शिक्षकों ने निभायी यारी,नीतीशजी अब आप दिखायें वफ़ादारी...

लिम्का बुक में दर्ज हुई संकल्पों की श्रृंखला के ऐतिहासिक तस्वीरों के बीच मुझे सोवियत संघ के तानाशाह स्टैलिन से जुड़ी एक घटना रह रह कर कुरेद रही है, सामाजिक मुहिम की सेल्फ़ियों को साझा करने की होड़ में जुटे बहुसंख्यक शिक्षक साथियों से क्षमा याचना सहित–

समझें और जरूर पढ़ें ..👇👇
सत्य घटना...💀💀
सोवियत संघ का तानाशाह स्टैलिन एक दिन अपनी पार्टी मीटिंग में एक जिन्दा मुर्गा लेके पहुंचा!भरी मीटिंग में वह उस मुर्गे के पंख को खींच खींच कर फेंकने लगा,मुर्गा तड़पने लगा! वहाँ उपस्थित सभी लोग देखते रहे,स्टालिन ने बिना दया खाये मुर्गे का सारा पंख नोच डाला, फिर जमीन पर फेंक दिया ! अब उसने अपनी जेब से थोड़े दाने निकाल मुर्गे के आगे डाल दिया! मुर्गा दाने खाने लगा और स्टालिन के पैर के पास आकर बैठ गया! स्टालिन ने और दाने डाले तो मुर्गा वह भी खा गया और स्टालिन के पीछे पीछे घूमने लगा! स्टालिन ने अपनी पार्टी के नेताओं से कहा, जनता इस मुर्गे की तरह होती है! आपको उसे बेसहारा और बेबस करना होगा! आपको उस पर अत्याचार करना होगा!आपको उनकी जरूरतों के लिए तड़पाना होगा! अगर आप ऐसा करोगे तो जब थोड़ा टुकड़े फेंकोगे तो वह जीवन भर आपके गुलाम रहेंगे और आपको अपना हीरो मानेंगे!
वह यह भूल जाएंगे कि उनकी बदतर हालत करने वाले आप ही थे!
जी हां,कभी शराब के बेइंतहा ठेकों के जरिए बिहार के गाँव-गाँव में शराब की नदियां बहा देने का ख़िताब अपने नाम करने वाले नीतीश के शराबबंदी का निश्चय को अब तक के सबसे लम्बे मानव श्रृंखला के जरिए वैश्विक धरातल पर उतरता देख देश और दुनिया भर में फैले असंख्य बिहारवासियों को चाहे जितना गर्व भले ही हो,मुझे तो ये राजनीतिक बहरूपियेपन की हद से अलग कुछ और महसूस नहीं होता।
मेरी समझ में नशा चाहे शराब,खैनी,बीड़ी,गुटका,गांजा अथवा अफ़ीम का हो या फिर शोहरत की बुलंदियों पर पहुँचने का......नशेड़ियों से हुए सामाजिक नुकसान को कोई झुठला नहीं सकता।
बहरहाल,विश्व के मानचित्र पर खुद को एक मिशाल के तौर पर पेश करने के नशे की इस दिलकश मुहिम से जुड़ी सेल्फ़ियों को साझा करने की होड़ के बीच जनता में हीरो की छवि अख्तियार कर चुके नीतीश को सिर्फ इतना अहसास दिलाना चाहूँगा कि आप बेशक प्रसिद्धि का परचम लहराइये, पर आपके निश्चय को धरातल पर उतारकर आपकी ग्लोबल इमेज़ बनाने के वास्ते अपने छोटे छोटे स्कूली बच्चों के साथ शिक्षकों ने विश्वकर्मा की जो भूमिका निभायी,उसके योगदान को आप चाहकर भी झुठला नहीं सकते। आपकी हर बेरुखी-बेवफाई के बावजूद शिक्षकों ने अपने पुरे दम खम के साथ जिस प्रकार बिहार की चौहद्दी से बाहर विश्व पटल पर आपको सम्मानित पहचान दिलायी,आपके अरमानों को चार चाँद लगाया,तो अब बारी आपकी है–इन शिक्षकों का छीना गया सम्मान इन्हें वापस लौटाकर आप भी अपना फ़र्ज निभायें।
अंत में..सिर्फ इतना ही....
"उसकी बेवफाई पे भी फ़िदा होती है जान अपनी...
खुदा जाने अगर उसमें वफ़ा होती तो क्या होता...!!"

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