वेतन वृद्धि व प्रोन्नति की चिंता, शैक्षणिक कार्य में नहीं दिखती गंभीरता

भागलपुर । यह हकीकत है कि विद्यालयों में संसाधनों कमी है। स्कूलों में जहां बच्चे हैं वहां शिक्षकों की कमी है और जिन विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक हैं वहां बच्चे कम हैं। बावजूद इसके शिक्षक भी मनोयोग से शैक्षणिक कार्य को अंजाम नहीं दे पा रहे हैं। उन्हें अपने सेवा काल में सिर्फ वेतन वृद्धि व प्रोन्नति की चिंता रहती है।
इसका उनके पास पाई-पाई का हिसाब होता है, पर सरकार ने उन्हें जो जिम्मेदारी दी है। उसका उनके पास कोई लेखा-जोखा नहीं है। जिले में शायद ही कोई शिक्षक होंगे, जिनके पास रोज के शैक्षणिक कार्य की पाठ योजना होगी। प्रतिदिन उन्होंने ने क्या पढ़ाया उसका पाठ टीका होगा। इस दिशा में उनके कार्यो का मूल्यांकन करने के लिए जिला शिक्षा विभाग द्वारा कोई कमेटी भी गठित नहीं की गई है। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि नेता जो शिक्षकों को हक दिलाने के लिए हमेशा लड़ते हैं पर वे भी शिक्षकों को कभी क‌र्त्तव्य का बोध नहीं कराते हैं। अगर कुछ ऐसा होता तो जिले की गुणवत्ता शिक्षा का ग्राफ नीचे नहीं गिरता। स्कूली बच्चों का भी आरोप है कि नियत समय पर शिक्षक स्कूल नहीं आते हैं। वे छात्र-छात्राओं को फटकार लगाते हुए ये भी कहते है कि पढ़ना है तो पढ़ो नहीं तो घर जाओ, मेरा क्या वेतन रोक दोगे।
ऐसे में जिले की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का ग्राफ गिरते जा रहा है। दो तीन वर्ष पूर्व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में जिले का एक से पांच नंबर तक की रैंकिंग में था पर अब इसका रैंकिंग 10 तक में भी नाम नहीं है।
कोट..
पाठ टीका की नियमित मोनेटरिंग करने की जिम्मेदारी स्कूल के प्रधानाधपकों की है। इसके अलावा समय-समय पर जांच का दायित्व डीपीओ एवं बीईओ को दिया गया है। इस कार्य में लापरवाई बरतने वालों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

फूल बाबू चौधरी, डीईओ, भागलपुर।
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