जल्द ही बिहार के किसी कोर्स (खासकर शिक्षक प्रशिक्षण) में एक नया विषय जुड़ सकता है- 'बिहार के शिक्षक संघ और उनकी राजनीति'

सम्मानित शिक्षक साथियों,
सादर अभिनंदन|
जीत की आशा त्याग कर अपने भाग्य को समय के भरोसे छोड़ देना ही कुछ की नियति होती है| हमारे-आपके साथ भी शायद कुछ ऐसा ही है| हम शिक्षकों के इतने रहनुमा और उन सभी के इतने दरबारी हैं कि ऐसा लगता है, मानो बहुत जल्द ही बिहार के किसी कोर्स (खासकर शिक्षक प्रशिक्षण) में एक नया विषय जुड़ सकता है- 'बिहार के शिक्षक संघ और उनकी राजनीति'|

मित्रों, इन नेताओं की और चाटुकारों की हालत ये है कि ये जो फरमान जारी करते हैं, वही मानना हमारे लिए जरूरी होता है, वर्ना ये कोसने और गाली देने से नहीं चूकते|
जब कुछ कलमकार शिक्षक समस्या पर कुछ लिखते थे, तो इन दरबारियों ने ललकारना शुरू कर दिया कि जो लोग इतना लंबा चौड़ा लिखते हैं, कभी जमीनी स्तर पर कुछ करते दिखाएँ|
कलमकारों को एक रास्ता मिल गया..
22 जनवरी 2017 को स्वतंत्र विचार वाले लगभग 60-65 शिक्षक, जो कभी पहले मिले नहीं थे, अनेक जिलों और अनेक संघों से थे, एक साथ आए...
नाम पड़ा, 'शिक्षक चौपाल'...
यह कोई संघ नहीं, बल्कि आम शिक्षकों की आवाज़ का एक मंच बना..
इसमें स्पष्ट रूप से यह विचार आया कि समान उद्देश्य के लिए सभी संघों को एकसाथ समान रणनीति पर संघर्ष करना जरूरी तो है, लेकिन अपनी दुकानदारी का लालच तो सभी को है, इसलिए निर्णय हुआ कि एक मंच पर ही सबको अपने- अपने बैनर समेत आने का आग्रह किया जाए..
शायद, इसी भावना के साथ छोटे-छोटे कई संघों ने मिलकर महासंघ बनाया...
दस-दस लोगों की टीम बनी,
जिन्हे चार प्रमुख संघों के अध्यक्षों से बिहार के किसी जगह पर अध्यक्षों के दिए समय पर मिलना था|
लेकिन, नेताओं को आम शिक्षकों से मिलने का समय कहाँ?
ब्रजवासीजी ने फोन पर पूर्ण सहयोग का वचन देकर पटना से वापसी के बाद समय की बात की|
पाठकजी का फोन रिसीव नहीं होता था..
पूरनजी का कहना था कि अपनी टीम से पूछकर बताएँगे...
पप्पूजी की ओर से काफी प्रयास के बाद बताया गया कि पटना में मीटिंग करने के बाद ही वे समय दे सकते हैं,
लेकिन, पटना पहुँचते ही उन्होंने आमरण अनशन की तिथि घोषित कर दी...
मतलब, आम शिक्षको की बात सुनने की किसी को जरूरत नहीं..
पूरन जी ने भी अपना कार्यक्रम घोषित कर दिया...
पाठकजी ने भी अपना कार्यक्रम तय कर लिया... लेकिन तय करते समय ही शिक्षक चौपाल को उनसे मिलने का सौभाग्य(?) प्राप्त भी हुआ, उन्होंने एकता के महत्व को स्वीकारते हुए सहयोग का वचन भी दिया...
इसके बाद....
पप्पूजी का का आमरण अनशन चार घंटे में सेल्फी सेशन के बाद खत्म हुआ.
शिक्षक चौपाल ने सभी संघों को पत्र भी लिखा,....
