मानव श्रृंखला और शिक्षकों की भूमिका बनाम समान काम समान वेतन

एक अच्छी खबर यह है की शराबबंदी के नाम पर बिहार के लाखों शिक्षकों और बच्चो को दस दिन से जबरन अपनी राजनीतिक नौटंकी में मशगुल करने के नीतीश सरकार के तुगलकी रवैये पर पटना हायकोर्ट ने सरकार से जवाबतलब की है !
कोर्ट ने सरकार से स्पष्ट रूप से यह पूछा है की राष्ट्रीय उच्च पथ पर पांच घंटे तक मजमा लगाने और बच्चो व श्रृंखला में शामिल लोगों के इस्तेमाल से शराबबंदी का क्या तुक है !
जागरूकता फैलाने के लिए बहुतेरे तरीके हैं सरकार के पास अपना सुचना एवं जनसंपर्क विभाग है और भी कई तरह की रचनात्मक गतिविधियाँ है ! राज्यव्यापी राज्यस्तरीय मानव श्रृंखला के सनकी आयोजन का क्या मतलब है ?
क्या सबसे बड़े मानव श्रृंखला का रिकार्ड बना लेने के बाद बिहार में शराबबंदी सफल हो जायेगी ? जबकि खुद सरकार के पुलिस प्रशासन से लेकर आबकारी विभाग तक के अधिकारी शराबबंदी के बाबजूद अन्य जगहों से शराब की तस्करी में खुलेआम लिप्त हैं ?
क्या सबसे बड़े मानव श्रृंखला का रिकार्ड बन जाने के बाद बिहार में बदस्तूर कायम हत्या लूट बलात्कार दमन और भ्रष्टाचार जैसे जनता के रोजमर्रे से जुड़े जरुरी सवाल हल हो जायेंगे ?
क्या सबसे बड़े मानव श्रृंखला का रिकार्ड बना लेने के बाद बिहार के स्कूलों के हालत सुधर जायेंगे !
शिक्षकों को बन्धुआगिरी से मुक्ति मिल जायेगी ?
क्या सबसे बड़े मानव श्रृंखला का रिकार्ड बना लेने के बाद आम जनजीवन में नाटकीय बदलाव आ जाएगा , और लोग शराब से दूर हो जायेंगे ?
यह सवाल हम आप तमाम शिक्षक-शिक्षिकाओं के दिमाग में भी गूंज रहा है जो एक सप्ताह से न चाहते हुए शिक्षा का अधिकार कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए बच्चों को श्रृंखला की रिहर्लसल कराने में तन्मयता से जुटे हैं ! यह सवाल भी हमारे जेहन में गूंजती है कि न्यायालयों के बार बार मना करने के वाबजूद सरकार हम शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य क्यों कराती है ! हर बार सामाजिक सांस्कृतिक नैतिक दायित्व का आवरण लेकर शिक्षकों को कभी बीपीएल गणना तो कभी पशु गणना, कभी शौचालय गणना तो कभी राशन कार्ड वितरण , कभी आधार कार्ड पंजीकरण तो कभी बेंक खाता खुलवाने, कर्मचारियों की कमी का रोना रोकर कभी अन्य विभागों में प्रतिनियुक्ति तो कभी गैस सिलेंडर बांटने तक जैसे काम में धडल्ले से इस्तेमाल करती है ! मिड डे मील , बाल पंजी संधारण , पोषक दवाइयां बांटने , जैसे काम तो खैर हम करते ही रहते हैं ! शिक्षक-शिक्षिकाओं का मूल कार्य विद्यालय में बच्चो को पढाना है अलावे इसके अपने पोषक क्षेत्र के बच्चो की अद्यतन जानकारी रखनी है ! अलावे इसके सरकार द्वारा करवाए जाने गैर शैक्षणिक कार्यों के प्रति न्यायालयों ने भी बार बार सरकार को हिदायत डी है की आपदा, जनगणना ,और निर्वाचन कार्य के अलावे किसी भी कार्य में सरकार शिक्षकों