व्यंग्य // सरकारी स्कूल के लिये सही नीति बना कर हमलोगों को अपने बाल-बच्चे का भविष्य खराब नही करना है....????

बनारसी काका किशन के साईकिल दुकान पर अपने साईकिल का पंचर  बनवा रहे थे। जेठ की दोपहर में साईकिल का टायर अगर पुराना हो तो पंचर होना आम बात है।
किशन का दुकान ऐसे समय में लोगों के बहुत काम आता था। गाँव में लगभग पाँच किलोमीटर के दायरे में कोई दूसरा दुकान नही होने के कारण किशन पंचर  बनाने का लगभग दोगुना कीमत वसूलता था। लोगों के मजबूरी का फायदा उठाने के बावजूद शायद ही कोई किशन से बहस करता हो क्योंकि सुदूर देहात में पड़ने वाले उस गाँव में समय पर पंचर  बनाने वाला मिस्त्री मिल जाना ही बहुत बड़ी बात थी, पंचर  बनाने के कीमत से किसी को कोई खास एतराज नही था। तभी गाँव के प्राथमिक विद्द्यालय के प्रधानाध्यापक निखिल बाबू अपने एक सहायक शिक्षक के साथ अपनी दहेज वाली पुरानी मोटर-साईकिल को सरपट  दौड़ाते हुए वहाँ से गुजर रहे थे। बनारसी काका ने निखिल बाबू को देखते ही आवाज लगाई, ए मास्टर साहब रुकिये थोड़ा आराम कर लीजिये।
निखिल बाबू ने जोर से ब्रेक लगा कर गाड़ी रोक दी।
निखिल बाबू के रुकते ही बनारसी बाबू बोले "क्या हो मास्टर साहब, ससुराल के गाड़ी का असली मजा तो आप ही उठा रहे हैं!!!
किशन ने भी तंज़ कसा "अरे काका कभी मास्टर साहब मोटर-साईकिल को आराम नही देते हैं।"
निखिल बाबू का पारा बिल्कुल चढ़ गया। बोले अरे किशन तुमको मेरे मोटर-साईकिल का परेशानी बुझाता है और मेरा परेशानी किसी को दिखाई ही नही पड़ता है।"
किशन मुस्कुराते हुए "क्या सर कितना बढ़िया तो स्कूल में कुर्सी तोड़ते हैं!!!!!!"
मास्टर साहब दुखी हो कर बोले "अभी छात्रवृति वाला रिपोर्ट जमा करने जा रहे हैं, फिर बच्चा लोगों का अंक-पत्रक बनाना है, इसी बीच आधार कार्ड बनवाने के लिये केंप भी लगेगा, mdm रिपोर्ट भी परसों तक सी.आर.सी. में जमा करना है। बाल पंजी का काम अधूरा है। उसको भी इसी माह फाइनल करना है।अब एगो नया टेंशन कपार पर अलगे सरकार पटक दिया है।"
किशन हैरानी से एतना टेंशन के बाद फिर नया टेंशन ????
निखिल बाबू सिर खुजलाते हुए "अरे किशन थोड़ा देखो तो मेरा मोटर-साईकिल इतना धुआँ काहे दे रहा है????"
किशन झल्लाते हुए "क्या सर????अरे भाई, हम साईकिल का मिस्त्री हैं, मोटर-साईकिल का नही!!! मेरे पास न  तो औजार है, और नही मोटर-साईकिल के  बारे में कोई जानकारी है??? आप भी रह-रह कर मजाक करने लगते हैं!!"
अभी किशन ने अपनी बात ख़त्म भी नही की थी कि निखिल बाबू बोल पड़े "अच्छा धुआँ छोड़ दो, थोड़ा गाड़ी का ब्रेक ही ठीक कर दो"
किशन "अरे मास्टर साहब हम मोटर-साईकिल का मिस्त्री नही हैं!!!!!"