जवाब आया ब्रजवासीजी का केवल, कि वे शिक्षक एकता के लिए किसी मंच पर नंगे पांव आने के लिए तैयार हैं...
पूरनजी शिक्षकों को पिटवाकर खुद स्ट्रेचर पर लेट गए...
शिक्षकों की पिटाई और आम शिक्षकों के दवाब के कारण महासंघ और ब्रजवासीजी उनके मंच पर गए..
अहंकार से वशीभूत पूरनजी ने न केवल अपने संभावित सफलता का दावा किया, बल्कि अपने मंच पर आए अन्य नेताओं की उपेक्षा कर अपमानित भी किया...
फिर शुरू हुआ, टमाटर कांड...
पुल के नीचे खड़े होकर आम शिक्षकों को पिटवाया गया...
पिटवाने वाले ने आम शिक्षकों को अनशन पर बिठाकर उनके फोटो से खूब राजनीति चमकायी..
उन्होंने 2015 तक का शर्त रखकर संघों की बैठक भी बुलायी,... राजूजी को पूरनजी के मंच तक भी ले जाया गया....
किसी ने बैठक में जाना जरूरी नहीं समझा...
शिक्षामंत्री से वार्ता नहीं करने पर अड़े पूरनजी सेल्फी लेकर वापस हो गए..
आम शिक्षकों की बात को अनसुनी करते पप्पूजी ने 17 अप्रैल से हड़ताल घोषित कर दी, जबकि आम शिक्षक 1अप्रैल से हड़ताल का आग्रह करता रहा.. अन्य सभी ने इस आग्रह को अनसुना कर दिया|
इधर अनशनकारियों की हालत बिगड़ती जा रही थी, उधर उनके फोटों के माध्यम से आम शिक्षकों को कोसा जा रहा था..
अंत में, एक और फोटो सेशन और पाठकजी भी वापस....
ब्रजवासीजी निकल पड़े, संगठन विस्तार के लिए...
इधर कुछ संघों ने 1-8 का मूल्यांकन बहिष्कार किया, उसका कितना महत्व है, शायद सभी जानते हैं...
हाँ, मैट्रिक, इंटर के मूल्यांकन बहिष्कार ने अपना असर जरूर दिखाया, लगभग सभी संघों ने समर्थन किया....
दवाब बढ़ रहा था...
ऐन मौके पर (ठे) केदारजी ने शिक्षकों को बेचकर कीमत वसूली...
और शिक्षक फिर सड़क पर....
पप्पूजी का समय आ गया,...
उन्होंने बैठक भी बुलायी...
पाठकजी के प्रतिनिधि भी पहुँचे... ब्रजवासी जी और पूरनजी गायब...
दुबारा बैठक हुई, पाठकजी भी अंतर्धान...
हड़ताल शुरू हुई...
आम शिक्षकों ने फिर सबसे एकजुटता की अपील की..
कोई असर नहीं...
अब दावे, प्रतिदावे चल रहे हैं..
कोई सफल, तो कोई असफल बता रहा है... कोई निंदा, तो कोई स्तुति..
अपने-अपने खेवनहार का चारणगान दरबारीगण भक्तिभाव से कर रहे हैं...
एकल हड़ताल का हश्र सबको पता है..
नेताओं के बीच पट्टीदारी झंझट चल रहा है....
वह मेरे बेटे के मुंडन में नहीं आया, तो हम भी उसके बच्चे के जनेऊ में नहीं जाएँगे...
ऐसे में,
हम खुद सोंच सकते हैं कि हमारा क्या होगा...?
तो चलिए,
13000-19000 पर संतोष कीजिए..
लेकिन, अब कोई दरबारी पटना नहीं आने के लिए, फेसबुक पर लिखने के लिए को से तो उसे जवाब जरूर दीजिए...
चंदा, सेमिनार, सम्मान समारोह को हतोत्साहित कर सभी संघों का बहिष्कार कीजिए...
(किसी को बुरा लगा हो तो)
क्षमाप्रार्थी....
:- ओम @ आम शिक्षक चौपाल..

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