को न उलझाए ! बाबजूद इसके सरकार का रुख बदस्तूर कायम है ! आज जब शिक्षकों के बड़े हिस्से से सरकार के मानव श्रृंखला कार्यक्रम और उसमे शिक्षकों को जबरन भागीदार बनाने के खिलाफ आक्रोश का स्वर है तो वह अप्रत्याशित नही है ! शिक्षक लगातार गैर शैक्षणिक कार्यों में खुद को लगाने का पुरजोर विरोध करते रहे हैं ! आज फिर सामाजिक दायित्व के मुहावरे में शिक्षकों के इस बड़े सवाल को उडाये जाने की साजिशें चल रहीं हैं ! दुर्भाग्यजनक यह है कि इसमें शिक्षकों के कुछ नेता भी बेशर्मी के साथ शामिल हैं ! जिन्हें सरकार से इस मसले पर बात कर शिक्षकों और बच्चों को इस तरह के कार्यक्रम में झोंकने से रोकना था वो न सिर्फ चुप्पी साधे हुए हैं बल्कि कई जगह पर – मान न मान मै तेरा मेहमान – टाइप आगे बढ़कर मोमबत्ती जुलुस निकल रहें हैं ! शिक्षकों को यह कहकर दिग्भ्रमित कर रहें हैं की सरकार खुश रहेगी तो हमे समान काम का समान वेतन मिलने का अच्छा चांस रहेगा ! यह कहकर खुश हो रहे कि श्रृंखला में भाग लेंगे तो जनता हम शिक्षकों पर खुश रहेगी , हमे अपने मसले पर लड़ने पर जनसमर्थन मिलेगा ! यह कहकर खुश हो रहें कि यह ऐतेहासिक कार्य है ! सही बात है कि शराबबंदी एक ऐतेहासिक कदम है हम सब बिहार के शिक्षक-शिक्षिकाऐ शराबबंदी की हिमायती हैं ! बिहार के सांस्कृतिक बदलाव की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है पर इस नाम पर मानव् श्रृंखला के आयोजन और उसमे टीचर्स और बच्चो के इस्तेमाल का हम कत्तई समर्थन नही कर सकते हैं ! क्योंकि हम जानते हंा की बिहार में शराब बिकनी बंद है और तब भी शराब है यहाँ तो वो पुलिस प्रशासन व प्रशासन को चाक चौबंद एवं भ्रष्टाचारमुक्त बनाने ,शराब तस्करी रोकने , के जरिये ही सफल होगी ! शराबबंदी अभियान जागरूकता से आगे बढ़ विधि व्यवस्था का प्रमुख सवाल है आज के डेट में ! परन्तु सरकार इस सवाल को हल करने के बजाय थोथी -शो पीस व सनकी आयोजनों के जरिये अपनी पीठ थपथपाना चाहती है ! शराबबंदी के सच्चे हिमायती होने के नाते हम टीचर्स इस सवाल को उठाएंगे ही ! अलावे इसके गुड गवर्नेंस के सारे पहलु , न्याय के साथ विकास के सारे सवाल हमारे सामने हैं ! हमे याद रखनी चाहिए की बिहार के नियोजित टीचर्स ने आजतक जो कुछ भी हासिल किया है अपने संघर्षों के बदौलत हासिल किया है ! आन्दोलन धरना प्रदर्शन लाठी चार्ज, फर्जी मुक़दमे, दमन, राज्यव्यापी हड़ताल शिक्षक संघर्षों के एक लम्बी श्रृंखला रही है डेढ़ दशक से ! सरकार ने खुशनामा में या तोहफे में कुछ नही दिया है हर बार शिक्षकों ने पहले से ज्यादे आवेग और तेवर में सरकार से अपनी लड़ाई लड़ी और आगे बढे है ! लिहाजा सरकार को खुश करके सामान वेतन हासिल करने जैसा वाहियात तर्क शिक्षक संघर्षों को कुंठित ही कर सकता है जीत के रास्ते आगे नही बढ़ा सकता ! हमे यह भी याद रखनी चाहिए की जनता का समर्थन हम विद्यालयों में अपनी ओजस्वी व