसे रजिस्ट्री कानून में बदलाव का जिम्मा दिया गया है।
भागलपुर दंगा 1989 में हुआ था। इसे याद कर आज भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। दंगा तकरीबन डेढ़ महीने तक चलता रहा। इसके बाद कुछ दिनों तक शांति रही, लेकिन 1990 में फिर से दंगा भड़क गया था। जिले में पांच महीनों तक चली ¨हसा में सैकड़ों लोग मारे गए थे। हजारों परिवार तबाह हो गए थे। दंगाइयों ने अरबों की संपत्ति को नष्ट कर दिया था। दंगा से भागलपुर को जो आर्थिक नुकसान पहुंचा, उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी है। उस समय जांच के लिए गठित जस्टिस शमसुल हसन और आरएन प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट में 1852 लोगों के मारे जाने, 11,500 मकान क्षतिग्रस्त, 600 पावरलूम और 1700 हैंडलूम नष्ट किए जाने की थी। सरकारी आंकड़े में 48 हजार लोगों के प्रभावित होने की बात और पीड़ितों की जमीनें जबरन लिखाने का जिक्र था। सत्ता में आने पर राजद ने दंगापीड़ितों के आंसू पोंछने को काफी कुछ किया, जब नीतीश कुमार ने सत्ता संभाली तो 2006 में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया।
गुरुवार को राज्य मंत्रिमंडल ने न्यायमूर्ति एनएन सिंह न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट और सिफारिशों के कई बिंदुओं को स्वीकार कर लिया है। आयोग ने रिपोर्ट में कहा है कि दंगा के बाद पीड़ितों की संपत्ति को लूटा गया और बाजार मूल्य से कई गुना कम कीमत पर बेचने को मजबूर कर दिया गया। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति जिसमें डीजपी, गृह, विधि एवं राजस्व व भूमि सुधार विभागों के प्रधान सचिवों को बतौर सदस्य शामिल किया है, पीड़ितों को सम्पत्ति वापस दिलाने की कार्ययोजना बनाएगी। इसके लिए विधानमंडल में विधेयक लाने की तैयारी भी की गई है, ऐसा हुआ तो दंगा पीड़ितों की संपत्ति को हथियाने वालों की रजिस्ट्री को रद किया जा सकेगा। दंगा पीड़ितों के बहाने राज्य में रजिस्ट्री को रद करने का कानून बनाना सही तो है, लेकिन इससे संदेश यही जाएगा कि सत्तारूढ़ दल ने सिर्फ एक कौम के फायदे के लिए यह निर्णय लिया। जाहिर है, दूसरी कौम का कोप वोट के रूप में नजर आ सकता है।
(स्थानीय संपादकीय बिहार)

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