निखिल बाबू किशन की बात को अनसुना करते हुए "अरे मरदे, कम से कम मोटर-साईकिल का  चैन ही टाइट कर दो"
किशन अब माथा पीटने लगा!!!!!
लेकिन किशन बाबू कहाँ रुकने वाले थे "बोले छोड़ो बनारसी बाबू के साईकिल का पंचर  बना कर, मेरे मोटर-साईकिल का भी पंचर  बना देना!!!!"
अब बनारसी काका गुस्से से झुंझलाते हुए "आप निखिल बाबू पगला गये हैं क्या ??? जब किशन बोल रहा है कि उसके पास औजार नही है तब आप काहे उसको परेशान कर रहे हैं!!!"
तभी निखिल बाबू ने डिक्की खोल कर औजार का किट निकालते हुए कहा  "बनारसी बाबू अब आप किशन को बोलिये जल्दी से मेरा मोटर-साईकिल ठीक कर देगा!!!!"
बनारसी बाबू भी माथा ठोक लिये बोले "अरे भाई आपका दिमाग काम नही करता है क्या??इसको मोटर-साईकिल के बारे में जब जानकारी नही है तो आप अपना मोटर-साइकिल का काहे सत्यानाश करवाना चाहते हैं????
अब निखिल बाबू का भी गुस्सा भी सातवें आसमान पर था, बोले पगला तो बिहार सरकार गया है, अरे प्राइमरी का मास्टर को इण्टर का कॉपी चेक करने बोलता है!!!! बताईये जब केंद्रीय विद्द्यालय के इण्टर का मास्टर सिलेबस का पूर्ण जानकारी नही होने के कारण कॉपी चेक करने के लिये तैयार नही हुआ तो प्राइमरी के मास्टर से इण्टर का कॉपी चेक कराने का क्या मतलब है???? आपको मेरे मोटर-साईकिल का फिक्र है लेकिन लाखों बच्चे के भविष्य के साथ सरकार खिलवाड़ कर रही है, इस बात का चिंता किसी को क्यों नही है??? अरे जब मास्टर के कमी के कारण प्राइमरी स्कूल का अपना काम टाईम पर नही हो पा रहा है फिर ई नया बखेरा से गरीब-बच्चालोग का पढ़ाई का जो नुकसान होगा, उसका पूर्ति कौन करेगा??? और अगर बिहार में ई सब हो सकता है तो  साईकिल मिस्त्री कार और ट्रेक्टर ठीक क्यों नही कर सकता है???
निखिल बाबू की बात सुनकर बनारसी काका और किशन  के तो होश उड़ गये लेकिन तभी मुखिया जी ने आते ही निखिल बाबू की खिंचाई शुरू कर दी, बोले "का हो मास्टर साहब जिस थाली में आपलोग खाते हैं, उसी में छेद करते हैं....! अरे सरकार का नमक खा कर सरकारी काम में अरंगा लगाना आपलोग को बिल्कुल भी शोभा नही देता है!!!!
निखिल बाबू को मुखियाजी की बात बिल्कुल तीर सा लगा। तिलमिलाते हुए बोले "ए मुखिया जी हमलोग तो सिर्फ थाली में छेद करते हैं, ऊ भी ऐसा थाली जिसमें कभी भरपेट भोजन नही परोसा जाता है, और आधा पेट भोजन  भी कभी भी  समय पर नही मिलता है लेकिन यहाँ तो ऐसा-ऐसा लोग है जो थाली ही गायब कर देता है, और सबसे बड़ी बात बिना थाली के ही चारा, यूरिया, अलकतरा, गरीब का आनाज, मिट्टी और ना जाने क्या-क्या खा जाता है????
मुखिया जी को निखिल बाबू से इस घुमावदार जवाब की उम्मीद नही थी, बोले देखिए निखिल बाबू मास्टर हैं मास्टर बन कर रहिये और जो बोलना है स्पष्ट बोलिये!!!"