मेहनती भूमिका का प्रदर्शन हासिल करते हुए ही हासिल कर सकते हैं ! विद्यालय में पठन-पाठन का बेहतर माहौल और सरकारी विद्यालयों की शैक्षणिक गुणवत्ता के सुधार में हमारे योगदान ही हमे अपने मुद्दें पर व्यापक जनसमर्थन दे सकतें हैं ! सरकारी नौटंकियों के मुखर हिस्सेदार बन भले हम शिक्षक के समाज के दशा व दिशा देने वाली भूमिका को त्याग दें पर उस जनता का तो कदापि समर्थन नही मिलनेवाला जिसके बच्चों को हम सरकारी विद्यालयों में पढ़ाते हैं ! यह भी सच है उस तबके को अपने पेट भात के जुगाड़ में इतना वक्त नही कि इस तरह के आयोजनों और उसमे शिक्षकों की भूमिका पर कोई राय बनाएं ! आम मध्यवर्ग जिनके घर के सदस्य सरकारी स्कूलों के शिक्षक नही हैं उनकी धरना पहले से नकारात्मक है हम शिक्षकों के प्रति ! जिसे भी हम विद्यालयों में अपने बेहतर योगदान के जरिये ही बदलने की कोशिश कर सकते हैं !
हम टीचर्स को विभाग सप्ताह भर से श्रृंखला के तैयारी में झोंके हुए है ! कभी बाइक जुलुस कभी सायकिल जुलुस कभी प्रभात फेरी कभी मशाल जुलुस , पर हमारे समान काम समान वेतन के सवाल पर सरकार ने कुम्भ्करनी चुप्पी साध रखी है ! माननीय सर्वोच्च न्यायलय के समान काम समान वेतन पर स्पष्ट फैसले के वाबजूद सरकार कोई दिलचस्पी नही ले रही है ! पटना हायकोर्ट में समान काम समान वेतन को लेकर दो तीन मुकदमे प्रक्रियाधीन हैं ! सड़क पर एक बार फिर से शिक्षकों के उतर संघर्ष का जज्बा दिख रहा है ! टीचर्स में लड़ाई जितने की उम्मीद फिर से परवान चढ़ रही है इस हालात में मानव श्रृंखला जैसे मंच जिसमे शिक्षकों की भागीदारी होनेवाली है ! शिक्षक आन्दोलन के जमीनी सिपाहियों का यह कर्तव्य बनता है की इस मंच पर भी अपने सवाल को बुलंदी के साथ उठाने का साहस करें ! यह ख़ुशी और गर्व की बात है कि TSUNSS ने इसको लेकर एक केम्पेन चलाया है और शिक्षकों के आत्मबल को जगाने की जोखिम उठायी है और जिसका बड़े पैमाने पर शिक्षक समाज में स्वागत भी हो रहा है ! आज के अखबार में उर्जा देनेवाली खबर पढ़ी की बिहार राज्य प्रारंभिक शिक्षक संगठन (प्रदीप पप्पू जी) जैसे कद्दावर नियोजित शिक्षक संगठन ने भी शिक्षकों से मानव श्रृंखला में काली पट्टी उतरने का आह्वान किया है ! निश्चित तौर पर जिस स्तर पर भी सही पर हमे अपने सवाल उठाने और बिहार के तमाम शिक्षक साथियों को एक्ताबद्ध करने के के हर मोर्चे का निर्मम इस्तेमाल करना ही होगा ! नितीश सरकार श्रृंखला के जरिये अपने इमेज पोलिश की तरफ बढ़ रही है तो उसमे शामिल होने के बाबजूद हम शिक्षकों को समान काम समान वेतन का अपना राग अलापना ही होगा ! याद रखिये सरकार भीख में अधिकार कभी नही देती है इतिहास गवाह है हर बार लोगों ने अपने स्तर से लड़कर ही अपना वाजिब अधिकार हासिल किया है ! हम लड़ेंगे हम जीतेंगे !
तारा मांझी
अनट्रेंड बेसिक ग्रेड शिक्षिका

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