समान कार्य समान वेतन के कानूनी पक्ष पर संक्षिप्त चर्चा

समान कार्य समान वेतन के कानूनी पक्ष पर संक्षिप्त चर्चा:- इसे एक बार जरूर पढ़ें।हम गुरुजनों को कानूनी जानकारी जरूर रहनी चाहिए। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसला के आलोक में "समान कार्य समान वेतन" से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु निम्न हैं:-


👉जस्टिस जे.एस. खेहड़ और न्यायमूर्ति एसए बोबडे की पीठ ने कहा कि ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ की परिकल्पना संविधान के विभिन्न प्रावधानों को परीक्षण करने के बाद आई है। अगर कोई कर्मचारी दूसरे कर्मचारियों के समान काम या जिम्मेदारी निभाता है, तो उसे, दूसरे कर्मचारियों से कम मेहनताना नहीं दिया जा सकता।
👉सर्वोच्च न्यायालय पंजाब के अस्थाई कर्मचारियों से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें इन कर्मचारियों ने स्थाई कर्मचारियों के बराबर वेतन पाने के लिए अदालत का रूख किया था। इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट नियमित कर्मचारियों के बराबर वेतन दिए जाने की उनकी याचिका ठुकरा चुका था। हाईकोर्ट से निराशा मिलने के बाद इन अस्थायी कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गुहार लगाई। बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट का आदेश पलट दिया और अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा कि देश में समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धांत पर जरूर अमल होना चाहिए।
👉जबकि ‘ठेका मजदूर (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम- 1970’ की धारा 25 (5) (अ) के अनुसार भी समान काम का समान वेतन का प्रावधान है।
👉जबकि समान काम के लिए समान वेतन की व्यवसथा हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 में ही निहित है।
👉कमोबेश यही बात संविधान के अनुच्देद 39 (घ) में कही गई है।
👉बिहार में शिक्षक/आंगनबाड़ी सेविका/सहायिका/डॉक्टर/होम गार्ड आदि संविदा पर कार्यरत हैं।
विदित हो कि शिक्षकों का माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में "समान काम समान वेतन" का मुकदमा माननीय पटना हाई कोर्ट में दायर है।जिसका विवरण निम्न है:-
Case no-CWJC1370/2017
Bihar Panchayat nagar prambhik shikshak sangh & others.
Vs
The state of Bihar & others
हम जानते हैं कि यदि किसी भी मुकदमा में कोई भी निर्णय माननीय सर्वोच्च न्यायालय देती है तो वह निचली अदालत के लिए वह कानून बन जाता है।जब निचली अदालत जब किसी मामले में निर्णय देती है तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसला का ध्यान रखती है।
दुसरी औऱ यह सर्व विदित है कि न्यायालय में न्याय में देर होता है।
परंतु अगर मुकदमा लड़ने वाले सजग है तो केस का मेंशन कर जल्द निर्णय लिया जा सकता है।
अभी वर्तमान में सरकार इस मुकदमा में जानबूझ कर विलम्ब कर रही है।सबसे पहले सरकार ने हलफनामा दायर करने में विलंब किया।सरकार हमेशा कुछ ना कुछ बहाना बनाते रहती है ।सरकार को पता है कि इस केस का निर्णय शिक्षकों के पक्ष में होगा।
👉प्रश्न-अगर माननीय हाई कोर्ट शिक्षकों को समान कार्य का समान वेतन देती है तो क्या बिहार सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय(दिल्ली) में इस निर्णय के खिलाफ अपील कर सकती है ?
उत्तर:-जैसा कि हम जानते हैं कि समान काम का समान वेतन का निर्णय माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला है।इसलिए यह केस माननीय सर्वोच्च न्यायालय(दिल्ली) में एडमिड नहीं होगा । जिसके कारण विलम्ब का सवाल नहीं है।
👉प्रश्न-हाई कोर्ट के निर्णय को जिला स्तर के कोर्ट में सरकार/शिक्षक ले जा सकती है।
उत्तर-यह प्रश्न बेबुनियाद है।हाई कोर्ट के निर्णय को निचली अदालत में चैलेंज नहीं कर सकते है।
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बहुत-बहुत धन्यवाद।