निखिल बाबू भी पूरे मूड में थे, गरजकर बोले  "इस देश में आजकल चोर-लोग बहुत जोर से बोलने लगा है। हर सरकारी योजना में खुलेआम बंदरबांट करने वाला लोग ही  लोगों को समाजसेवा और राष्ट्रहित का पाठ पढ़ा रहा है, और पढ़ने पढ़ाने वाले लोगों पर चोरों की पहरेदारी बिठा  दी गयी है!!!!"
मुखिया जी अब आपे से बाहर थे, बोले "क्या रे किशन हम चोर हैं ??? ई दो टका का मास्टर हमको चोर बोलता है!!!!"
निखिल बाबू ने फिर एक बार दहाड़ लगाई, बोले गूंगे लोगों को गवाही में खड़ा नही कीजिये मुखिया जी, अरे इस किशन से आप चार वर्ष पहले बीस हजार रुपया इन्द्रा आवास के नाम पर लिये थे, क्या किशन का इन्द्रा आवास बन गया। अरे किशन क्या, आप गाँव में कौन ऐसा आदमी है जिसको आप कोई ना कोई मुंगेरी लाल का हसीन सपना दिखा कर नही लूटे हैं, पंचायत के प्रत्येक काम में आपका और उस  काम से जुड़े हर  सरकारी कर्मचारी का कमीशन बाँधा हुआ है और आप सरकार के तुगलकी  फ़रमान को शिक्षकगण द्वारा नही मानने पर पहले नसीहत देते हैं और फिर डराते हैं!!!!!
बनारसी काका ने हाथापाई नही हो, ईसलिए स्थिति को सम्भालने के ख्याल से बोले "क्या निखिल बाबू!!! मानते हैं आपलोगों के साथ सरकार गलत कर रही है, लेकिन पब्लिक का क्या गलती है???"
निखिल बाबू ने भी बनारसी काका को समझाया कि ऐसा मत बोलिये बनारसी बाबू, जो पब्लिक बच्चे को छात्रवृत्ति नही मिलने पर मास्टर से हाथापाई के लिये तैयार हो जाती है, क्या उसे ये मामूली बात समझ में नही आ रहा कि रिजल्ट में देरी या अयोग्य लोगों से मैट्रिक-इण्टर का कॉपी जाँच कराना दोनों ही बच्चों के भविष्य के साथ घटिया मजाक है।
मुखिया ने टोका "अरे भाई, ई तो सरकार का नीति है!!! इसमें कोई क्या कर सकता है???
निखिल बाबू मुस्कुराते हुए बोले कि मुखिया जी यहाँ गाँव में प्राइमरी स्कूल के शिक्षा-समिति का सचिव आपकी बहु है, लेकिन आपका पोता सब दिन बाहर कॉन्वेंट में पढ़ता है, उसी प्रकार इस देश में सरकारी शिक्षा-नीति बनाने वाले किसी भी नेता या अफसर का बच्चा सरकारी स्कूल में नही पढ़ता है, और यही इस देश के गरीब बच्चों का दुर्भाग्य है। सरकार गरीब बच्चों और उसके अभिभावक को सिर्फ खैरात बाँटने वाली योजना से खुश रख कर मूर्ख बनाने का प्रयास कर रही है। सरकारी शिक्षकों को ना तो उसका कानूनी हक "समान काम का समान वेतन" दे रही है और ना ही सरकार शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त कर रही है। आखिर ऐसे में गरीब बच्चों को कैसे मिलेगा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा?????
बनारसी बाबू के साईकिल का पंचर  बन चुका था, उन्होंने जाते-जाते बोला क्या मास्टर साहब आप इतना भी नही समझते हैं गरीब का बच्चा अगर सही ढंग से शिक्षित हो जायेगा तो इनलोगों के बच्चों का राजनीतिक करियर खराब नही हो जायेगा।

-  बिपिन कुमार चौधरी 

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